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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandir ६४४ न्यायकन्दलीसंवलितप्रशस्तपादभाष्यम् [गुणनिरूपणे द्रवत्व प्रशस्तपादभाष्यम् ताख्यः, तेन परमाणुद्रवत्वप्रतिबन्धात् कायें हिमकरकादौ द्रवत्वानुत्पत्तिः। नैमित्तिकं च पृथिवीतेजसोरग्निसंयोगजम् । कथम् ? सर्जितुमधूच्छिष्टादीनां कारणेषु परमाणुष्वग्निसंयोगाद् वेगापेक्षात् कर्मोत्पत्तौ तज्जेभ्यो विभागेभ्यो द्रव्यारम्भकसंयोगविनाशात् कार्यद्रव्यनिवृत्तावग्निसंयोगादौष्ण्यापेक्षात् स्वतन्त्रेषु परमाणुषु द्रवत्वमुत्पद्यते, (उ०) यह बात नहीं है, क्योंकि दिव्यतेज के साथ संयुक्त परमाणुओं में द्रव्य का उत्पादक संयोग ही सङ्घात रूप होता है ( अर्थात् उक्त परमाणुओं का ही संयोग कठिन होता है) इसी से जल का स्वाभाविक द्रवत्व प्रतिरुद्ध हो जाता है, जिससे जल से उत्पन्न होनेवाला पाला और बरफ में सांसिद्धिक द्रवत्व की उत्पत्ति नहीं हो पाती। अग्नि के संयोग से पृथिवी और तेज ( इन दोनों ही ) में नैमित्तिक द्वत्व की उत्पत्ति होती है । (प्र०) किस प्रकार ? ( इनमें नैमित्तिक द्रवत्व की उत्पत्ति होती है ? ) ( उ०) घृत, लाह, मोम (मच्छिष्ट) प्रभृति द्रव्यों के उत्पादक परमाणुओं में बेग की सहायता से अग्निसंयोग के द्वारा क्रिया की उत्पत्ति होती है। उस क्रिया से परमाणुओं में विभाग उत्पन्न होते हैं । इस विभाग से उक्त परमाणुओं में रहनेवाले ( द्वयणुक के ) उत्पादक संयोग का विनाश होता है । इस (संयोगविनाश ) से घृतादि कार्य द्रव्यों के नाश हो जाने के बाद उष्णता की सहायता से अग्निसंयोग के द्वारा स्वतन्त्र (परस्परासम्बद्ध ) परमाणुओं में द्रवत्व की उत्पत्ति होती न्यायकन्दली मित्ययुक्तम् । समाधत्ते--दिव्येनेति । सर्वत्रोदके स्वभावसिद्धस्य द्रवत्वस्योप. लम्भादपां स्वभावसिद्धमेव द्रवत्वं तावनिश्चितम् । यत्र तु हिमकरकादौ कार्ये द्रवत्वानुत्पत्तिस्तत्र दिव्येन तेजसा सम्बद्धानामाप्यपरमाणूनां परस्परसंयोगो उपलब्धि होती है, इससे समझते हैं कि जल का द्रवत्व स्वाभाविक ही है। हिम कारकादि जलीय द्रव्यों में द्रवत्व की जो उत्पत्ति नहीं होती है उसका हेतु यह है कि दिव्य तेज के साथ उन द्रव्यों के उत्पादक परमाणु सम्बद्ध रहते हैं, अतः उन परमाणुओं के द्रव्योत्पादक संयोग संघातात्मक होते हैं, जिससे हिमकरकादि के सांसिद्धिकद्र वत्व प्रतिरुद्ध हो जाते हैं। (प्र०) 'तेज के संयोग से सांसिद्धिक द्रवत्व का प्रतिरोध होता है' यह किस प्रमाण से समझते हैं ? ( उ० ) अनुमान के द्वारा समझते हैं, क्योंकि हिमकरकादि से भिन्न For Private And Personal
SR No.020573
Book TitlePrashastapad Bhashyam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreedhar Bhatt
PublisherSampurnanand Sanskrit Vishva Vidyalay
Publication Year1977
Total Pages869
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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