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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ર૪૮ प्रश्नव्याकरणसूत्रे णिसेविणो' नीचजननिषेविणः जातिगुणकर्मभिर्नीचा ये जनास्तेषां निषेविणः= उत्थानोपवेशनशयनभोजनपानादिभिः सहनिवासिनः ' लोगगरहिणिज्जा' लोक गर्हणीया सकलजननिन्दनीयाः ‘भिच्चा' भृत्याः भरणीया एवान्यैः तथा 'असरिसजणस्स पेस्सा' असदृशजनस्य असमानशीलस्य-म्लेच्छाचारलोकस्य 'पेस्सा' पैष्याः तदाज्ञाकारकाः 'दुम्मेहा' दुर्मेधाः सद्बुद्धिवर्जिताः, 'लोगवेदअझप्पसमयमुइवज्जिया' लोकवेदाध्यात्मसमयश्रुतिवर्जिताः श्रुतिशब्दस्य प्रत्येक सम्बन्धात् लोकश्रुतिः लोकाभिमतं शास्त्र भारतादिः, वेदश्रुतिः ऋग्यजुः सामाथवेदशास्त्रम् , अध्यात्मश्रुतिः आत्मस्वरूपनिर्णायकं शास्त्र, समयश्रुतिः अर्हत्मवचनं ताभिर्वर्जिताः रहिता ये ते तथा, 'धम्मबुद्धिवियला' धर्मबुद्धिविकलाः श्रुतचारित्रधर्मरहिताः नराः मनुष्याः 'दृश्यन्ते ' इति पूर्वेण सम्बन्धः । तथा 'तेण य' तेन च=पूर्वोक्तप्रकारेण 'अलिएण' अलीकेन=मृपावादेन ‘असंतएणं' ( णीयजणणिसे विणो) नीच जनों के साथ ही ये उठा बैठा करते हैं और इन्हीं के साथ ये खाते पीते हैं तथा उन्हीं के साथ रहते हैं। (लोगगरहणिज्जा ) समस्त जन इनकी निंदा करते रहते हैं। (भिच्चा) दूसरी के दास होकर रहते हैं ( असरिसजणस्स पेस्सा) असमानशीलवाले-म्लेच्छाचार वाले लोगों के ये दास होते हैं ( दुम्मेहा) सद्बुद्धि से ये वर्जित होते हैं ( लोगबेयअज्झप्पसमयसुइवज्जिया) लोकश्रुति वेदश्रुति, अध्यात्मश्रुति और समयश्रुति से ये रहित होते हैं । लोकाभिमत भारत आदि शास्त्रो का नाम लोकश्रुति है । ऋग्वेद, यजुर्वेद, सामवेद, अथर्ववेद, इनका नाम वेदश्रुति है। आत्मा के स्वरूप के निर्णायक शास्त्र अध्यात्मशास्त्र हैं । अहेत्प्रवचन का नाम समयश्रुति है। (धम्मबुद्धिवियला ) श्रुतचारित्ररूप धर्म से विमुख रहते हैं। तथा ( तेण भने गोत्र अधम हाय छ, “णीयजणणिसेविणो” नीय लो। साथै ५ ते ઉઠે બેસે છે, તેમની સાથે જ તેઓ ખાય પીવે છે તથા તેમની જ સાથે રહે छ, “ लोगगहरणिज्जा" Am at तेमनी निंदा ४३ छे. " भिच्चा" अन्यना हास ने २ छ, “ असरिस जणस्स पेस्सा" असमान शास-वेच्छ!यार वा सो तेसो हास थाय छ “ दुम्मेहा " ते सद्युद्धि २डित हाय छ, “लोगवेयअन्झप्पसमयसुइवज्जिया” सोश्रुति, वेश्रुति अध्याભકૃતિ અને સમયકૃતિથી તેઓ રહિત હોય છે. કાભિમત ભારત આદિ શાસ્ત્રોને લેકચ્છતિ કહે છે, ઋગ્યે, યજુર્વેદ, સામવેદ અને અથર્વવેદને વેદકૃતિ કહે છે આત્માના સ્વરૂપનું નિર્ણાયક શાસ્ત્ર અધ્યાત્મશાસ્ત્ર છે. અહંત પ્રવચનને समयश्रुति ४ छ 'धम्मबुद्धिवियला " तेथे। श्रुतयारित्र ३५ माथा For Private And Personal Use Only
SR No.020574
Book TitlePrashnavyakaran Sutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalalji Maharaj
PublisherJain Shastroddhar Samiti
Publication Year1962
Total Pages1002
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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