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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org ७७४ न्यायकन्दलीसंवलितप्रशस्तपादभाष्यम् प्रशस्तपादभाष्यम् भावेनावस्थिताना मिहेदमिति बुद्धिर्यतो भवति, यतश्चासर्व गताना मधिगतान्यत्वानामविष्वग्भावः स समवायाख्यः सम्बन्धः । कथम् १ यथेह कुण्डे दधीति प्रत्ययः सम्बन्धे सति दृष्टः, तथेह तन्तुषु हों, एवं आधार आधेय रूप हों उन दोनों में से एक ( आधेय ) का दूसरे ( आधार में ) 'यह यहाँ है' इस आकार का प्रत्यय जिससे हो वही ( सम्बन्ध ) 'समवाय' है । ( एवं ) नियमित देश में ही रहनेवाले एवं परस्पर भिन्न रूप में ज्ञात होनेवाले दो वस्तुओं की स्वतन्त्रता जिस सम्बन्ध से जाती रहे वही ( सम्बन्ध ) 'समवाय' है । ( प्र० ) इस सम्बन्ध की सत्ता में प्रमाण क्या है ? ( उ० ) ( यह अनुमान ही प्रमाण है कि ) जिस न्यायकन्दली Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandir [ समवायनिरूपण तद्वतामन्त्यविशेषतद्वतां चाकार्यकारणभूतानां समवायोऽयुत सिद्धानामिति नियमः । एवमाधार्याधारभावेनावस्थितानामित्यपि नियम एव । इहेदमिति बुद्धिर्यतः कारणाद् भवति यतश्चासर्वगतानां नियतदेशावस्थितानामधिगतान्यत्वानामधिगतस्वरूपभेदानामविष्वग्भावोऽपृथग्भावोऽस्वातन्त्र्यं स समवायः, भिन्नयोः परस्परोपश्लेषस्य सम्बन्धकृतत्वोपलम्भात् । एतदेव कथमित्यादिना प्रश्नपूर्वकमुपपा दयति-यथा इह कुण्डे दधीति प्रत्ययः कुण्डदघ्नोः सम्बन्धे सति दृष्टः, For Private And Personal दूसरे का कार्य या कारण न होते हुए भी जिन वस्तुओं में समवाय सम्बन्ध होता है वे हैं सामान्य ( जाति ) और उनके आश्रय एवं अन्त्यविशेष और उनके आश्रय । ( इनमें भी समवाय सम्बन्ध होता है ) । समवाय के ये कार्यकारणभूत और अकार्यकारणभूत प्रतियोगी और अनुयोगी यतः 'अयुतसिद्ध ' हैं, अतः यह 'नियम' उपपन्न होता है - समवाय अयुत सिद्धों का ही सम्बन्ध है । इसी प्रकार 'आधार्याधारभावेनावस्थितानाम्' यह वाक्य भी नियमार्थक हो है । अर्थात् यतः विभिन्न दो वस्तुओं में विशेष्यविशेषणभाव की प्रतीति किसी सम्बन्ध से ही होती है अतः 'इहेदम्' यह प्रतीति जिस कारण द्वारा होती है ( वही समवाय है ), एवं जिसके द्वारा अव्यापक अथवा नियत आश्रय में रहनेवाले उन वस्तुओं में जिनमें कि परस्पर भेद पहिले से ज्ञात है, अर्थात् जिनके अलग अलग स्वरूप ज्ञात हैं उन्हें 'अविष्वग्भाव' अर्थात् अपृथग्भाव फलतः अस्वातन्त्र्य जिसके द्वारा हो वही 'समवाय' है । क्योंकि वस्तुओं का उक्त 'अविष्वग्भाव' किसी सम्बन्ध से ही देखा जाता है । यही बात 'कथम्' इस वाक्य के द्वारा प्रश्न कर 'यथेह कुण्डे' इत्यादि वाक्य से उत्तर रूप में कहते हैं । अर्थात् जिस प्रकार 'इस मटके में दही है' इस आकार की प्रतीति मटका और दही के देखी जाती है, उसी प्रकार 'इन तन्तुओं में पट है' इस आकार की प्रतीति भी होती है । इससे समझते हैं कि तन्तु और पट ( प्रभृति अयुतसिद्धों ) में भी कोई सम्बन्ध सम्बन्ध रहने पर ही
SR No.020573
Book TitlePrashastapad Bhashyam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreedhar Bhatt
PublisherSampurnanand Sanskrit Vishva Vidyalay
Publication Year1977
Total Pages869
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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