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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra ५०५ www.kobatirth.org न्यायकन्दलीसंवलितप्रशस्तपादभाष्यम् प्रशस्तपादभाष्यम् Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandir [ गुणे अनुमान सास्नामात्रमुपलभ्य देशान्तरेऽपि सास्नामात्र दर्शनाद् गवि प्रतिपत्तिः । प्रसिद्धसाध्ययोरत्यन्तजातिभेद लिङ्गान मेयधर्मको देखकर, दूसरे स्थान में सास्ना को देखने के बाद गोविषयक प्रतिपत्ति ( अनुमिति ) होती है । जिस हेतु के साथ पूर्व में ज्ञात साध्य और उसी हेतु के द्वारा वर्त्तमान में ज्ञाप्य साध्य, दोनों विभिन्न जाति के हों, उस हेतु सामान्य और ( वर्तमान में अनुमेय ) साध्यसामान्य की व्याप्ति से जो अनुमान उत्पन्न होता है, उसे 'सामान्यतोदृष्ट' अनुमान कहते हैं । जैसे कि कृषक, न्यायकन्दली साध्ययोर्जात्यभेदेऽनुमानम् । प्रसिद्धं यत् पूर्वं लिङ्गेन सह दृष्टं साध्यं यत् सम्प्रत्यनुमेयं तयोरत्यन्तजात्यभेदे सति यदनुमानं तद् दृष्टम् । यथा गव्येव सास्नामात्रमुपलभ्य देशान्तरे गवि प्रतिपत्तिः । पूर्वं गोत्वजातिविशिष्टायामेव गोव्यक्तौ सानोपलब्ध्या सम्प्रत्यपि गोत्वजातिविशिष्टायामेव गोव्यक्तेरनुमानमत्यन्तजात्यभेदे । इदं च दृष्टमित्याख्यायते । सास्नामात्र दर्शनाद् वनान्तरे यदनुमीयते गोत्वसामान्यं तस्य स्वलक्षणं पूर्व नगरे दृष्टमिति कृत्वा प्रसिद्धसाध्ययोरत्यन्तजातिभेदे लिङ्गानुमेयधर्मसामान्यानुवृत्तितोऽनुमानं सामान्यतोदृष्टम् । प्रसिद्धं लिङ्गेन सह प्रतीतं जो साध्य ज्ञात है और जो साध्य अभी अनुमेय है, इन दोनों के जातितः अत्यन्त अभिन्न होने पर जो अनुमान होता है, वही 'दृष्ट' अनुमान है। जैसे कि पहिले किसी गाय में ही सास्ता को देखकर दूसरे देश में गो का अनुमान होता है । पहिले गोत्व जाति से युक्त गो व्यक्ति में ही सास्ना की उपलब्धि हुई, अभी भी सास्ना से जो गो की अनुमिति होती है, वह गोत्व जाति से युक्त गो व्यक्ति में ही होती है, अतः गो विषयक दोनों ज्ञानों में विषय होनेवाला गोत्व अत्यन्त अभिन्न ( एक ही ) है, तस्मात् यह 'दृष्ट' अनुमान कहलाता है । इसे दृष्ट अनुमान होने की युक्ति यह है कि वन में केवल सास्ता के देखने से जिस गोत्व जाति का अनुमान होता है, वह उस स्वरूप से नगर में पहिले से ही गो में देखा जा चुका है । For Private And Personal "प्रसिद्धसाध्ययोरत्यन्त जातिभेदे लिङ्गानुमेय धर्म सामान्यानुवृत्तितोऽनुमानं सामान्यतोदृष्टम् " ( इस भाष्यवाक्य के ) प्रसिद्धसाध्ययो:' इस पद से 'प्रसिद्धं लिङ्गेन सह प्रतीतं साध्यमनुमेयं ययोः ' इस व्युत्पत्ति के अनुसार अनुमान का साध्य एवं हेतु के साथ पहिले गृहीत होनेवाला साध्य ये दोनों साध्य अभिप्रेत हैं । इन दोनों साध्यों में परस्पर अत्यन्त भेद के रहने पर भी हेतु सामान्य में साध्यसामान्य की व्याप्ति से जो अनुमान उत्पन्न होता है, वही 'सामान्यतोदृष्ट' अनुमान है । ( इस अर्थ के बोधक
SR No.020573
Book TitlePrashastapad Bhashyam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreedhar Bhatt
PublisherSampurnanand Sanskrit Vishva Vidyalay
Publication Year1977
Total Pages869
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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