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प्रमव्याकरणसूत्रे सोपानविशेषाः, 'निज्जूहग ' नियुहकाणिद्वारो भागबहिनिर्गताः घोटकायाकाराः काष्ठविशेषाः, 'चंदसालिय' चन्द्रशालिका: प्रासादोपरितनशाला। 'वेइय' वेदिका-पाङ्गणे कृतोपवेशनस्थानम् , 'णिस्सेणि' निःश्रेणिः 'सीढी' इति प्रसिद्धा 'दोणि' द्रोणिः लघुनौका, 'चंगेरी' तृणादिनिर्मितपात्रविशेषः 'टोकरी' इति भाषा प्रसिद्धा देशीशब्दोऽयम् , 'खोल' कीला असिद्धाः, 'मंडव' मण्डपा:=पटगृहाः, द्राक्षादिमण्डपा वा; सभाः जनोपवेशनस्थानानि, 'पवा' प्रपाः पानीयशालाः, 'आवसह' आवसथा: तापसाश्रमाः 'गंध' गन्धाः गन्धद्रव्याणि, 'मल्ल' माल्यानि-कुसुमानि-माल्यं कुसुमस्रम् वा, 'अणुलेवण' अनुलेपनं चन्दनं, 'अंबर' अम्बराणि-वस्त्राणि, 'जुय' युगानि 'झूसरा' इति भाषा प्रसिद्धानि, 'नंगल' लागलानि हलानि, 'मेइय' मेतिकानि यः कृष्टक्षेत्र मृघते, 'कुलिय' कुलिकानि हलभेदाः 'संदण' स्यन्दनो स्थविशेषाः, 'सीया' शिविका:-'पालखी' इति सोपानविशेष, (निज्जूहग) निर्ग्रहक-द्वारके उर्ध्वभागमें बाहर की ओर लगे हुए घोड़ा आदि के आकार वाले काष्ठ विशेष, (चंदसालिय) चंद्रशालिका-मासाद के ऊपरकी शाला, (वेइय) वेदिका-आंगनमें बैठने के लिये बना हुआ स्थान, (गिस्सेणि) निःश्रेणी-नसेनी-सीढी, (दोणि) द्रोणी-लघुनौका-होडी, (चंगेरी) चंगेरी-शृणादिसे बना हुआ पात्र विशेष, जिसे चंगेर भी कहते हैं, ( खील) कीला, (मंडव ) मंडप-पटगृह अथवा द्राक्षादि मंडप, (सभा) सभा-मनुष्यों के बैठने का स्थान, (पवा) प्रपाप्याऊ, ( आवसह ) आवसथ-तापसाश्रम, (गंध) गंध-सुगंधि द्रव्य, (मल्ल) माल्यकुसुम आदि माला-कुसुमों की गुथी हुई पुष्पमाला, (अनुलेवणं) अनुलेपन-चंदन, अम्बर-वस्त्र, (वरयुग) युग-झूसरा-जुंवारी, (नंगल) लांगल-हल, (मेइय) मेतिक-वखर, जिससे जुता हुआ खेत વિશેષ, નિસ્પૃહક-બારણાની ઉપર બહારની બાજુએ લગાડેલ ઘેડા આદિના मा।२।। 31°४ विशेष "चंदसालिय" यशालिst-प्रासाना 6५२नी l "वेइय" वहि-idulhi मेसवा माटेना यात, "णिस्सेणि" नि:श्रेणी निसी , "दोणि" द्रोणी नानी नौ' चंगेरी" य-तृहिमाची मनापेस पात्रविशेष रेने य२ ५५ ४ छ. "खोल" भूटी "मंडव" भ७५-'यू मथ। द्राक्षाहना भ७५ "सभा" समा-भासाने सानु स्थान "पवा" ५५ ५२॥ "आवसह" मावसथ-तापसानो पाश्रम "गंध" मध-सुगधि द्रव्य "मल्लाणुलेवणं, મલ-માલ્ય કુસુમ આદિની માળા, અનુપન ચંદન, અખર વસ્ત્ર “સુ” ખૂસરા सरी “मंगल" aine " मेहय "मति: १५२ नाथी भेउमेत२ मे
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