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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandir ६३२ न्यायकन्दलीसंवलितप्रशस्तपादभाष्यम प्रशस्तपादभाष्यम् विषयानुस्मरणेच्छासङ्कल्पेष्वानिर्भवति तद् विद्याशमसन्तोषधर्मविशेषनिमित्तमिति ॥ विषयों से यह उन विषयों के संकल्प से उत्पन्न होता है। आत्मतत्त्वज्ञानियों को जो सुख बिना विषयों के, विषयों के स्मरण के न रहने पर भी बिना इच्छा और बिना संकल्प के ही उत्पन्न होता है, उस पुरुष का आत्मतत्त्वज्ञान, शम, सन्तोष एवं विशेष प्रकार के धर्म उस सुख के कारण हैं। न्यायकन्दली सन्निकर्षे सतीष्टोपलब्धीन्द्रियार्थसन्निकर्षाद् धर्माद्यपेक्षादि यदुत्पद्यते तत् सुखम् । सन्निहितेऽप्यभिमतेऽर्थे विषयान्तरव्यासक्तस्य सुखानुत्पादादिष्टोपलब्धेः कारणत्वं गम्यते । वियुक्तस्य सुखाभावाद् विषयसन्निकर्षस्यापि कारणत्वावगमः। धर्मादीत्यादिपदेन स्वस्थतादिपरिग्रहः। अनुग्रहाभिष्वङ्गनयनादिप्रसादजनकमिति कार्योपवर्णनम् । अनुग्रहः सुखविषयं संवेदनम् । अभिष्वङ्गोऽनुरागः, नयनादि. प्रसादो वैमल्यम् । आदिशब्दान्मुखप्रसादस्य ग्रहणम् । एतेषां सुखं जनकम् । सुखेनोत्पन्नेन स्वानुभवो जन्यते, स एवात्मनोऽनुग्रहः, सुखे चोपजाते मुखादीनां प्रसन्नता स्यात् । सुखसाधनेष्वनुरागः सुखाद् भवति । अतीतेषु स्मृतिजम् अतीतेषु सुखसाधनेष्वनुभूतेषु सुखं पूर्वानुस्मरणाद् भवति । अनागतेष्विदं मे भविष्य में लगा रहे तो उसे विषय से उत्पन्न होनेवाला सुख नहीं मिलता, अतः सुख के प्रति इष्ट विषय की उपलब्धि को भी कारण माना गया है । और सभी कारणों के रहने पर भी यदि स्रगादि विषयों के साथ पुरुष का सम्बन्ध नहीं है, तो फिर विषय से वियुक्त उस पुरुष को सुख नहीं मिलता, अतः सुख के प्रति भोक्ता और विषय के संनिकर्ष को भी कारण मानना पड़ेगा। कथित 'धर्मादि' पद में प्रयुक्त आदि' पद से स्वास्थ्य प्रभृति सहायकों को समझना चाहिए। 'अनुग्रहाभिष्वङ्गनयनादिप्रसादजनकम्' इस वाक्य के द्वारा सुख से होनेवाले कार्यों का वर्णन किया गया है। सुख का प्रत्यक्ष ही प्रकृत 'अनुग्रह' शब्द का अर्थ है। भभिष्वङ्ग' शब्द से अनुराग अभिप्रेत है। 'नयनादिप्रसाद' शब्द से आँखो की स्वच्छता को समझना चाहिए । 'नयनाविप्रसाद' शब्द में प्रयुक्त 'आदि' शब्द से मुंह की प्रसन्नता प्रभृति को समझना चाहिए। इन सबों का कारण सुख है। सुख उत्पन्न होकर अपने आश्रयीभूत आत्मा में जो अपने अनुभव का उत्पादन करता है, वही आत्मा के साथ सुख का अनुग्रह है। सुख के उत्पन्न होने पर मुख पर प्रसन्नता छा जाती है। सुख के कारणों में जो अनुराग उत्पन्न होता है, उसका कारण भी सुख हो है । 'अतीतेषु स्मृतिजम्' अर्थात् पूर्व में For Private And Personal
SR No.020573
Book TitlePrashastapad Bhashyam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreedhar Bhatt
PublisherSampurnanand Sanskrit Vishva Vidyalay
Publication Year1977
Total Pages869
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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