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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir प्रश्नव्याकरणसूत्रे स्थितिः, तथा विपमाणि च दुःस्वप्नादीनि, तेषु शान्त्यर्थ करेह ' कुरुत । तथा 'पडिसीसगाई :च देह ' प्रीतिशीर्षकागि च दत्त-पिष्टनिर्मितस्वशिरःप्रतिरूपकाणि च महाकाल्यादिभ्यो दीयन्तां-युष्माभिरिति वदन्ति । तथा 'देह य सीसोवहारे विविहोसहिमज्जमंसभक्खन्नपाणमलाणुलेषणपईवजलिउज्जलसुगंधधूवोवयारपुप्फफलसमिद्धे ' दत्त च शोर्पोपहारान् विविधौषधिमद्यमांसभक्ष्यानपानमाल्यानुलेपनप्रदीपज्वलितोज्ज्वलसुगन्धधूपोपचारपुष्पफलसमृद्धान , तत्र विविधाः औषधयश्च मद्यमांसानि च भक्ष्याणि च अन्नानि पानानि च माल्यान्यनुलेपनानि च तानि, प्रदीपाश्च ज्वलितोज्ज्वलाश्च-आरार्तिक्याद्याः, तथा-सुगन्धाः शोभनगन्ध को स्वजनादि को रक्षा के लिये उस समय करो जय नवग्रहों में चन्द्र सूर्य ये दो ग्रह तनु धन आदि कष्ट कर स्थानों में स्थिति हों, और दुःस्वप्न आदि विषम चीजों का अवलोकन हुआ हो । तथा (पडिसीसगाइं च देह ) तुम लोग पिष्ट निर्मित अपने २ प्रतिनिधिरूप शिरोंको महाकाली आदि देवियों के लिये बलि रूप में दो, अर्थात् शांति आदि के निमित्त अपने शिर के जैसा शिर आटे का बनाकर काली आदि देवियों के समक्ष बलिरूप में चढाओ, इस प्रकार मृषावादीजन कहते हैं। तथा ( देह य सीसोवहारे ) पशु आदि के शिरों को चढाओ, जब तुम लोग पशु आदि के शिरों को काली देवी के लिये भेट में प्रदान करो उस समय (विविहोमहिमजमस मक्खन्नपाणमल्लाणुलेवणपई वजलिउज्जलसुगंधधूवोवयारपुष्फफलसमिद्धे ) विविध प्रकार की औषधियों से, मथमांसरूप भक्ष्यानपान से, माल्यों से, अनुलेपनों से, ચન્દ્ર અને સૂર્ય જે દિવસે એ રાહુથી ગ્રસિત થાય તે દિવસેએ કરે. અથવા તે કૌતુક, વિનાપન, અને શાન્તિકર્મોને સ્વજનાદિની રક્ષાને માટે તે સમયે કરે કે જ્યારે નવગ્રહોમાંના ચન્દ્ર અને સૂર્ય એ બે ગ્રહે તન, ધન આદિ કષ્ટકારી સ્થાનમાં રહેલ હોય અને દુઃસ્વપ્ન આદિ વિષમ ચીજો જોવામાં मावती डाय. तथा " पडिसीसगाई च देह " तमे सो पिट निमित पोत પિતાના પ્રતિનિધિ રૂપ મસ્તકેનું મહાકાળી આદિ દેવીઓને બલિદાન દે, એટલે કે શાંતિ આદિ નિમિતે પિતાના મસ્તક જેવું લેટનું બનાવેલું મસ્તક કાળીકા દેવીઓને બલિદાન રૂપે અર્પણ કરે, એ પ્રમાણે મૃષાવાદી લેકે કહે छ. “ देह य सीसोवहारे" ५४ माहिना भरत यावा. न्यारे ५४ माहिना भस्ती :ult वान भाट मप ४२॥ त्यारे “ विविहोसहिमज्जमंस भक्खन्नपाणमल्लाणुलेवणपईवजलिउज्जलसुगंधधूवोवयारपुप्फफलसमिद्धे ” विविध પ્રકારની ઔષધિથી, મધમાંસ રૂપ ભઠ્યાન્ન અને પીણાંથી, માળાએથી For Private And Personal Use Only
SR No.020574
Book TitlePrashnavyakaran Sutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalalji Maharaj
PublisherJain Shastroddhar Samiti
Publication Year1962
Total Pages1002
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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