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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir सुदर्शिनी टीका अ0 : सू० २ अदत्तादाननानिरूपणम् कर्मबहुलस्य-तत्र पाप-प्राणातिपातादिकं कलिः=युद्धं कलुपाणि=मलिनानि कर्माणि-मित्रद्रोहादिव्यापाररूपाणि बहुलानि-बहूनि यत्र तत्तथा तस्य ' आदिणादाणस्स' अदत्तादानस्य 'एयाणि ' एतानि पूर्वोक्तप्रकाराणि 'एवमाईणि' एवमादीनि चौरिक्यादीनि 'तीसं' त्रिंशत् 'नामधेज्जाणि हुंति' नामधेयानि भवन्ति ॥सू०२। प्राणातिपातादिक पाप, युद्ध, मित्रद्रोह आदिरूप मलिनकर्म अधिकता से रहते हैं ( अदिणादाणस्स ) अदत्तादान के ( एयाणि एवमाईणि ) ये चोरी आदि (तीसं) तीस (नामधेजाणि ) नाम (हुति ) है। ___ भावार्थ-चोरी चोरों का कर्म है इसलिये अदत्तादान का नाम चौरिक्य है १ । चोरी करने वाला विना पूछे ही दूसरों के द्रव्य का हरण करते हैं इसलिये इसका नाम परहन है २। चोरों को कोई बुलोकर अपना द्रव्य नहीं देता है इसलिये इसका नाम अदत्त है ३ । निर्दय बनकर ही यह कर्म किया जाता है सदय होकर नहीं, इसलिये इसका नाम रिकृत है ४ । इसमें दूसरे के द्रव्य का लाभ होता है अतः यह पर लाभ कहा जाता है ५ । इस कृत्य में न इन्द्रिय संयम रहता है और न प्राणि संयम ही, अतः यह असंयम नाम से कहा गया है ६। इसमें परधन में गृद्धि होती है अतः इसका नाम परधनगृद्धि है ७। इसमें परिणामों में लोलुपता अधिक रहती है इस लिये इसका नाम लौल्य है ।। तस्करों का यह भाव है इसलिये इसका नाम तस्करता है ९। इसमें दाणस्स" महत्ताहानना " एयाणि एवमाईणि" ते योरी माहि“ तीसं" श्रीस " नामधेज्जाणि” नाम " हुंति " छ, ભાવાર્થ–(૧) ચેરી કરવી તે ચાર લેકોનું કાર્ય છે. તેથી અદત્તાદાનનું "चौरिक्य' नाम छ. (२) योरी ४२ना२१ पूच्या विना or oilanti द्रव्यनु ४२६१ ४३ छ, तथा तेनु नाम “परहृत” छ (3) योशेने मेवीन ४ पोतानु द्रव्य हेतु नथी, तथा तेनु नाम “अदत्त" छे. (४) निय मनीने २८ थोरी ४२॥य छ, सय ५४ने नही, भाटे ४ तेनु नाम “क्रूस्कृित" (५) तेमा मीना द्रव्यने साम (प्राति) थाय छ, तथा तेने “लाभ” ४वामां आवे छे. (૬) આ કૃત્ય કરતી વખતે ઈન્દ્રિયને સંયમ રહેતો નથી અને વાણી संयम पाए। २डेतो नथी. तेथी तेनु नाम "असंयम” छ.७) ते ४२॥२ने ५२धनमा गुद्धि-साससा थाय छे, तेथी तेनु नाम “परधनगृद्धि ” छे. (८) તેનાથી પરિણામે માં-વૃત્તિમાં લેલુપતા વધારે પ્રમાણમાં રહે છે, તેથી તેનું नाम" लौल्य" 2. (८) त नी ते वृत्ति भावना राय छे, तेथीतेनु नाम For Private And Personal Use Only
SR No.020574
Book TitlePrashnavyakaran Sutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalalji Maharaj
PublisherJain Shastroddhar Samiti
Publication Year1962
Total Pages1002
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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