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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandir ७१६ न्यायकन्दलीसंवलितप्रशस्तपादभाष्यम् [कर्मनिरूपण प्रशस्तपादभाष्यम् मुसलयोरभिघाताख्यः संयोगः क्रियते, स संयोगो मुसलगतवेगमपेक्षमाणोऽप्रत्ययं मुसले उत्पतनकर्म करोति । तत्कर्माभिघातापेक्षं मुसले संस्कारमारभते। तमपेक्ष्य मुसलहस्तसंयोगोऽप्रत्ययं हस्तेऽप्युत्पतनकर्म अभिघात इन दोनों से मूसल में संस्कार की उत्पत्ति होती है । इस संस्कार के साहाय्य से मूसल और हाथ के संयोग के द्वारा हाथ में 'अप्रत्यय' अर्थात् बिना प्रयत्न के ही उत्क्षेपण क्रिया की उत्पत्ति होती है । यद्यपि पहिले का संस्कार नष्ट हो गया रहता है, फिर भी मूसल और उलूखल का संयोग पटु ( संस्कारजनक ) कर्म को उत्पन्न करता है । वह संयोग ही अपनी विशिष्टता के कारण न्यायकन्दली दात्महस्तसंयोगाद्धस्तमुसलसंयोगाद्धस्तमुसलयोर्युगपदपक्षेपणकर्मणी भवतः । ततोऽन्त्येन मुसलकर्मणोलूखलमुसलयोरभिघाताख्यः संयोगः क्रियते । अपक्षिप्तस्य मुसलस्यान्येन कर्मणा उलूखलमुसलसमवेतो मुसलस्योत्पतनहेतुः संयोगः क्रियत इत्यर्थः। स संयोगो मुसलगतवेगमपेक्षमाणोऽप्रत्ययमप्रयत्नपूर्वकं मुसले उत्पतनकर्म करोति । वेगो निमित्तकारणम्, मुसलं समवायिकारणम्। तत्कर्माभिघातापेक्षं मुसले संस्कारमारभते उत्पतनकर्म स्वकारणाभिघाताख्यं संयोगमपेक्षमाणं मुसले वेगमारभते । तं संस्कारमपेक्ष्य हस्तमुसल. प्रयत्न रूप निमित्तकारण के साहाय्य से कथित दोनों संयोग रूप असमवायिकारण के द्वारा अर्थात् आत्मा और हाथ के संयोग एवं हाथ और मूसल के संयोग इन दोनों संयोगों से एक ही समय दो अपक्षेपण क्रियायें ( अर्थात् हाथ और मूसल दोनों को नीचे की ओर ले आने की दो क्रियायें ) उत्पन्न होती हैं । "ततोऽन्त्येन मुसलकर्मणा उलूखलमुसलयोरभिघाताख्यः संयोगः क्रियते” अर्थात् अपक्षेपण क्रिया से युक्त मूसल की अन्तिम क्रिया से उलूखल और मूसल इन दोनों में समवाय सम्बन्ध से रहनेवाले उस संयोग की उत्पत्ति होती है, जिससे मूसल का उत्पतन होता है । वह संयोग मुसल में रहनेवाले वेग के साहाय्य से अप्रत्यय' अर्थात् बिना प्रयत्न के ही उस उत्पतन क्रिया को उत्पन्न करता है, जो मूसल में रहती है। इस ( अप्रत्ययक्रिया का ) वेग निमित्तकारण है और मूसल समवायि कारण है। 'तत्कर्माभिघातापेक्ष मुसले संस्कारमारभते' अर्थात् वह उत्पतनरूपा क्रिया अपने कारणीभूत उक्त अभिघात नाम के संयोग के द्वारा मूसल में वेग को उत्पन्न करती है। इसी ( वेगाख्य ) संस्कार के साहाय्य से हाथ और मसल का संयोग रूप असमवायिकारण हाथ में भी 'अप्रत्यय' अर्थात् प्रयत्न से निरपेक्ष क्रिया को उत्पन्न करता है । (प्र.) मसल में पहिले की अपक्षेपण क्रिया से उत्पन्न वेग नाम का संस्कार For Private And Personal
SR No.020573
Book TitlePrashastapad Bhashyam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreedhar Bhatt
PublisherSampurnanand Sanskrit Vishva Vidyalay
Publication Year1977
Total Pages869
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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