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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandir ६४७ प्रकरणम् ] भाषानुवादसहितम् प्रशस्तपादभाष्यम् कर्मणो जायते नियतदिक्रियाप्रबन्धहेतुः स्पर्शवव्यसंयोगविशेषविरोधी क्वचित् कारणगुणपूर्वक्रमेणोत्पद्यते । भावनासंज्ञकस्त्वात्मगुणो दृष्टश्रुतानुभूतेष्वर्थेषु स्मृतिप्रत्यभिज्ञानहेतुर्भवति ज्ञानमददुःखादिविरोधी । पटवभ्यासादरप्रत्ययजः। नियमित देश में ही क्रियासमूह का कारण है। स्पर्श से युक्त द्रव्यों का विशेष प्रकार का संयोग उसका विनाशक है। कहीं वह अपने आश्रय के समवायिकारण में रहनेवाले वेग से भी उत्पन्न होता है। (२) पहिले देखे हुए, सुने हुए, एवं अनुमान के द्वारा ज्ञात अर्थों की स्मृति और प्रत्यभिज्ञा का कारणीभूत संस्कार ही 'भावना' है। ज्ञान, मद एवं दुःखादि से उसका नाश होता है। पटु, अभ्यास, आदर और न्यायकन्दली सक्त्वादीनां पिण्डीभावप्राप्तिहेतुः संयोगविशेष मृजा कायस्योद्वर्तनादिकृता शुद्धिः। आदिशब्दान्मृदुत्वं च, तेषां हेतुः । स्नेहस्यापि गुरुत्ववन्नित्यानित्यत्वनिष्पत्तयः । गुरुत्वं च परमाणुषु नित्यम्, कार्ये च कारणगुणपूर्वकमाश्रय. विनाशाद् विनाशि, तथा स्नेहोऽपीति ।। संस्कारस्त्रिविधो वेगो भावना स्थितिस्थापकश्चेति । तत्र वेगो मूर्तिमत्सु पञ्चद्रव्येषु निमित्तविशेषापेक्षात् कर्मणो जायते । पञ्चसु द्रव्येषु पृथिव्यप्तेजोवायुमनस्सु कर्म वेगं करोति नान्यत्र, स्वयमभावात् । नोदनाभिघातादि'मृजा' शब्द से शरीर की वह शुद्धि अभिप्रेत है, जो शरीर में (उबटन प्रभृति के) मर्दन से प्राप्त होती है । आदि शब्द से मृदुत्वादि को समझना चाहिए । 'स्नेह' इन सबों का कारण है। 'स्नेहस्यापि गुरुत्ववन्नित्यानित्यत्वनिष्पत्तयः अर्थात् गुरुत्व जिस प्रकार परमाणुओं में नित्य है, उसी प्रकार स्नेह भी परमाणुओं में नेत्य है । जिस प्रकार कार्यद्रव्य में 'गुरुत्व' कारणगुणक्रम से उत्पन्न होता है, एवं आश्रय के विनाश से विनाश को प्राप्त होता है, उसी प्रकार कार्य द्रव्य में स्नेह भी कारणगुणक्रम से उत्पन्न होता है, एवं आभय के विनाश से विनाश को प्राप्त होता है। संस्कारस्त्रिविधो वेगो वना स्थितिस्थापक श्चेति, तत्र वेगो मूत्तिम.सु पञ्चद्रव्येषु निमित्तविशेषापेक्षात् कर्मणो जायते ।' पाँच द्रव्यों में अर्थात् पृथिवी, जल, तेज, वायु और मन इन पाँच द्रव्यों में क्रिया से वेग को उत्पति होती है, और किसी वस्तु में नहीं, क्योंकि इन पांच द्रव्यों को छोड़कर क्रिया स्वयं अन्यत्र कहीं नही है। क्रिया को वेग के उत्पादन में नोदन या अभिघात प्रभृति कारणों का साहाय्य आवश्यक है, वह स्वतन्त्र होकर केवल अपने ही बल से वेग का उत्पादन नहीं कर सकती. क्योंकि मन्दगति For Private And Personal
SR No.020573
Book TitlePrashastapad Bhashyam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreedhar Bhatt
PublisherSampurnanand Sanskrit Vishva Vidyalay
Publication Year1977
Total Pages869
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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