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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org १७६ प्रश्नव्याकरणसूत्रे संग्राह्याः | 'भयाय = अन्येषां भयोत्पादनाय ' व्याघ्रः समागतः ' इतिरीत्या मृषावाद: अथवा भयाच्च 'हस्सट्टिया य ' हास्यार्थिकाः, अथवा हास्यार्थाय च हास्यं कर्तुमपि तथा वदन्ति 'सक्खी' साक्षिणः साक्षिभूतान्यायालयादौ 'चोरा' चौरा - निग्रहादौ : ' चारभडा ' चारभटाः = तत्र चाराः गूढपुरुषाः, भटाः = योधाः, Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir पण करते हैं। इसी तरह मुग्धादिक जो जीव होते हैं कि जिन्हें प्राणवध के प्रकरण में २० वें सूत्र में कहा गया है वे भी असत्य भाषण करते हैं । कोई धन के लिये, कोई धर्म के लिये, कोई इन्द्रियों के भोगों के निमित्त काम के लिये, और कोई २ अर्थ, धर्म और काम इन तीनों के लिये असत्य भाषण करते हैं । ( भयाय ) कितनेक कितनेक जीव ऐसे भी होते हैं जो दूसरों को भय उत्पन्न करने के अभिप्राय से अस त्यभाषण कर दिया करते हैं । " भयाय " की संस्कृत छाया "भयाच" ऐसी भी होती है - इसका तात्पर्य तब ऐसा होगा कि कितनेक जीव भय से भी असत्य भाषण कर दिया करते हैं । (हस्सडियाय ) कितनेक जीव ऐसे भी होते हैं जो हँसी मजाक में असत्यभाषण कर देते हैं, अथवा दूसरों की हँसी उड़ाने के अभिप्राय से असत्यभाषण करने लगते हैं । (सखी) जो न्यायालय - कचहरी आदि में दूसरों की साक्षी देते हैं वे भाषण करते हैं । (चोरा) चोरी करने वाले जो पुरुष होते हैं वे निग्रह आदि अवस्था के उपस्थित होने पर असत्य भाषण करते हैं। જે જીવા હાય છે, જેમનું પ્રાણવધના ૨૦મા પ્રકરણમાં વર્ણન કરવામાં આવ્યુ છે, તે જીવે પણ અસત્ય ખેલે છે. એટલે કે કેટલાક મુગ્ધ-મેહાધીન વૃત્તિવાળા અસત્ય એલે છે. કેટલાક ક્રોધ, લાભ અને મેહ એ ત્રણેને વશ થઈને અસત્ય ખાલે છે. કેટલાક લેાકેા ધનને માટે, કેટલાક ધર્મને માટે, કાઇ ઇન્દ્રિ— ચાના ભાગોને નિમિત્ત, અને કાઈ કાઇ લોકો અર્થ, ધમ અને કામ, એ ત્રણેને निभित्ते असत्य मोझे छे, “भयाय" डेटलाउ सेवा वो पशु होय छे में भे मीलने लय पभावाने भांटे असत्य माझे छे " भयाय " नी संस्कृत छाया 63 " भयाच्च પણ થાય છે. ત્યારે તેના અથ એવેશ થાય છે કે કેટલાક જીવા लयने अरणे पणु असत्य मोझे छे. “ हस्सट्टिया य " डेटलाई बोझे सेवा પણ હોય છે. કે જેઓ મજાક-મશ્કરીમાં પણ અસત્ય એલી નાખે છે, અથવા जननी भावाने निमित्ते असत्य मोसवा भडे छे. "सक्खी " न्याया क्षय महिमां मीलनी साक्षी आपनाश बोअ य असत्य मोहे छे, " चोरा ચારી કરનારા લામ, જેલમાં જવાના પ્રસંગ ઉપસ્થિત થતાં અસત્ય ખેલે છે. For Private And Personal Use Only "
SR No.020574
Book TitlePrashnavyakaran Sutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalalji Maharaj
PublisherJain Shastroddhar Samiti
Publication Year1962
Total Pages1002
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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