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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir सुदर्शिनी टीका अ० १ ० ११ प्राणिवधप्रयोजनप्रकारवर्णनम् " रसासमांसमेदोऽस्थिमज्जाशुक्राणि धातवः' इति ' नह ' नखाः, 'नयण' नयनानि-नेत्राणि 'कण्ण' कर्णाः 'हारु ' स्नायुः अङ्गप्रत्यङ्गबन्धननाडीविशेषः 'नक' नासिका='धमणि' धमन्योनाड्यः, 'सिंग' श्रृङ्गाणि प्रसिद्धानि, 'दादि' दंष्ट्राः 'पिच्छ' पिच्छं-मयूरादिपिच्छं, 'विस' विष कालकूटादि 'विसाण' विषाणानि गजदन्ताः, बालोः केशाः, एषां 'हे' हेतुं हेतुमाश्रित्य अस्थिमज्जादिहेतोरित्यर्थः, 'हिंसति' इति पूर्वेण सम्बन्धः ||मू०११॥ मजा नामक छठवी धातु विशेष को प्राप्त करने का, कितनेक का उनके (नह ) नखों का प्राप्त करने का, कितनेक का उनके (नयण) नयननेत्रों को प्राप्त करने का, कितनेक का (कण्ण) कान प्राप्त करने का कितनेक का (हारुणि ) स्नायुयों को अंग प्रत्यंगों को बांधने वाली नाडि विशेषों को प्राप्त करने का, कितनेक का उनकी (नक्क) नासिका प्राप्त करनेका, कितनेक का उनकी (धमणि ) धनियाँ-नाडियां प्राप्त करने का, कितनेक का उनके (सिंग) शंगों को प्राप्त करने का, कितनेक का उनकी (दादि) दाढों को प्राप्त करनेका, कितनेक का उनकी (पिच्छ) पिच्छों को प्राप्त करने का, कितनेक का उनके (विस) कालकूट आदि विष प्राप्त करने का, कितनेक का उनके विषाण-गज दन्तों को प्राप्त करने का और कितनेक को उनके (बाल) बालों को प्राप्त करने का,उद्देश्य होता है। इन उद्देश्यों प्रयोजनों को लेकर अबुधजन इनकी हिंसा करते हैं । सू-११॥ વધ તેમની “કિંગ મજજા નામની છઠ્ઠી ધાતુને પ્રાપ્ત કરવાને માટે, કેટલાંકને १५ तेमना "नह" नमाने प्रात ४२वाने भाटे, खisो ध तमना "नयण" નેત્ર પ્રાપ્ત કરવાને માટે, કેટલાંકને વધ તેમના “o” કાન પ્રાપ્ત કરવાને भाट सन १५ "हारुणि" स्नायुमान म1 प्रत्याने साधनारी નસ પ્રાપ્ત કરવાને માટે, કેટલાકને વધ તેમનું “ના” નાક પ્રાપ્ત કરવાને માટે Decist १५ तेभनी “धमणि" यमनीमा- आस ४२वाने भाटे, 2લાંકનો વધ તેમનાં “સિંઘ શિંગડાં પ્રાપ્ત કરવા માટે, કેટલાંકને વધ તેમની "दाढि" ! पास ४२वाने भाटे, डेटसांनी वध तमना "पिच्छ” पीछi प्रास ४२वाने भाट, सानो ५ तेभनु “विस" सट मा विष प्रात ४२वान માટે. કેટલાકને વધ તેમના વિષાણ હાથી દાંતને પ્રાપ્ત કરવા માટે, અને કેટ લાંકને વધ તેમના “રા” વાળ પ્રાપ્ત કરવાને માટે કરાય છે તે ઉદ્દેશપ્રયે જનેને માટે અબુધ લોકે તેમની હિંસા કરે છે. સૂર-૧૧ For Private And Personal Use Only
SR No.020574
Book TitlePrashnavyakaran Sutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalalji Maharaj
PublisherJain Shastroddhar Samiti
Publication Year1962
Total Pages1002
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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