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________________ ana Kendra Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org www.kobatirth.org Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandir ६४८ न्यायकन्दलीसंवलितप्रशस्तपादभष्यम् [गुणनिरूपणे संस्कार प्रशस्तपादभाष्यम् पटुप्रत्ययापेक्षादात्ममनसोः संयोगादाश्चर्येऽथें पटुः संस्कारातिशयो जायते । यथा दाक्षिणात्यस्योष्ट्रदर्शनादिति । विद्याशिल्पव्यायामादिघभ्यस्यमानेषु तस्मिन्नेवार्थ पूर्वपूर्वसंस्कारमपेक्षमाणादुत्तरोत्तरस्मात् प्रत्ययादात्ममनसोः संयोगात् संस्कारातिशयो जायते । ज्ञान से इसकी उत्पत्ति होती है। पटु ( अनुपेक्षात्मक ) ज्ञान एवं आत्मा और मन के संयोग से अद्भुत विषयों में 'पटु' नाम के विशेष प्रकार के संस्कार की उत्पत्ति होती है। जैसे कि दक्षिण देश के रहनेवाले को ऊँट के देखने से ( ऊँट का पटु संस्कार होता है )। विद्या, शिल्प एवं व्यायाम प्रभृति वस्तुओं का बार बार अभ्यास करते रहने से उन्हीं विषयों के पूर्वपूर्व संस्कारों से उत्पन्न प्रतीतियों (स्मृतियों ) के कारण आत्मा और मन के संयोग से एक विशेष प्रकार के संस्कार की उत्पत्ति होती है। न्यायकन्दली निमित्तविशेषापेक्षं न केवलम्, मन्दगतौ वेगाभावात् । नियतदिकक्रियाप्रबन्धहेतुः। यद्दिगाभिमुख्येन क्रियया वेगो जन्यते तद्दिगभिमुखतयैव क्रिया. सन्तानस्य हेतुरित्यर्थः। स्पर्शवदिति । विशिष्टेन स्पशवद्व्यसंयोगेनात्यन्तनिबिडावयववृत्तिना वेगो विनाश्यते, यः स्वयं विशिष्टः। मन्दस्तु वेगः स्पर्शवद्रव्यसंयोगमात्रेण विनश्यति, यथातिदूरं गतस्येषोस्स्तमितवायुप्रतिबद्धस्य । क्वचिदिति । बाहुल्येन तावद्वेगः कर्मजः, क्वचिद् वेगवदवयवारब्धे जलावयविनि कारणवेगेभ्योऽपि जायते। ___ भावनेत्यादि । भावनासंज्ञकस्तु संस्कार आत्मगुण: । दृष्टश्रुतानुभूतेरूप क्रिया के रहने पर भी वेग की उत्पत्ति नहीं होती है। 'नियतदिक्रियाप्रबन्धहेतुः' वेग नियत दिशा में ही क्रियासमूह का उत्पादक है। अर्थात् जिस दिशा की तरफ क्रिया से वेग उत्पन्न होता है, उसी दिशा की तरफ क्रियासमूह को वेग उत्पन्न करता है। 'स्पर्शवदिति' स्पर्श से युक्त द्रव्य के विशेष प्रकार के एवं निबिड़ अवयव के द्रव्य में रहनेवाले संयोग से तीब्र वेग का विनाश होता है। मन्द वेग का विनाश तो स्पर्श से युक्त किसी भी द्रव्य के संयोग से हो जाता है, जैसा कि अन्यत्र दूर गये हुए बाण के वेग का विनाश मन्द गति के वायु से भी हो जाता है । 'क्यचिदिति' अर्थात् अधिकांश वेगों की उत्पत्ति तो क्रिया से ही होती है, किन्तु कुछ वेगों की उत्पत्ति आश्रायीभूत द्रव्य के अवयवों में रहनेवाले वेग से भी होती है, जैसे कि जल में कारणगुणक्रम से भी वेग की उत्पत्ति होती है। __'भावनेत्यादि' अर्थात् भावना नाम का जो संस्कार वह आत्मा का गुण है। 'दृष्टानुभूतेषु' इस वाक्य के द्वारा इस संस्कार से उत्पन्न होनेवाले कार्यों को दिखलाया For Private And Personal
SR No.020573
Book TitlePrashastapad Bhashyam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreedhar Bhatt
PublisherSampurnanand Sanskrit Vishva Vidyalay
Publication Year1977
Total Pages869
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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