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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra ww.kobaith.org www.kobatirth.org Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandir प्रकरणम् ] भाषानुवादसहितम् ५७७ प्रशस्तपादभाष्यम् तत्रासिद्धश्चतुर्विधः--उभयासिद्धः, अन्यतरासिद्धः, तद्भावासिद्धः, अनुमेयासिद्धश्चेति । तत्रोभयासिद्ध उभयोर्वादिप्रतिवादिनोरसिद्धः, यथाऽनित्यः शब्दः, सावयवत्वादिति । अन्यतरासिद्धो यथाअन्यतरासिद्ध, ( ३) तद्भावासिद्ध और ( ४ ) अनुमेयासिद्ध भेद से 'असिद्ध' चार प्रकार के हैं। इनमें जो हेतुवादी और प्रतिवादी दोनों में से किसी के द्वारा पक्षादि में सिद्ध न हो उसे 'उभयासिद्ध' हेत्वाभास कहते हैं। जैसे कि शब्द में अनित्यत्व के साधन के लिए प्रयुक्त 'सावयवत्वात्' इस वाक्य से बोध्य सावयवत्व हेतु ( उभयासिद्ध हेत्वाभास ) है। शब्द में अनित्यत्व के साधन के लिए ही यदि कार्यत्व हेतु का कोई प्रयोग करे तो वह 'अन्यतरासिद्ध' हेत्वाभास होगा, क्योंकि वादी ( वैशेषिक ) ही शब्द को कार्य मानते हैं। प्रतिवादी ( मीमांसक ) उसे कार्य नहीं मानते । न्यायकन्दली मुक्तम्। तत्समानजातीये च प्रसिद्धमित्यनेन विरुद्धानध्यवसितवचनयोरनपदेशत्वम् । तद्विपरीते नास्त्येवेत्यनेन सन्दिग्धवचनस्यानपदेशत्वमिति विवेकः । ___ एषामसिद्धविरुद्धसन्दिग्धानध्यवसितानां मध्ये असिद्धं कथयति-तत्रासिद्धश्चतुर्विध उभयासिद्ध इत्यादि। तत्रोभयासिद्धः-उभयोर्वादिप्रतिवादिनोरसिद्धः, यथाऽनित्यः शब्दः, सावयवत्वादिति शब्दे सावयवत्वं न वादिनो नापि प्रतिवादिनः सिद्धमित्युभयासिद्धः। के द्वारा 'विरुद्धवचन' और 'अनध्य वसितवचन' इन दोनों का हेत्वाभास व्यजित होता है। एवं तद्विपरीते च नास्त्येव' इस वाक्य के द्वारा 'सन्दिग्धवचन' की हेत्वाभासता ध्वनित होती है। 'तत्रासिद्धश्चतुर्विधः' इत्यादि सन्दर्भ के द्वारा इन असिद्ध, विरुद्ध, सन्दिग्ध और अनध्यवसितों में से असिद्ध नाम के हेत्वाभास का विवरण देते हैं । इनमें वादी और प्रतिवादी ये दोनों ही जिस हेतु की सत्ता पक्ष में न मानते हों, वह हेतु 'उभयासिद्ध' नाम का हेत्वाभास है। जैसे कि 'शब्दोऽनित्यः सावयवत्वात्' इस अनुमान का सावयवत्व हेतु उभयासिद्ध हेत्वाभास है। इस अनुमान के प्रयोग करनेवाले ( नैयायिकादि ) हैं वादी, वे भी शब्द को सावयव नही मानते, एवं शब्द को नित्य माननेवाले मीमांसक हैं प्रतिवादी, वे भी शब्द को द्रव्य मानते हुए भी सावयव नहीं मानते, अत: उक्त सावयवत्व हेतु 'उभयासिद्ध हेत्वाभास है । ७३ For Private And Personal
SR No.020573
Book TitlePrashastapad Bhashyam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreedhar Bhatt
PublisherSampurnanand Sanskrit Vishva Vidyalay
Publication Year1977
Total Pages869
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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