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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandir प्रकरणम् ] भाषानुवादसहितम् प्रशस्तपादभाष्यम् दृष्टत्वादिति ( अ. २ आ. २ सू. ७) नान्यार्थत्वाच्छब्दे विशेषदर्शनात् । संशयानुत्पत्तिरित्युक्ते नायं द्रव्यादोनामन्यतमस्य विशेषः स्याच्छ्रावणत्वं अत: कथित अनध्यवसित हेत्वाभास असाधारण के उक्त लक्षण से युक्त होने के कारण संशय रूप ज्ञान का ही कारण होगा अनध्यवसाय रूप ज्ञान का नहीं, क्योंकि वस्तुओं के विशेष (व्यक्तिगत ) धर्म ही उनके सजातीयों और विजातीयों की अपेक्षा 'असाधारण' समझ जाते हैं। (उ०) यह आक्षेप युक्त नहीं है, क्योंकि उस सूत्र का कुछ दूसरा ही र्थ है। किसी ने आक्षेप किया था कि शब्द में श्रावणत्व (कान से सुनना) रूप उसका असाधारण (विशेष) धर्म न्यायकन्दली शब्दस्य रूपादिभ्यः समानजातीयेभ्योऽयं विशेषः ? किं वा विजातीयेभ्यः ? यदि शब्दो गुणस्तदा रूपादिभ्यः सजातीयेभ्यो विशेषोऽयम्, अथ द्रव्यं कर्म वा? तदा विजातीयेभ्य इति शब्दे श्रावणत्वाद् द्रव्यं गुणः कर्मति संशय इति पूर्व पक्षवादिना सूत्र विरोधे दर्शिते सत्याह-नान्यार्थत्वादिति। नायं सूत्रार्थो यदसाधारणो धर्मः संशयहेतुरिति, किन्त्वस्यान्य एवार्थः । तमेवार्थं दर्शयतिशब्दे विशेषदर्शनादित्यादिना। श्रोत्रग्रहणो योऽर्थः स शब्द इति प्रतिपाद्य तस्मिन् द्रव्यं गणः कर्मेति संशय इत्यभिहितं सूत्रकारेण । तस्यायमर्थः-तस्मिन् में यह वितर्क उपस्थित होता है कि शब्द में क्या उसके सजातीय रूपादि गुणों की अपेक्षा यह 'श्रावणत्व, रूप विशेष है, अथवा द्रव्यकर्मादि विजातीय पदार्थों की अपेक्षा यह 'विशेष' है ? शब्द अगर गुण है तो फिर रूपादि उसके सजातीयों की अपेक्षा ही श्रावणत्व उसका विशेष है। शब्द अगर द्रव्य या कर्म है ? तो फिर विजातीय की अपेक्षा ही यह श्रावणत्व रूप विशेष शब्द में है। इस रीति से श्रावणत्व रूप असाधारण धर्म के द्वारा शब्द में 'यह द्रव्य है ? या गुण है ? अथवा कर्म है ? इस प्रकार के संशय की आपत्ति के द्वारा सूत्रविरोध का प्रसङ्ग पूर्वपक्षवादियों के उठाने पर उसके समाधान के लिए ही भाष्यकार ने 'न, अन्यार्थत्वात्' यह वाक्य लिखा है। अर्थात् उक्त सूत्र का यह अभिप्राय नहीं है कि 'असाधारण धर्म संशय का कारण है' उस सूत्र का कोई दूसरा ही अर्थ है। 'शग्दे विशेषदर्शनात्' इत्यादि सन्दर्भ के द्वारा वही दूसरा अर्थ प्रतिपादित हुआ है । 'जो वस्तु श्रवणेन्द्रिय के द्वारा गृहीत हो वही शब्द है' यह प्रतिपादन करने के बाद सूत्रकार ने कहा कि (श्रोत्रग्राह्य ) उस वस्तु में यह संशय होता है कि 'यह द्रव्य है ? या गुण है ? अथवा कर्म है ?' इस पर पूर्वपक्षवादी ने कहा कि श्रोत्रेन्द्रिय से गृहीत होनेवाले शब्द रूप अर्थ में जिन संशयों का तुमने उल्लेख किया है उससे 'श्रोत्रग्राह्यत्व' रूप असाधारण धर्म में ही उक्त संशयों की कारणता व्यक्त होती है। किन्तु सो ठीक नहीं है, क्योंकि For Private And Personal
SR No.020573
Book TitlePrashastapad Bhashyam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreedhar Bhatt
PublisherSampurnanand Sanskrit Vishva Vidyalay
Publication Year1977
Total Pages869
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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