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प्रकरणम् ।
भाषानुवादसहितम्
६०३
प्रशस्तपादभाष्यम् ___ यदनित्यं तन्मूतं दृष्टम्, यथा कर्म यथा परमाणुर्यथाकाशं यथा तमः, घटवत् , यनिष्क्रियं तदद्रव्यञ्चेति लिङ्गानुमेयोभयाव्यावृत्ताश्रयासिद्धाव्यावृत्तविपरीतव्यावृत्ता वैधम्यनिदर्शनाभासा इति ॥
(रूपादि अनित्य गुणों में यदि कोई अनित्यत्व हेतु से मूर्त्तत्व के साधन के लिए प्रस्तुत होकर वैधय॑निदर्शन के लिए (१) क्रिया, (२) परमाणु, ( ३ ) आकाश, (४) अन्धकार और ( ५ ) घट जैसी वस्तुओं को उपस्थित करे तो ये सभी वस्तुयें ( उक्त अनुमान के लिए प्रयुक्त होने पर ) 'वैधर्म्यनिदर्शनाभास' होंगे। एवं (आकाशादि निष्क्रिय द्रव्यों में द्रव्यत्व हेतु से क्रियावत्त्व के अनुमान के लिए प्रयुक्त सत्ता जाति भी ) जिसमें क्रिया नहीं है, वह द्रव्य भी नहीं है, जैसे कि (६) 'सत्ता' इस प्रकार से प्रयुक्त होने पर वैधर्म्यनिदर्शनाभास' ही होगा। ( वैधर्म्यनिदर्शनाभास रूप दोषों के ये छ: नाम हैं-(१) लिङ्गाव्यावृत्त (२) अनुमेयाव्यावृत्त, ( ३ ) उभयाव्यावृत्त, (४ : आश्रयासिद्ध, (५) अव्यावृत्त और (६) विपरीत व्यावृत्त ( तदनुसार वैधय॑निदर्शनाभास रूप दुष्ट निदर्शन भी छः हैं )
न्यायकन्दली अतो व्याप्तिाप्यगतत्वेन दर्शनीया 'यत् क्रियावत् तद् द्रव्यमिति । न व्यापकगतत्वेन तत्र तस्या अभावात्, अतो विपरीतानुगतोऽयम् । लिङ्गं चानुमेयं चोभयं चाश्रयश्च लिङ्गानुमेयोभयाश्रयाः, तेऽसिद्धा येषां ते लिङ्गानुमेयोभयाश्रयासिद्धाः, लिङ्गानुमेयोभयाश्रयासिद्धाश्चाननुगताश्च विपरीतानुगताश्चेति योजना।
वेधर्म्यनिदर्शनाभासान् कथयति यदनित्यमित्यादिना । नित्यः शब्दोऽ. मूर्त्तत्वाद् यदनित्यं तन्मूतं यथा कर्मेति लिङ्गाव्यावृत्तो वैधर्म्यनिदर्शना
अतः व्याप्य (हेतु) में ही व्याप्ति की वर्तमानता दिखानी चाहिए, जैसे कि 'यत् क्रियावत् तद् द्रव्यम्' इस प्रकार के वाक्यों से होता है । व्यापक में व्याप्ति को नहीं दिखाना चाहिए, क्योंकि व्यापकीभूत वस्तु में रहने वाली व्याप्ति (अनुमिति की उपयोगी) नहीं है । अतः यत् द्रव्यं तत् क्रियावत्' इत्यादि प्रकार के निदर्शनवाक्य 'विपरीतानुगत' निदर्शनाभास हो हैं। लिङ्गानुमेयोभयाश्रयासिद्धाननुगतविपरीतानुगताः' इस समस्तवाक्य का विग्रह 'लिङ्गञ्चानुमेयञ्चोभयञ्चाश्रयश्च लिङ्गानुमेयोभयाश्रयाः, ते असिद्धा येषां ते लिङ्गानुमेयोभयाश्रयासिद्धाः, लिङ्गानुमेयोभयाश्रयासिद्धाश्चाननुगताश्च विपरीतानुगताश्च' इस प्रकार समझना चाहिए।
'यदनित्यम्' इत्यादि सन्दर्भ के द्वारा वैधर्म्य निदर्शनाभासों का उपपादन करते हैं । वैधर्म्य निदर्शनाभास भी निम्नलिखित छ: प्रकार के हैं, (१) लिङ्गाव्यावृत्त, (२) अनुमे
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