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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir सुदर्शिनी टीका अ० ३ सू०११ तस्करकार्यनिरूपणम् ३०७ पुनः किं कुर्वन्तीत्याह-'गामागर० ' इत्यादि मूलम्-गामागर-नगर-खेड-कव्वड-मडंब-दोणमुह-पट्टणासमणिगम-जणवए ते य धणसमिद्धे हणंति, थिर हिययच्छिन्नलज्जा वंदिग्गह-गोग्गहा य गेण्हंति, दारुणमई निक्किवा णियं हति छिंदंति गेहसंधि निक्खित्ताणि य हरंति, धणधण्णदव्वजायाणि जणवयकुलाणं निग्घिणमई परदव्वाहि जे अविरया, तहेव केइ अदिण्णादाणं गवेसमाण कालाकालेसु संचरंता चितगपजलिय-सरसदर-दट्टकड्डियकलेवरे रुहिरालित्तवयण - अक्खय-खादिय-पीतडाइणिभमंतभयंकरे जंबुयखिक्खियंते घूयकयघोरसद्दे वेयालुट्टिय विसुद्धकहकहेंत पहसियबीहणग निरभिरामे अइदुब्भिगंधे बीभच्छदरिसणिजे सुसाणे वणे सुण्णधरलेणअंतरावण गिरिकंदरेसु विसमसावय समाउलासु वसहिसु किलिस्संता सीयायवसोसियसरीरा दड्वच्छवीनिरय तिरिय भवसंकडदुक्ख संभारवेयणिज्जाणि पावकम्माणि संचिणिता दुल्लभभक्खण पाणभोयणापिवासिया झंझिया किलंतामंसकुणिमकंदमूल किंचिकयाहारा उठिवगा उप्पुया असरणा अडवीवासं उति वालसयसंकणीयं ॥ सू० ११ ॥ समुद्र के बीच में जाकर ( जणस्स ) मनुष्यों की ( पोते ) नौकाओं को (हणंति ) नष्ट कर डालते हैं ॥सू० १०॥ गंतूण" समुद्रनी १२ये ४४ने " जणस्स" भाणुसोनी " पोते " नामाना "हणंति " नाश ४ी नाणे छ ॥ ९-१० ॥ For Private And Personal Use Only
SR No.020574
Book TitlePrashnavyakaran Sutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalalji Maharaj
PublisherJain Shastroddhar Samiti
Publication Year1962
Total Pages1002
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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