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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandir ७१५ प्रकरणम् भाषानुवादसहितम प्रशस्तपादभाष्यम् दात्महस्तसंयोगाद् यस्मिन्नेव काले हस्ते उत्क्षेपणकर्मोत्पद्यते, तस्मिन्नेव काले तमेव प्रयत्नमपेक्षमाणाद्धस्तमुसलसंयोगान्मुसलेऽपि कर्मेति । ततो दूरमुत्क्षिप्ते मुसले तदर्थेच्छा निवर्तते। पुनरप्यपक्षेपणेच्छोत्पद्यते । तदनन्तरं प्रयत्नस्तमपेक्षमाणाद् यथोक्तात संयोगाद्धस्तमुसलयो युगपदपक्षेपणकर्मणी भवतः, ततोऽन्त्येन मुसलकर्मणोल्खलसमय हाथ में क्रिया उत्पन्न होती है । एवं उसी समय प्रयत्न और हाथ एवं यूसल के संयोग इन दोनों से मूसल में भी क्रिया उत्पन्न होती है । इसके बाद उस मसल के दूर फेंके जाने पर उस मूसल विषयक इच्छा का नाश हो जाता है। फिर उसी के अपक्षेपण (निचे ले आने) की इच्छा उत्पन्न होती है । इसके बाद प्रयत्न एवं उक्त ( आत्मा और हाथ के ) संयोग इन दोनों से एक ही समय हाथ और मूसल दोनों में ही अपक्षेपणरूप क्रिया उत्पन्न होती है । मूसल की इस अन्तिम क्रिया से ऊखल में मूसल का अभिघात नाम का संयोग उत्पन्न होता है । उस कर्म और न्यायकन्दली समर्थो विशिष्ट एव जायते । तं प्रयत्नं विशिष्टं निमित्तमपेक्षमाणादात्महस्तसंयोगात् समवायिकारणाद् यस्मिन्नेव काले हस्ते उत्क्षेपणकर्मोत्पद्यते, तस्मिन्नेव काले तमेव प्रयत्नमुभयार्थमुत्पन्नमपेक्षमाणाद्धस्तमुसलसंयोगादसमवायिकारणान्मुसलेऽपि कर्म भवति, कारणयोगपद्यात् । ततो दूरभुत्क्षिप्ते मुसले तदर्थेच्छा निवर्तते उत्क्षेपणेच्छा निवर्तते। पुनरप्यपक्षेपणेच्छोत्पद्यते हस्तेन मुसलस्यापक्षेपर्णच्छोपजायत इत्यर्थः। तदनन्तरं प्रयत्नः सोऽपि जायमान उत्क्षेपणप्रयत्नवद् विशिष्ट एव जायते । तं च प्रयत्नमपेक्षमाणाद् यथोक्तात् संयोगद्वयाही समय ऊपर की ओर उछालने के सामर्थ्य से युक्त ही उत्पन्न होता है। उस प्रयत्न रूप विशेष प्रकार के निमित्त कारण से जिस समय आत्मा और हाथ के संयोग रूप असमवायिकारण के द्वारा हाथ में उत्क्षेपण कर्म की उत्पत्ति होती है, उसी समय हाथ और मूसल दोनों की क्रिया के लिए उत्पन्न उक्त प्रयत्न रूप निमित्तकारण से ही हाथ और मसल के संयोग रूप असमवायिकारण के द्वारा मूसल में भी कर्म की उत्पत्ति होती है, क्योंकि एक ही समय हाथ और मूसल दोनों में ही क्रियोत्पत्ति के सभी कारण वर्तमान हैं। 'ततो दूरमुत्क्षिप्ते मुसले तदर्थेच्छा निवर्तते' अर्थात् उत्क्षेपण की इच्छा नहीं रह जाती। 'पुनरप्यपक्षेपणेच्छोत्पद्यते' अर्थात् हाथ से मूसल को नीचे की ओर ले आने की इच्छा उत्पन्न होती है। तदनन्तरं प्रयत्नः' यह अपक्षेपण का प्रयत्न भी उत्क्षेपण के उक्त प्रयत्न की तरह (एक ही समय हाथ और मूसल को नीचे की ओर ले आने के सामर्थ्य से ) युक्त ही उत्पन्न होता है। उक्त विशिष्ट For Private And Personal
SR No.020573
Book TitlePrashastapad Bhashyam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreedhar Bhatt
PublisherSampurnanand Sanskrit Vishva Vidyalay
Publication Year1977
Total Pages869
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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