SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 646
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra प्रकरणम् ] www.kobatirth.org भाषानुवादसहित न्यायकन्दली Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandir प्रवर्तमानं प्रतिषेधानुमानं तद्विपरीतवृत्ति तेनैव बाध्यते, विषयापहारात् । को विषयस्यापहारः ? तद्विपरीतार्थप्रवेदनम्, तस्मिन् सत्यनुमानस्य किं भवति ? उत्पत्त्यभावः, प्रथमप्रवृत्तेनाबाधितविषय प्रत्यक्षेण वह्नेरुष्णत्वे प्रतिपादिते तत्प्रतीत्यवरुद्धे च तस्यानुष्णत्वप्रतीतिर्न भवति । हेतोरप्ययमेव बाधो यदयमनुष्णत्वप्रतिपादनाय प्रयुक्तः, तत्प्रतीति न करोति, प्रत्यक्ष विरोधात् । यथोक्तम् - वैपरीत्यपरिच्छेदे नावकाशः परस्य तु । मूले तस्य ह्यनुत्पन्ने पूर्वेण विषयो हृतः ॥ इति । ५७१ बाधा विनाभावयोविरोधादविनाभूतस्य बाधानुपपत्तिरिति चेत् ? यदि त्रैरूप्यमविनाभावोऽभिमत: ? तदास्त्येवाविनाभूतस्य बाधः यथानुष्णोऽग्निः लिया जाता है । अनुमान के द्वारा अपहरण है । ( प्र०) ( लिए उस प्रत्यक्ष का प्रामाण्य स्वीकार कर ही लिया जाता है, अतः उक्त स्वीकृति से प्रवृत्त होनेवाले वह्नि में उष्णता के प्रतिषेध का अनुमान उस प्रत्यक्ष से ही बाधित हो जाता है, जो प्रकृत प्रतिषेध के विरोधी उष्णता का ज्ञापक है । क्योंकि इस प्रत्यक्ष के द्वारा अनुमान के विषय रूपी उष्णता के प्रतिषेध का अपहरण कर ( प्र० ) विषय का यह 'अपहरण' क्या वस्तु है ? ( उ० प्रकृत ज्ञाप्य विषय के विरोधी विषय का ज्ञापन ही प्रकृत में विषय का इस विषयापहरण से अनुमान के ऊपर क्या प्रभाव पड़ता है ? उ० ) यही कि उसकी उत्पत्ति ही नहीं हो पाती, किन्तु उष्णता के बोधक प्रत्यक्ष की प्रवृत्ति अनुष्णत्व के अनुमान से पहिले होती है, उसका विषय उष्णत्व किसी दूसरे प्रमाण से बाधित भी नहीं है, अतः इस प्रत्यक्ष के द्वारा जब वह्नि में उष्णता की प्रतिपत्ति हो जाती है, उसके बाद उस प्रत्यश्च के द्वारा ज्ञात वह्नि में अनुष्णता को प्रतीति नहीं होती है। हेतु में बाध की प्रतीति का भी यही रहस्य है कि वह्नि में अनुष्णत्व को समझाने के लिए प्रयुक्त होने पर भी इस प्रत्यअविरोध के कारण वह्नि में उष्णता की प्रतीति का उत्पादन नहीं कर सकता । जैसा कहा गया है कि विपरीत ( अभाव ) विषयक निश्चय के उत्पन्न हो जाने पर उसके विरोधी के ज्ञान का अवकाश नहीं रह जाता, क्योंकि उसके उत्पन्न होने के पहिले ही पहिले के प्रमाण से उसके विषय का अपहरण हो जाता है । For Private And Personal ( प्र०) साध्य की व्याप्ति और साध्य का अभाव ये दोनों परस्पर विरोधी हैं, अत: साध्य का व्याप्य हेतु कभी बाधित नहीं हो सकता । ( उ० ) व्याप्ति या अविनाभाव को यदि हेतु में ( पक्षसत्त्व, सपक्षसत्त्व और विपक्षासत्त्व इन ) तीनों रूपों का रहना समझें, तो फिर इन तीनों रूपों के रहने पर भी हेतु में 'बाघ' रह ही सकता है, क्योंकि 'अग्निरनुष्णः कृतकत्वात्' इस स्थल में कृतकत्व रूप हेतु में उक्त तीनों रूप हैं ।
SR No.020573
Book TitlePrashastapad Bhashyam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreedhar Bhatt
PublisherSampurnanand Sanskrit Vishva Vidyalay
Publication Year1977
Total Pages869
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy