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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandir ६२० न्यायकन्दलीसंवलितप्रशस्तपादभाष्यम् [गुणेऽनुमानेऽवयव प्रशस्तपादभाष्यम् तस्मात् पश्चावयवेनैव वाक्येन परेषां स्वनिश्चितार्थप्रतिपादनं क्रियत इत्येतत्परार्थानुमानं सिद्धमिति । अत: पाँच अवयव वाक्यों से ही कोई समझानेवाला अपने निश्चित अर्थ को दूसरे को समझा सकता है। इस प्रकार यह सिद्ध होता है कि पाँच अवयव वाक्य ही परार्थानुमान हैं।। न्यायकन्दली साध्यवाक्यार्थवादिनस्तु-निगमनस्येत्थमर्थवत्त्वं समर्थयन्ति-अन्यदेव घटस्य कृतकत्वमन्यच्छब्दस्य, तत्र यदि नाम घटस्य कृतकत्वमनित्यत्वेन व्याप्तं किमेतावता शब्दगतेनापि तथा भवितव्यम् ? इति व्यामुह्यतो दशितयोरपि लिङ्गस्य पक्षधर्मत्वाविनाभावयोः साध्यप्रतीत्यभावे सति निगमनेन तस्मादिति सर्वनाम्ना सामान्येन प्रवृत्तव्याप्तिग्राहकं प्रमाणमनुस्मार्य शब्दे अनित्यत्वं प्रतिपाद्यते, यस्माद् यत् कृतकं तदनित्यमिति सामान्येन प्रतीतं न विशेषतः, तस्मात् कृतकत्वेनानित्यः शब्दः इति । एतस्मिन् पक्षे च प्रकरणसमकालात्ययापदिष्टत्वाभावः पक्षवचनेनैवोपदय॑ते, असत्प्रतिपक्षत्वाबाधितविषयत्वयोः पक्षलक्षणत्वात् । साध्यवाक्यार्थ वादिगण ( निगमन को साध्य का ज्ञापक माननेवाले ) निगमन की सार्थकता की पुष्टि इस प्रकार करते हैं कि ( दृष्टान्तभूत ) घट में रहनेवाला कृतकत्व और शब्द में रहने वाला कृतकत्व दोनों भिन्न हैं । अतः कथित व्याप्ति और पक्षधर्मता को समझनेवाले पुरुष को भी यह भ्रान्ति हो सकती है कि घट में रहनेवाले कृतकत्व मे अनित्यत्व की व्याप्ति के रहने पर भी यह निश्चित रूप से नहीं कहा जा सकता कि शब्द में रहनेवाले कृतकत्व में भी अनित्यत्व की ब्याप्ति है ही। इस प्रकार के पुरुष को (घट में रहने वाले अनित्यत्व में कृतकत्व को व्याप्ति का ज्ञान रहने पर भी) शब्द में अनित्यत्व रूप साध्य की अनुमिति नहीं हो सकती। इसी के लिए तस्मात्' इत्यादि सर्वनाम घटित निगमनवाक्य के द्वारा कृतकत्व सामान्य में अनित्यत्व सामान्य की व्याप्ति का स्मरण कराया जाता है, जिससे उसे भी शब्द में अनित्यत्व का ज्ञान हो। अभिप्राय यह है कि उक्त उदाहरण वाक्य से सामान्य रूप से ही यह प्रतीति होती है कि जितनी भी वस्तुयें कृति से उत्पन्न होती है, वे सभी अनित्य होती हैं। उदाहरण वाक्य का यह विशेष अभिप्राय ही नहीं है कि 'घट कृति से उत्पन्न होता है अतः वही अनित्य है'। तस्मात् शब्द भी कृतिजन्य है. वह भी अनित्य है। इस मत में अबाधितत्व और असत्प्रतिपक्षितत्व हेतु के ये दोनों ही सामर्थ्य पक्षवचन (प्रतिज्ञावावय) से ही प्रदर्शित होते हैं। क्योंकि ये दोनों वस्तु पक्ष के स्वरूप के ही अन्तर्गत हैं । For Private And Personal
SR No.020573
Book TitlePrashastapad Bhashyam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreedhar Bhatt
PublisherSampurnanand Sanskrit Vishva Vidyalay
Publication Year1977
Total Pages869
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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