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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org २६८ प्रश्नव्याकरणसूत्रे परके धनका अपहरण होता है इसलिये इसका नाम अपहरण है १० । परद्रव्य चुराने में हाथकी कुशलता काम देती है, अथवा परद्रव्यके चुरानेसे हाथमें लघुता-नीचता आती है इसलिये इसका नाम हस्तलघुत्व है ११। यह कृत्य पापानुष्ठान स्वरूप है, इसलिये इसका नाम पापकर्मकरण है १२ । यह चोरों का कर्म है इसलिये इसका नाम स्तेन्य है | १३ | परgarh हरण से हरने वाले का नाश ही हो जाता है । इसलिये इसका नाम हरण विप्रणाश है १४ । दूसरों की अनुमति बिना ही धनादिक का इसमें ग्रहण होता है इसलिये इसका नाम आदान है १५ । दूसरों के द्रव्य का हरण करना ही द्रव्य का विनाश करना है, इसलिए इसका नाम परद्रव्यविच्छेद है १६ । कोई भी पुरुष चोरों का विश्वास नहीं करता है, अतः अविश्वास का उत्पादक होने से इसका नाम अप्रत्यय है १७ | द्रव्य का हरण हो जाने से दूसरों को पीड़ा होती है इसलिये पर को पीड़ा का कारण होने से इसका नाम अवपीड है १८ । परद्रव्य का इस क्रिया से विच्छेद होता है, अर्थात्-चोरे गये द्रव्य को चोर या तहा खर्च कर डालते है, यही परके द्रव्य का विच्छेद है इसलिये इसका नाम परद्रव्यविच्छेद है १९ | स्वामी के हाथ से यह चुराया हुआ द्रव्य निकल जाता है-चोरों के हाथों में आ जाता है, इसलिये इसका << Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir तस्करता " छे. (१०) तेमां धननु भयहरण थाय छे, तेथी तेनु नाभ अपहरण छे (११) परधन योरवामां डाथनी डुशणता अम आवे छे, अथवा परधननी थोरीथी हाथमां लघुता-नीयता प्रवेशे छे. तेथी तेनु' नाम हस्तलवुत्व छे. (१२) ते नृत्य पायत्य होवाथी तेनु नाम पापकर्मकरण छे. ( 13 ) ५२. धननु' अपडेशृणु १२वार्थी हुरनारनो नाश थाय छे, तेथी तेनु नाम हरणवि प्रणाश छे (१५) मीलनी अनुमति दिना तेमां धन आदि श्रद्धालु उशय छे, तेथी तेनु' नाम आदान छे. (१६) मीलना द्रव्यनु रागु उखु पे ४ द्रव्यनो विनाश गाय छे, तेथी तेनु' नाम परद्रव्यविच्छेद छे. (१७) पशु માણસ ચારાને વિશ્વાસ કરતા નથી એ રીતે અવિશ્વાસ જનક હોવાથી તેનુ नाम “अप्रत्यय” छे. (१८) द्रव्यनु अपहरण थवाथी अन्यने पीडा थाय छे, तेथी पीडानु अरण होवाथी तेनु' नाम "अवपीड" छे. (१८) परवननो मा ક્રિયાથી નાશ થાય છે, એટલે કે ચાર લોકો ગમે તે પ્રકારે તેને વેડફી નાખે છે. આ પ્રમાણે તે દ્રવ્યને વિચ્છેદ કરાવનાર હોવાથી તેનું નામ ८८ परदव्यविच्छेद ” छे (२०) ते थोरायेषु द्रव्य तेना भाहिना हाथभांथी यादयु लाने For Private And Personal Use Only
SR No.020574
Book TitlePrashnavyakaran Sutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalalji Maharaj
PublisherJain Shastroddhar Samiti
Publication Year1962
Total Pages1002
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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