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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir प्रश्नव्याकरणसूत्रे -हृदयस्य मनसश्च दाबकानि-तापजनकानि 'जावजीवं' यावज्जीव-जीवन पर्यन्तं ' दुरुद्वराई' दुरुद्धराणि दुस्तराणि 'पावंति ' प्राप्नुवन्ति । पुनः कि मित्याह-अणिहावरफरुसवयणतज्जगणिन्भच्छणदीणवयणविमणा' अमिष्टखरफरुषवचनतर्जननिर्भत्सनदीनवचनविमनसः तत्र अनिष्टेन अप्रियेण खरपरुषेण= अतिकठोरेण वचनेन यानि तर्जनानि रे नीच ! कथमेवं करोपि' इत्यादि लक्षणानि निर्भर्त्सनानि='अरे दुष्टकर्मकारिन्गृहानिस्सर दृष्टिपथावा' इत्यादि रूपाणि, तैर्दीनं वदनं-मुखं विकृतं-विषाक्तयुक्तं च मनो येषां ते तथा 'कुभोयणा' कुभोजनाः कुत्सितम्-अरसविरसं भोजनं येषां ते तथा तुच्छान्नाहारिणः 'कुवाससा' कुवाससः कुचैलिनः ‘कुवसहीसु' कुवसतिषु-कुत्सितस्थानेषु 'किलिस्संता' नहीं रुचने वाले तथा ( हियघमणदूमगाई ) हृदय और चित्त को संतापजनक होते हैं ऐसे वचन ( जावज्जीवं) जीवन पर्यंत (दुरुद्वराई) जो इन्हें आघात पहुँचाने वाले होते हैं उनको ( पावंति ) प्राप्त करते हैं अर्थात् सुना करते हैं । फिर क्या सो कहते हैं-(अणि?खरफरुस वयणतज्जणणिन्भच्छण दीणवयणविप्रणा ) ऐसे ये लोग अप्रिय, अतिकठोर वचनों से तथा-" रे नीच ! ऐसा क्यों करता है " इत्यादिरूप तर्जना से, " ओ दुष्टकर्मकारिन् ! तू मेरे घर से बाहिर निकलजामेरे साम्हने मत आ-यहां से दूर हटजा" इत्यादि हृदय विदारक निर्भर्त्सना से अनाहत हुए ये दीन वदन और विकृत अन वाले तथा (कुभोयणा) अपनी जिन्दगी भर कभी अच्छा भोजन नहीं पाने वाले तुच्छाहारी तथा ( कुबाससा ) मैले कुचैले वस्त्र पहनने वाले तथा (कु वसहीसु) गन्दी जगहों में रह कर (किलिस्संता) अनेक कष्टों को इश्य भने चित्तम साता५ पेद्दा ४२॥२ डाय छे तथा “ दुरुद्धराई " भने माघात समाउना२ डाय छे सेवा क्यने! " जावजीवं” वे त्या सुधी तेय " पार्वति" प्रात ४२ छे मेट सicudi ४२ छ. qvil ulod शुमने छ ते छ-" अणिदुखरफरुसवयणतज्जणणिभन्छणहीणवयणविमणा ” तपा એ લેકે અપ્રિય, અતિ કઠેર વચનેથી તથા “ અરે નીચ! આવું કેમ કરે છે?” ઈત્યાદિ પ્રકારની તર્જનાથી, “હે દુષ્ટકર્મકારિન ! તું મારા ઘરમાંથી બહાર નીકળી જા–મારી સામે આવીશ મા - અહીંથી દૂર ચાલ્યા જા” ઈત્યાદિ હૃદય ભેદક નિર્ભત્સનાથી અનાદર પામેલ તે દીન વદનવાળા તથા વિકૃત મન वा तथा “ कुभोयणा" तथा वन पर्यन्त सामान पास नही ४२ना। इस प्रा२नुं लोन A ४२नारा तथा “कुवाससा" भेस तथा टेसा तूटे पर पडरना तथा “ कुवसहीसु" . यामामा डीने “किलि For Private And Personal Use Only
SR No.020574
Book TitlePrashnavyakaran Sutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalalji Maharaj
PublisherJain Shastroddhar Samiti
Publication Year1962
Total Pages1002
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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