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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandir ५५६ न्यायकन्दलीसंवलितप्रशस्तपादभाष्यम् [ गुणनिरूपणे संस्कार प्रशस्तपादभाष्यम् प्रयत्नेन मनश्चक्षुषि स्थायित्वाऽपूर्वमर्थ दिदृक्षमाणस्य विद्युत्सप्रयत्न के द्वारा मन को चक्षु में सम्बद्ध कर विशेष प्रकार की वस्तु को देखने न्यायकन्दली संस्कारस्मरणयोरन्यतरसापेक्षोऽन्त्यो वर्णः प्रत्यायकः, यथा चानेकसंस्काराः संभूय स्मरणं जनयन्ति तथोपपादितं द्वित्वे । अथ मन्यसे वर्णविषयात् संस्कारादर्थप्रतीतिरयुक्ता, संस्कारा हि यद्विषयोपलम्भसम्भावितजन्मानस्तद्विषयामेव स्मृतिमाधातुमीशते न कार्यान्तरम्। यथाह मण्डनः स्फोटसिद्धौ ___ संस्काराः खलु यद्वस्तुरूपप्रख्याविभाविताः । __ फलं तत्रैव जनयन्त्यतोऽर्थे धीन कल्प्यते ॥ इति । तदप्यसमीचीनम् । यतः पदार्थप्रतीत्यनुगुणतया प्रत्येकमनुभवैराधीयमाना वर्णविषयाः संस्काराः स्मृतिहेतुसंस्कारविलक्षणशक्तय एवाधीयन्ते, के कारण हैं, वर्ण नहीं) । (उ०) यह कहना भी वर्ण को ही अर्थबोध का कारण माननेवाले प्रतिपक्षी के मत की आलोचना किये बिना ही मालूम होता है। यह ठीक है कि वर्ण चिरस्थायी नही हैं (क्षणिव हैं ) फिर क्रमशः उत्पन्न उनके सभी संस्कार मिलकर पदार्था षयक बोध को उत्पन्न करेंगे। अथवा ऐसा भी कह सकते हैं कि पहिले पहिले वर्ण के संस्कार अथवा पहिले पहिले वर्ण की स्मृति इन दोनों में से किसी एक के साहाय्य से केवल अन्तिम वर्ण से भी अर्थ का बोध मान सकते हैं। अनेक संस्कार मिलकर एक ही स्मरण को जिस रीति से सम्पादन करते हैं. वह रीति द्वित्वनिरूपण के प्रसङ्ग में लिख आये हैं। यदि यह कहना चाहते हों कि (प्र०) जिस विषयक अनुभव से जिस संस्कार की उत्पत्ति होगी, वह संस्कार उसी विषयक स्मृति को उत्पन्न कर सकती है, जिससे एक विषयक संस्कार से अपर विषयक स्मृतिरूप भी दूसरा कार्य नहीं हो सकता । अतः वर्णविषयक संस्कार से अर्थविषयक बोध रूप दूसरे कार्य की उत्पत्ति कैसे होगी ? ( क्योंकि वर्णविषयक संस्कार से तो वर्ण विषयक स्मृतिरूप कार्य ही उत्पन्न हो सकता है )। जैसा कि आचार्य मण्डन ने अपने 'स्फोटसिद्धि' नामक ग्रन्थ में कहा है कि संस्कार जिन विषयों की प्रख्या' अर्थात् अनुभव से उत्पन्न होंगे, उन्हीं विषयों में वे स्मृति को उत्पन्न कर सकते हैं, अत: वर्णविषयक संस्कारों से अर्थविषयक धी' अर्थात् बोध उत्पन्न नहीं हो सकता । ( उ० ) किन्तु यह कहना भी ठीक नहीं है, क्योंकि ( अन्यत्र स्मृति और संस्कार के कार्यकारणभाव में समानविषयत्व का नियम यद्यपि ठीक है तथापि ) पदों में या वाक्यों में प्रयुक्त होनेवाले वर्षों के हर एक अनुभव से आत्मा में जिस संस्कार का आधान होता है, वह संस्कार स्मृति के कारणीभूत संस्कारों से कुछ विलक्षण प्रकार का होता है, जिस संस्कार में पद के अर्थविषयक अनुभव कराने की शक्ति होती है. उस संस्कार के कार्य For Private And Personal
SR No.020573
Book TitlePrashastapad Bhashyam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreedhar Bhatt
PublisherSampurnanand Sanskrit Vishva Vidyalay
Publication Year1977
Total Pages869
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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