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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandir ५५८ न्यायकन्दलीसंवलितप्रशस्तपादभाष्यम् [गुणेऽन्मानेऽवयव प्रशस्तपादभाष्यम् तथैवैतिद्यमप्यवितथमाप्तोपदेश एवेति । पञ्चावयवेन वाक्येन स्वनिश्चितार्थप्रतिपादनं परार्थानु इसी प्रकार 'ऐतिह्य' भी सत्य अर्थ के बोधक एवं आप्त से उच्चरित शब्द प्रमाण ही है ( फलत: अनुमान ही है)। अपने निश्चित अर्थ को दूसरे को समझाने के लिए ( प्रसिद्ध ) पाँच अवयव ( पञ्चावयव ) वाक्यों का प्रयोग ही 'परार्थानुमान' है। ( अर्थात् ) न्यायकन्दली गवाश्वयोरितरेतरात्मताप्रतिषेधः। अत्यन्ताभावे तु सर्वथा असद्भूतस्यैव बुद्धावारोपितस्य देशकालानवच्छिन्नः प्रतिषेधः । यथा षट्पदार्थेभ्यो नान्यत् प्रमेय. मस्तीति । यदि चात्यन्ताभावो नेष्यते, षडेव पदार्था इत्ययं नियमो दुर्घट: स्यात् । ऐतिह्यमप्यवितथमाप्तोपदेश एव इति है' इति निपातसमुदाय उपदेशपारम्पयें वर्तते, तत्रायं स्वार्थिकः ष्यञ् प्रत्ययः, ऐतिह्यमिति । वितथमैतिां तावत् प्रमाणमेव न भवति । अवितथमाप्तोपदेश एव । आप्तोपदेशश्चानुमानम् । तस्मादवितथमैतिामनुमानान्न व्यतिरिच्यते इत्यभिप्रायः । । परार्थानुमानव्युत्पादनार्थमाह--पञ्चावयवेन वाक्येन स्वनिश्चितार्थप्रतिपादनं परार्थानुमानमिति । प्रतिपादनीयस्यार्थस्य यावति शब्दससूहे प्रतीतिः पर्यवस्यति, तस्य पञ्चभागा: समूहापेक्षयावयवा इत्युच्यन्ते । स्वयं साध्यानन्तरीयकत्वेन निश्चितोऽर्थः स्वनिश्चितार्थः, साध्याविनाभूतं लिङ्गम् । पित वस्तु का इस आश्रय में यह कभी किसी भी प्रदेश में नहीं है' इस प्रकार का प्रतिषेध ही अत्यन्ताभाव है ! जैसे द्रव्यादि छः पदार्थो से अतिरिक्त कोई वस्तु नहीं है ( इस प्रकार का प्रतिषेध अत्यन्ताभाव रूप है ) यदि अत्यन्ताभाव न माने तो 'पदार्थ छः ही हैं' इस प्रकार का अवधारण कठिन होगा। ___ऐतिह्यमप्यवितथमाप्तोपदेश एव' इस वाक्य में प्रयुक्त 'ऐतिह्य' शब्द इति ह इन दोनों निपातों से स्वार्थ में 'ध्यञ्' प्रत्यय से निष्पन्न होता है। ये दोनों निपात ‘परम्परा से प्राप्त उपदेश' रूप अर्थ के बोधक हैं । __ अभिप्राय यह है कि जो 'ऐतिह्य' रूप वचन ( या उपदेश ) असत्य है, वह तो प्रमाण ही नहीं है। जो ऐतिह्य प्रमा ज्ञान का उत्पादक है, वह आप्तवचन को छोड़कर और कुछ भी नहीं है। (यह उपपादन कर चुके हैं कि ) आप्तोपदेश अनुमान से भिन्न कोई प्रमाण नहीं है । अतः ऐतिह्य भी अनुमान से भिन्न कोई प्रमाण नहीं है। 'पञ्चावयवेन वाक्येन स्वनिश्चितार्थप्रतिपादनं परार्थानुमानम्' यह वाक्य परार्थानुमान को समझाने के लिए कहा गया है। अभीष्ट अर्थ की प्रतीति जिन शब्दों के समूह से सम्पन्न होती है, उसके पाँच खण्ड होते हैं। वाक्य के वे ही पाँच खण्ड वाक्यसमूह की अपेक्षा ( अर्थात् उक्त समूह को अवयवो मानकर ) उसके अवयव कहलाते हैं | 'स्वयं साध्यानन्तरीयकत्वेन निश्चितोऽर्थः स्वनिश्चितार्थः' इस व्युत्पत्ति के For Private And Personal
SR No.020573
Book TitlePrashastapad Bhashyam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreedhar Bhatt
PublisherSampurnanand Sanskrit Vishva Vidyalay
Publication Year1977
Total Pages869
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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