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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandir प्रकरणम् ] भाषानुवादसहितम प्रशस्तपादभाष्यम् कारणत्वञ्चान्यत्र पारिमाण्डल्यादिभ्यः । पारिमाण्डल्य प्रभृति पदार्थो को छोड़कर और सभी पदार्थों का कारणत्व साधर्म्य है। न्यायकन्दली यद्यपि विनाशो वस्तुकाले नास्ति, तथापि प्रमाणान्तरसिद्धसद्भावो भवत्येव विशेषणम्, अनित्यो घट इति प्रत्येतुरेकत्वात् । तथा लोके विनाशि शरीरमध्रुवा विषया इति । कारणत्वञ्चान्यत्र पारिमाण्डल्यादिभ्य इति । पारिमाण्डल्यमिति परमाणुपरिमाणम्, आदिशब्दाद् द्वयणुकपरिमाणम्, आकाशकालदिगात्मनां विभुत्वमन्त्यशब्दमनःपरिमाणं परत्वापरत्वे द्विपृथक्त्वमन्त्यावयविपरिमाणञ्चेत्यादि दशा में विनाश नहीं रहता है । ( उ० ) तथापि२ जिसकी सत्ता प्रमाण सिद्ध से है, वह भी अवश्य विशेषण ही होता है। साधारण जनों को भी इस प्रकार की स्वारसिक प्रतीतियां होती हैं कि शरीर विनाशशील है, सभी वस्तु चिरकाल तक रहनेवाली नहीं हैं। पारिमाण्डल्य' शब्द का अर्थ है परमाणुओं का परिमाण । (पारिमाण्डल्यादि पद में प्रयुक्त ) 'आदि' पद से आकाश काल, दिशा और आत्मा इन चार पदार्थों का 'विभुत्व' अर्थात् परममहत्परिमाण, अन्तिम शब्द मन का परिमाण तथा उसी का परत्व और अपरत्व, द्विपृथक्त्व, अन्त्यावयवी द्रव्य ( जो अवयवी किसी दूसरे अवयवी का अवयव न हो, जैसे घट) का परिमाण, ये सभी अभिप्रेत हैं। इनसे भिन्न द्रव्यादि तीन १. पूर्वपक्षी का आशय है कि विनाश ही अगर अनित्यत्व हो तो 'घटोऽनित्यः' इस प्रकार की विशिष्ट प्रमाबुद्धि नहीं होगी, क्योंकि विशिष्ट प्रमा के लिए विशेष्य में विशेषण का रहना आवश्यक है। जब तक धटरूप विशेष्य रहेगा, तब तक उसमें विनाशरूप अनित्यत्व नहीं रहेगा और जब घट विनष्ट हो जाएगा, तब अनित्यत्वरूप विशेषण रहेगा कहाँ ? सुतरम् चूंकि विद्यमान वस्तु और विनाश दोनों परस्पर विरोधी हैं, अतः उनमें विशेष्यविशेषणभाव नहीं हो सकता। २. इस समाधान ग्रन्थ का आशय है कि विशेष्यविशेषणभाव के लिए दोनों का एक समय में रहना आवश्यक नहीं है, केवल इतना ही आवश्यक है कि दोनों प्रमाणसिद्ध हों एवं परस्पर सम्बद्ध हों। इसका भी कोई बन्धन नहीं है कि वह सम्बन्ध आधाराघेयभाव का नियामक ही हो । अतः 'घटो विनष्टः' इत्यादि विशिष्ट प्रतीति के अनुरोध से घट और विनाश में भी प्रतियोगि त्वादि सम्बन्ध की कल्पना करेंगे। अतः कोई अनुपपत्ति नहीं है। For Private And Personal
SR No.020573
Book TitlePrashastapad Bhashyam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreedhar Bhatt
PublisherSampurnanand Sanskrit Vishva Vidyalay
Publication Year1977
Total Pages869
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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