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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandir ४८४ [गुणे अनुमान न्यायकन्दलीसंवलितप्रशस्तपादभाष्यम् न्यायकन्दली कान्तिकः । एवं कालात्ययापदिष्टोऽप्यनैकान्तिकः, प्रत्यक्षनिश्चितोष्णत्वे वह्नौ विपक्षे कृतकत्वस्य भावात् । एतदयुक्तम् । यदि पक्षव्यापकत्वे सति सपक्षे सद्भावो विपक्षाच्च व्यावृत्तिरित्येतावतव हेतोर्गमकत्वम्, तदास्तु नाम साध्यर्धामणि प्रतिपक्षसम्भावना, तथापि प्रकरणसमेन स्वसामर्थ्यात् साध्यं साधयितव्यमेव । अथ न शक्नोति साधयितुं प्रतिपक्षसंशयानान्तत्वात् ? न तहि रूप्यमात्रेण गमकत्वमिति असत्प्रतिपक्षत्वमपि रूपान्तरमास्थेयम्, सति प्रतिपक्षे हेतुस्वाभावादसति तद्भावात् । एवं कालात्ययापदिष्टेऽपि वाच्यम् । यदि त्रैरूप्यमात्रेण लिङ्गत्वं कृतकत्वाद् वहावतुष्णत्वमस्त्येवेति कथमनैकान्तिकत्वम् ? अथ सत्यपि कृतकत्वे वहावतुष्णत्वं न भवति प्रत्यक्षेणोष्णताप्रतीतेः, तदा प्रत्यक्षाविरोधे सति प्रतिपादनं न तद्विरोध इत्यबाधितविषयत्वमपि रूपान्तरमनु ( अर्थात् शब्द में नित्यत्व का साधक और अनित्यत्व का साधक हेतु ) साध्य संशयवाले पक्ष में विद्यमान होने के कारण एक अन्त' में, किसी एक कोटि के निश्चय के लिए नियत नहीं है, अतः 'प्रकरणसम' अनैकान्तिक ही है। इसी प्रकार 'कालात्ययापदिष्ट' अर्थात् बाधित हेत्वाभास भी अनैकान्तिक ही है, क्योंकि 'वह्निर नुष्ण: कृतकत्वात्' इत्यादि अनुमान का कृतकत्व रूप कालात्ययापदिष्ट हेतु वह्निरूप उस विपक्ष में ही विद्यमान है, जिसमें कि ( अनुमान से बलवान्) प्रतिपक्ष के द्वारा (अनुष्णत्वरूप साध्य के अभावरूप) उष्णत्व की सत्ता निर्णीत है। (उ०) (किन्तु प्रकरणसम और कालात्ययापदिष्ट का इस प्रकार अनैकान्तिक में अनर्भाव करना ) अयुक्त है, क्योंकि यदि मभी पक्षों में रहने से, एवं सपक्षों में रहने से, और विपक्षों में न रहने से ही हेतु में साध्य की अनुमिति का सामर्थ्य मान लिया जाय तो साध्य को सम्भावना रहने पर भी प्रकरणसम हेत्वाभास से साध्य का साधन होगा ही, क्योंकि उसमें साध्य को ज्ञापन करने का ( पक्षसत्त्वादि ) उक्त सामय तो है ही। यदि प्रतिपक्ष संशय के कारण ह अपने साध्य का साधन नहीं कर सकता, तो फिर यह कहना ठीक नहीं है कि (पक्षसत्त्वादि) तीनों धर्मों का रहना ही हेतु मे साध्य के साधन का सामर्थ है, इसके लिए 'असत्प्रतिपक्षितत्व' नाम का एक और प्रयोजक हेतु में साध्य साधन के लिए मानना पड़ेगा। क्योंकि प्रतिपक्ष के रहने पर हेतु में साध्य साधन की क्षमता नहीं रहती है, और उसके न रहने से हेतु में वह क्षमता रहती है। इसी प्रकार कालात्ययापदिष्ट के प्रसङ्ग में भी कहना चाहिए कि यदि पक्षसत्वादि तीनों रूपों के रहने से ही हेतु साध्य का साधन कर सके तो फिर कृतकत्व के रहने के कारण वह्नि में अनुष्णता का अनुमान भी हो सकता है. सुतराम् यह प्रश्न रह जाता है कि वह्नि में अनुष्णता का साधक कृतकत्व हेतु अनैकान्तिक' कैसे है ? यदि वह्नि में कृतकत्व के रहने पर भी उष्णता की प्रत्यक्ष प्रतीति वह्नि में होती है, अतः अनुष्णत्व को उक्त अनुमिति नहीं होती है, तो यह कहना पड़ेगा कि पक्ष सत्त्वादि की तरह (अबाधितविषयत्व या) हेतु में अबाधितत्व का रहना भी साध्य ज्ञान के लिए आवश्यक है। For Private And Personal
SR No.020573
Book TitlePrashastapad Bhashyam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreedhar Bhatt
PublisherSampurnanand Sanskrit Vishva Vidyalay
Publication Year1977
Total Pages869
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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