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सुदर्शिमटीका अ. १ सू. ४६ मनुष्य भवदुःखनिरूपणम्
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र्थम्, 'विकयविगलरूवा ' विकृत विकलरूपाः = विकृतं - बीभत्सं विकलं हीनं च रूपम् = आकारो येषां ते तथा भूताः 'दीसंति' दृश्यन्ते दृष्टिगोचरा भवन्ति । तदेव वर्ण्यते - ' खुज्जा' कुब्जा: ' कूबडा ' इति भाषा प्रसिद्धाः, 'चडभा ' एक पार्श्वहीनाः = वक्रोपरिकायाः, यद्वा - विकृतरूपेण वहिर्निस्सृत हृदयोदर भागाः, 'वामणा ' वामनाः- हस्वकायाः ' बहिरा' बधिराः = श्रवणशक्तिहीनाः 'काणा ' काणा = एकाक्षाः ' कुंटा' कुष्टाः = विकृतहस्ता: 'टूटा ' इति प्रसिद्धाः 'पंगुला ' 'पङ्गव:जाहीनाः 'पांगला ' इति मसिद्धाः, 'विगला ' विकलाः = हीनाङ्गोपाङ्गाः 'सूया' मृका:चचनशक्तिहीनाः, 'मंगणा' मन्मनाः=स्खलद्वचनाः, 'अंधयगा ' अन्धकाः = जन्मान्धाः, 'चक्खुविणिहया' चक्षुर्विनिहताः = विनिहतचक्षुषः=
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हैं (fare विगलत्वादीसंति) उनका रूप विकृत और विकल-हीन होता है। इसी बात को विशेषरूप से सूत्रकार समझाते हैं ( खुज्जा ) उनके शरीर में पीठ पर कुas निकली रहती है । (वडा) वे एक पार्श्वसे हीन होते हैं, अथवा उनके हृदय और उदरका भाग विकृतरूप से बाहर निकला हुआ रहता है । (वामणा ) शरीर उनका बोना होता है । (बहिरा ) उनकी अवणशक्ति नष्ट हो जाती है ( काणा ) वे आंखें सेकाने होते हैं । (कुंटा ) हाथ उनका एक ठीक रहता है दूसरा टूट जाता है इससे वे टूटा कहलाते हैं, (पंगुला ) पांगले - जंधाहीन (विगलाय ) अंग और उपांगों से वे विहीन होते हैं, (या) मूंगे होते हैंवचनशक्ति से वीहीन होते हैं, ( सम्मणा ) मम्मण होते हैं- घोलते समय वे अटकते हैं (अंधवगा ) जन्मांध होते हैं उनकी जन्मतः दोनों आंखें फूटी रहती हैं, (चक्रतुविणिया) चक्खुविनिहत होते हैं - उनकी
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विगलरूवा दीसंति તેમનું રૂપ વિકૃત અને વિકલ–હીન હોય છે. એજ વાતને सूत्रार विस्तारथी सभलवे - " खुजा " तेभना शरीरे चीह पर ध નીકળી હાય છે, बडभा ” તેઓ એક પડખે ખેાડવાળા હોય છે, અથવા तेभना हृदय गने पेटना लाग विकृत शेते महार पडतो होय . " वामणा” तेथे। वामन३५ ठींगला होय छे, " बहिरा " तेभनी श्रवणु शक्ति नाश पा છે તે મહેરા થાય છે 6: काणा " तेथे। मां आशा होय छे. " कुंटा " તેમના એક હાથ સારા હાય છે. પણ બીજો હાથ हूँटा उडेवाय छे." पंगुला " पांगणा-पगे बूझा गोनी मोडवाला होय छे, " मृया" भूगा होय होय छे, "
તૂટી જવાને કારણે તેઓ
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विगला य " म सने अयांछे-योसवानी शक्ति विनाना
मम्मणा " तोतडा होय छे-पोसता कल भटडे तेवा होय छे.
प्र० २०
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