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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir सुदर्शिनी टीका अ. २ सू० १४ मृषावादिनां जीवघातकवचननिरूपणम् २३३ अलियासु कहासु अभिरमंता तुट्टा अलियं करेउं हुंति य बहुप्पगारं ॥ सू० ॥१४॥ टीका-'सालीवीही ' इत्यादि । 'सालीवीहीजवा य' शालिव्रीहियवाश्च तत्र शालयः पष्टयहोगत्रपरिपाकयोग्या बीहयश्च धान्यविशेषाः यवाश्च-जब इति भाषा प्रसिद्धाः एते 'लुच्चंतु' लूयन्तां छिद्यन्ताम् । 'मलिज्जंतु' मृद्यन्तां-पलालादिभ्यः पृथक क्रियन्ताम् । 'उप्पूयंतु' उत्पूयन्ताम् परिशोध्यन्तां ' लहुं च ' लघु च-शीघ्र सुन्दररीत्या च । कोट्ठागारं' कोष्ठागारं-कोष्ठेपु 'पविसंतु' प्रवेश्यन्तां संभ्रियन्तां शाल्यादयः 'अप्पमहुक्कोसगा हम्मंतु पोतसत्था' अल्पमहदुत्कर्पका हन्यन्तां पोतसार्थाः तत्र अल्पा:-हस्वास्तदपेक्षया महान्तश्च-मध्यमा उत्कर्षका उत्कृष्टा पोतसार्थाःनौकास्थितजनसमुदायाः-पक्षिशिशुसमुदाया वा हन्यन्तां नाश्यन्ताम् । तथा ' सेणाणिज्जाउ ' सेना निर्यातु-कटकं निर्गच्छतु, निर्गत्य च 'जाउडमरं' यातुडमर= तथा-'सालि ' इत्यादि। टीकार्थ-(सालि वीहिजवा य लुच्चंतु ) शालि-साठ दिनरात में परिपाक के योग्य धान्य को तथा ब्रीहि को, और जव को काट लो (मलिग्जंतु) इन्हें पलोल आदि से पृथक् करलो (उप्पयंतु ) अच्छी तरह से इनकी दांय ( गाहट ) करवाकर उड़ावनी करलो-( उफणलो ) अभी वायु अनुकूल अच्छी चल रही है । ( लहुं च कोडागारं पविसंतु ) जल्दी से जल्दी कोठारमें इन्हें भरवा दो । (अप्पम कोसगा हम्मंतु पोतसत्था) छोटे बीचके-मध्यम श्रेणिके, एवं उत्तम श्रेणिके पोतसार्थ-नौकास्थित (नौकामें रहे हुए) जनसमूहको मार डालो, अथवा छोटेयड़े नथा बोचके सब तथा- '' सालि ” त्या टी- “ मालिवी हि जवा य लुच्चंतु" al ( सविसमा पातुं मना२४ ) तथा ग्रीड (202) अने सपना 1५०ी ४२वि स “ मलिज्जंतु " तमाथी ५।७ पोरे ९ ५वी हो, “ उप्पयतु” सारी शते पणु ४२वीन तेने Guja at “ उफणलो " प्रत्यारे मनु पवन पाय छे तो तेने ५पार्नु १२१ ५४. "लहुं च कोट्टागारं पविसंतु” तेने पडसामा पसी त २भा मरावी हो. " अपमहुक्कोसगा हम्मनु पोतसत्था " नाना, मध्यम श्रेणिना भने उत्तम श्रेलिना પિતસાર્થ-નાવમાં રહેલ જનસમૂહને મારી નાખે, અથવા નાના, મધ્યમ તથા भोटा-समस्त पक्षासमुदायने भारी ना. सेणाणिज्जाउ” माथी सेना प्र० ३० For Private And Personal Use Only
SR No.020574
Book TitlePrashnavyakaran Sutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalalji Maharaj
PublisherJain Shastroddhar Samiti
Publication Year1962
Total Pages1002
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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