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न्यायकन्दलीसंवलितप्रशस्तपादभाष्यम् [ गुणेऽनुमाने हेत्वाभास
प्रशस्तपादभाष्यम् अनित्यः शब्दः, कार्यत्वादिति । तद्भावासिद्धो यथा-धूमभावेनाग्न्यधिगतो कर्तव्यायामुपन्यस्यमानो बाष्पो धूमभावेनासिद्ध इति। अनुमेयासिद्धो यथा-पार्थिवं द्रव्यं तमः, कृष्णरूपवत्वादिति । यो ह्यनुमेयेऽ
(३) जिस रूप ( हेतुतावच्छेदक ) से युक्त हेतु के द्वारा साध्य की अनुमिति अभिप्रेत हो, हेतु का वह रूप या धर्म जिस हेतु में न रहे वह हेतु तद्भावासिद्ध हेत्वाभास है। जैसे धूमत्व रूप से युक्त ( धूम ) से वह्नि की अनुमिति के अभिप्राय से यदि कोई बाष्प को धूम समझकर हेतु रूप से कोई उपस्थित करे तो वह वाष्प हेतु धूमभाव से ( अर्थात् धूमत्व रूप से ) सिद्ध न होने कारण ( अर्थात् बाष्प में धूमत्व के न रहने के कारण ) तद्भावासिद्ध हेत्वाभास होगा। (४) जहाँ अनुमेय अर्थात् अभीष्ट पक्ष ही असिद्ध रहे उसके लिए प्रयुक्त हेतु अनुमेयासिद्ध हेत्वाभास होगा। जैसे कि 'तमो द्रव्य पार्थिवं कृष्णरूपवत्त्वात्, इस अनुमान का कृष्णरूप हेतु अनुमेयासिद्ध हेत्वा
न्यायकन्दली
अन्यतरासिद्धो यथा कार्यत्वादनित्यः शब्द इति । यद्यपि शब्दे वस्तुतः कार्यत्वमस्ति, तथापि विप्रतिपन्नस्य मीमांसकस्यासिद्धम् । अन्यतरासिद्धं साध्यं न साधयति यावन्न प्रसाध्यते।
तद्भावासिद्धो यथा धूमभावेनाग्न्यधिगतौ कर्तव्यायामुपन्यस्यमानो बाष्पो धूमभावेन धूमस्वरूपेणासिद्धस्तद्भावासिद्ध इत्युच्यते।
अनुमेयासिद्धो यथा पार्थिवं तमः, कृष्णरूपवत्त्वात् । तमो नाम द्रव्यान्तरं
'अन्यतरासिद्ध' का उदाहरण है 'शब्दोऽनित्य: कार्यत्वात्' इस अनुमान का कार्यत्व हेतु । वैशेषिक नैयायिकादि के मत से शब्द में यद्यपि कार्यता सिद्ध है, किन्तु मोमांसक लोग शब्द को कार्य नहीं मानते, नित्य मानते हैं; अतः यह हेतु वादी और प्रतिवादी इन दोनों में से एक के द्वारा असिद्ध होने के कारण 'अन्य तरासिद्ध' नाम का हेत्वाभास है, क्योंकि अन्यतर के द्वारा भो असिद्ध हेतु तब तक माध्य का साधन नहीं कर सकता, जब तक कि वह दूसरे के द्वारा सिद्ध नहीं माना जाता ।
'तद्भावासिद्ध' का उदाहरण वह बाष्प हेतु है, जो धूम समझकर वह्निसाधन के लिए प्रयुक्त होता है, क्योंकि 'तद्भाव' अर्थात् धूम का धूमत्व रूप धर्म बाष्प में सिद्ध नहीं है । अतः उक्त बाष्प हेतु तद्भावासिद्ध' हेत्वाभास है।
'अनुमेया सिद्ध' का उदाहरण है 'पार्थिवं तमः कृष्णरूपवत्त्वात्' इस अनुमान का 'कृष्णरूपवत्त्व' रूप हेतु । तम न:म का कोई द्रव्य ही नहीं है, क्योंकि कृष्णरूप ( गुण) का तेज के अभाव में आरोप मात्र होता है ( चूंकि पार्थिवत्वविशिष्ट तम रूप अनुमेय ही
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