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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir सुदर्शिनी टोका अ० ३ सू० ३ पञ्चमान्तरगततस्करस्वरूपनिरूपणम् २७३ घातकाः पथि-मार्गे जनानां घातका अव्यलुण्ठनाथ प्रहारकाः आदोपकाश्च= गृहादिदाहकाः तीर्थभेदकाश्च यात्रिकजनधनापहारकाश्च 'लहुहत्थसंपउत्ता' लघुहस्तसम्प्रयुक्ताः लघुः परद्रव्यहरो निपुणो हस्ता-हस्तव्यापारपरावणाः, 'जूयगरा' तकराः, ' खंडरक्खत्याचोरपुरिसचोरसंधिच्छेयया य' खण्डरक्षस्त्रीचौरपुरुषचौरसन्धिच्छेदकाः = तत्र खण्डरक्षा शुल्कपालाः उत्कोचग्राहित्वाचौराः, स्त्रीचौराः स्त्रियश्चोरकाः स्त्रीसकाशाचौरकाः स्त्रियमेव चोरयतीति स्त्रीचोरकाः, तथा स्त्री वेशेन चोरका वा । तथैव पुरुष चौराश्च सन्धिच्छेदकाः सन्धि-भित्यादौ विवरं 'संध ' ' खात्र ' इति भाषा प्रसिद्ध छिन्दन्ति-अवनन्ति ये ते सन्धिच्छेदकाः 'गंठिभेयगा' ग्रन्थिभेदकाः पसिद्धाः ‘परधणहरणलोमावहार अक्खेवी' परको विध्वंस कर देते हैं । ( पंथघायण ) द्रव्य हरण करने के अभिप्राय से मार्ग में चलने वाले मनुष्यों को ये देखते २ मार डालते हैं । (आदीवग ) गृहादिको में आग लगा देते हैं। (तित्थभेयगा ) यात्रिजनों के भी द्रव्य लूट लिया करते हैं । (लहुहत्यसंपउत्ता ) हाथकी सफाई इनकी इतनी जबर्दस्त होती है कि ये देखते २ ही दूसरों के धन को चुरा लेते हैं। ( खंडपखत्थीचोरपुरिसचोरसंधिच्छेयया य ) इसी तरह जो खंड. रक्ष-शुल्कपाल होते हैं ये जो घूसखोरी करने वाले होते है वे चोर माने जाते हैं वे यहां लिये गये हैं स्त्रीचोर-स्त्रियों के पास से द्रव्यादि चुराने वाले, अथवा स्त्रियों को उठाकर ले जाने वाले, अथवा स्त्री के वेश में रहकर चोरी करने वाले होते हैं, इसी प्रकार पुरुषचोर भी होते हैंपुरुषों के पास से द्रव्यादिक चुराने वाले होते हैं, अथवा पुरुषों को धोखा देकर इधर उधर ले जाने वाले होते हैं अथवा पुरुष के वेश में ४ जेठे, “ पंथघायगा" द्रव्य देवाने माटे तेथे। प्रवासीमाने त नेतामा भारी नामे छ. “ आदीवग" ५२ मेरेमा म सगाई छ, तित्थभेयगा” यात्रानां द्रव्यने ५७४ सूटी से छ, “ लइहत्यसंपउत्ता" योरी ४२વામાં તેમને હાથ એટલે કુશળ હોય છે કે તેઓ જોત જોતામાં અન્યનું धन योरी से छे. " खंडरक्खन्थीचोरपुरिसचोरसंधिच्छेयया च " थे। પ્રમાણે જે ખંડરક્ષ-શુલ્કપાલ હોય છે-જે ઘુસખોરી કરનારા (લાંચ લેનાર) હોય છે તેમને ચોર ગણવામાં આવે છે. સ્ત્રીર–સ્ત્રીઓની પાસેથી દ્રવ્ય ચોરનારા, અથવા સ્ત્રીઓને ઉપાડી જનારા અથવા સ્ત્રીના વેશમાં જઈને ચોરી કરનારા હોય છે, એ જ પ્રમાણે પુરુષો પણ હોય છે- પુરુષોની પાસેથી દ્રવ્યાદિકને ચોરનાર, અથવા પુરુષોને દગો દઈને ગમે ત્યાં લઈ જનારા, અથવા પુરૂષના For Private And Personal Use Only
SR No.020574
Book TitlePrashnavyakaran Sutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalalji Maharaj
PublisherJain Shastroddhar Samiti
Publication Year1962
Total Pages1002
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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