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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandir प्रकरणम् भाषानुवादसहितम् न्यायकन्दली वदति, न च तथानभिधाने साध्यसाधनयोात्तिप्रतिपतिविप्रतिपन्नस्य भवति, अतोऽयमव्यावृत्तः । यनिष्क्रियं तदद्रव्यमिति विपरीतव्यावृत्तः। यथा साध्यं व्यापकं साधनं व्याप्यम् , तथा साध्याभावो व्याप्यः साधनाभावश्च व्यापकः । यथोक्तम् नियम्यत्वनियन्तृत्वे भावयोर्यादृशे मते।। विपरीते प्रतीयेते ते एव तदभावयोः ॥ इति । तत्र द्रव्यं वायुः कियावत्त्वादित्यत्र विपर्ययव्याप्तिप्रदर्शनार्थं यदद्रव्यं तदक्रियमिति वाच्यम्, अयं तु न तथा ब्रूते, किन्त्वेवमाह-यन्निष्क्रियं तदद्रव्यरखनेवाले पुरुष को साध्य के अभाव और हेतु के अभाव की ( उपयुक्त ) प्रतीति नहीं हो पाती है, अतः उक्त स्थल में घट 'अव्यावृत्त' नाम का निदर्शनाभास समझना चाहिए। (६) 'द्रव्यं वायुः क्रियावत्त्वात्' इस अनुमान के लिए यदि कोई 'यनिष्क्रिय तदद्रव्यम्' इस प्रकार से वैधर्म्य निदर्शन का प्रयोग करना चाहे, तो वह 'विपरीतव्यावृत्ति' नाम का ( वैधयं ) निदर्शनाभास होगा, क्योंकि 'यद् द्रव्यं न भवति' इत्यादि प्रकार से साध्याभाव के बोधक वाक्य का प्रयोग पहिले न कर उसके विपरीत' अर्थात् उल्टा पहिले हेतु के अभाव का बोधक 'यनिष्क्रियम्' इस वाक्य का ही प्रयोग पहिले किया गया है। जैसे कि साध्य व्यापक है और साधन व्याप्य है ( अतः साधर्म्य निदर्शन वाक्य में पहिले हेतु बोधक पद का प्रयोग होता है, बाद में साध्य बोधक पद का, उसी प्रकार ) साध्याभाव व्याप्य है और हेत्वभाव व्यापक, ( अतः वैधये निदर्शन वाक्य में पहिले साध्याभाव के बोधक वाक्य का ही प्रयोग होना चाहिए, बाद में हत्वभाव के बोधक वाक्य का, अर्थात् दोनों ही प्रकार के निदर्शन वाक्यों में व्याप्य के बोधक वाक्य का पहिले प्रयोग चाहिए, बाद में व्यापक के बोधक वाक्य का, प्रकृत में इसके विपरीत हुआ है। अतः 'विपरीतव्यावृत्त' नाम का निदर्शनाभास है। जैसे कि ( अनुमिति के लिए) साध्य का हेतु से व्यापक होना और हेतु का साध्य से व्याप्य होना सहायक है, उसी प्रकार ( अन्वयव्यतिरेकी और केवलव्यतिरेकी हेतु का अनुमानों में ) हेतु के अभाव से साध्य के अभाव का व्यापक होना और साध्य के अभाव का हेतु के अभाव का व्याप्य होना भी सहायक है। जैसा कहा गया है कि जिस प्रकार के हेतु में नियन्तत्व ( व्याप्यत्व ) एवं जिस प्रकार के साध्य में नियम्यत्व (व्यापकत्व ) रहता है, उसके विपरीत उन दोनों के अभावों में हेतु का अभाव ही व्यापक और साध्य का अभाव ही व्याप्य होता है। इस स्थिति में 'द्रव्यं वायुः क्रियावत्त्वात्' इस अनुमान में यदि विपर्यय (व्यतिरेक) व्याप्ति का दिखाना आवश्यक हो तो 'यदद्रव्यं तदक्रियम्' इस प्रकार से निदर्शन वाक्य का प्रयोग करना चाहिए। प्रकृत में वह पुरुष ( जो निदर्शनाभास का प्रयोग करता है ) इस प्रकार न कह कर, उसका उल्टा (विपरीत ) ऐसा कहता है कि 'यनिष्क्रियं तदद्रव्यम्' अर्थात For Private And Personal
SR No.020573
Book TitlePrashastapad Bhashyam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreedhar Bhatt
PublisherSampurnanand Sanskrit Vishva Vidyalay
Publication Year1977
Total Pages869
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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