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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandir न्यायकन्दलीसंवलितप्रशस्तपादभाष्यम् [गुणेऽनुमानेऽवयव प्रशस्तपादभाष्यम् यथा द्रव्यं वायुरिति । अविरोधिग्रहणात् प्रत्यक्षानुमानाम्युपगतस्वशास्त्रस्ववचन विरोधिनो निरस्ता भवन्ति । यथाऽनुष्णोऽग्निरिति प्रत्यक्षजैसे 'द्रव्यं वायुः' इत्यादि वाक्य। ( प्रतिज्ञा के लक्षणवाक्य में ) अविरोधि' पद के देने से ( १ ) प्रत्यक्षविरुद्ध, (२) अनुमानविरुद्ध, (३) आगमविरुद्ध, (४) स्वशास्त्रविरोधी एवं (५) स्ववचनविरोधी उक्त प्रकार के वाक्यों में प्रतिज्ञा लक्षण की अतिव्याप्ति का निवारण होता है। ( इनमें) प्रत्यक्षविरोधी वाक्य का उदाहरण है 'अनुष्णोऽग्निः'। न्यायकन्दली विरोधो यस्यानुमेयोद्देशस्य असावप्रत्यक्षादिविरोधस्तस्य वचनं प्रतिज्ञा, यस्य तद्विरोधोऽस्ति न सा प्रतिजेत्यर्थः। किमनेनोक्तं भवति ? न वाद्यभिप्रायमात्रेण साध्यता, किं तु यत् साधनमर्हति तत् साध्यम्, स एव पक्षस्तदितरः पक्षाभास इति। प्रत्यक्षादिविरोधोदाहरणं यथा-अनुष्णोऽग्निरिति । अनुष्ण इत्युष्णस्पर्शप्रतिषेधोऽयम् । अवगतं च प्रतिषिध्यते नानवगतम्। न चोष्णत्वस्य वहरन्यत्रोपलम्भसम्भवः, वह्नावपि तस्य प्रतीतिर्नानुमानिकी, प्रत्यक्षाभावे अनुमानस्याप्रवृत्तः। प्रत्यक्षप्रतीतस्य च प्रतिषेधे प्रत्यक्षप्रामाण्याभ्युपगमेन पद का उपादान किया है । 'अनुमेपोद्देशोऽविरोधी प्रतिज्ञा' प्रतिज्ञा के इस लक्षण वाक्य में प्रयुक्त 'अविरोधि' पद का विवरण इस प्रकार है कि 'न विद्यते ( प्रत्यक्षादि ) विरोंधो यस्यानुमेयोद्देशस्यासावप्रत्यक्षादिविरोधी, तस्य वचनं प्रतिज्ञा' तदनुसार उक्त वाक्य का यह अर्थ है कि जिस 'अनुमेयोद्देश' में प्रत्यक्षादि प्रमाणों का विरोध न रहे उसके बोधक वाक्य ही प्रतिज्ञा है, अर्थात् जिस अनुमेथोद्देश में प्रत्यक्षादि प्रमाणों का विरोध रहे उसका बोधक वाक्य प्रतिज्ञा नहीं है। (प्र.) इससे क्या निष्पन्न हुआ ? (उ०, यही कि साधन के लिए वादी के अभिप्रत होने से ही कोई विषय साध्य नहीं हो जाता। साध्य वही है जिसका साधन करना सम्भव हो, वही साध्य पक्ष भी है, तद्भिन्न को अर्थात् प्रत्यक्षादि विरोध के कारण जिसका साधन सम्भव न हो उसे 'पक्षाभास' कहते हैं। 'अनुष्णो वह्निः' इत्यादि सन्दर्भ के द्वारा प्रत्यक्षादि प्रमाणों के विरोधी प्रतिज्ञावाक्यों के उदाहरण दिखलाये गये हैं। प्रकृत में 'अनुष्ण' शब्द उष्णस्पर्श के प्रतिषेध का बोधक है ( उष्णस्पर्श विरोधी शीतस्पर्श का नहीं)। ज्ञात वस्तु का ही प्रतिषेध भी किया जाता है, अज्ञात वस्तु का नहीं। एवं उष्णता की प्रतीति वह्नि को छोड़ और कहीं सम्भव नहीं है । वह्नि में उष्णता की प्रतीति अनुमान से तब तक नहीं हो सकती, जब तक वह्नि में उष्णता को प्रत्यक्षवेद्य न मान लिया जाय, क्योंकि बिना प्रत्यक्ष के अनुमान की प्रवृत्ति नहीं होती है। प्रत्यक्ष के द्वारा ज्ञात होने योग्य वस्तु के प्रतिषेध के For Private And Personal
SR No.020573
Book TitlePrashastapad Bhashyam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreedhar Bhatt
PublisherSampurnanand Sanskrit Vishva Vidyalay
Publication Year1977
Total Pages869
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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