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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandir ४७३ সকল ] भाषानुवादसहितम् प्रशस्तपादभाष्यम् अस्मिन्नान्यत् प्रमाणान्तरमस्ति, अफलरूपत्वात् । अनपेक्ष ) इन्द्रिय और अर्थ का सम्प्रयोग ही प्रत्यक्ष प्रमाण है, क्योंकि वहाँ ज्ञानादि कोई दूसरा प्रमाण उपस्थित नहीं है। एवं यह ज्ञान निर्विकल्पक होने के कारण किसी ज्ञानरूप प्रमाण का फल भी नहीं है, इस हेतु से भी उक्त निर्विकल्पक ज्ञानरूप प्रत्यक्ष प्रमिति के पक्ष में उक्त आलोचनरूप इन्द्रिय और अर्थ का सम्प्रयोग ही प्रत्यक्ष प्रमाण है। न्यायकन्दली प्रमाणं भवत्येव प्रमाहेतुत्वात, किन्तु विशेषणज्ञानसहकारितया न केवलः, सामान्यविशेषज्ञानोत्पत्तौ तु ज्ञानानपेक्षः केवल एवेत्यभिप्रायः। सन्निकर्षमात्रमिह प्रमाणं न ज्ञानमित्यत्रोपपत्तिमाह-न तस्मिन्निति सामान्यविशेषज्ञाने नान्यत् प्रमाणं ज्ञानरूपमस्ति सामान्यविशेषज्ञानस्याफलरूपत्वात् ज्ञानफलत्वाभावात् । विशेष्यज्ञानं हि विशेषणज्ञानस्य फलम्,विशेषणज्ञानं न ज्ञानान्तरफलम्, अनवस्थाप्रसङ्गात् । अतो विशेषणज्ञाने इन्द्रियार्थसन्निकर्षमात्रमेव प्रमाणमित्यर्थः । यदा निविकल्पकं सामान्यविशेषज्ञानं फलं तदेन्द्रियार्थसन्निकर्षः प्रमाणम्, यदा विशेष्यज्ञानं फलं तदा सामान्यविशेषालोचनं दक करण) प्रमाण है (अर्थात् जिस समय निर्विकल्पक ज्ञान फल रूप है उस समय इन्द्रियार्थ संनिकर्ष प्रमाण है)। विशेष्य (विशिष्ट) ज्ञान की उत्पत्ति में भी इन्द्रिय और अर्थ का संनिकर्ष उक्त ज्ञान का कारण होने से (यद्यपि) प्रमाण है ही, फिर भी विशिष्ट ज्ञानरूप कार्य के उत्पादन के लिए उसे विशेषण ज्ञान (निर्विकल्पक ज्ञान) की भी अपेक्षा होती है, अतः केवल वही विशिष्ट ज्ञान का करण (प्रमाण) नहीं है । किन्तु सामान्य विशेषज्ञान (निबिकल्पक ज्ञान ) के उत्पादन में उसे दूसरे किसी ज्ञान की अपेक्षा नहीं होती, अतः वहाँ वह 'केवल' अर्थात् ज्ञान से अनपेक्ष होकर (प्रमा का उत्पादक करण) प्रमाण है। 'न तस्मिन्' इत्यादि ग्रन्थ से यह उपपादन करते हैं कि निर्विकल्पक ज्ञानरूप प्रमा के उत्पादन में केवल इन्द्रिय और अर्थ का संनिकर्ष ही क्यों करण है ? कोई ज्ञान उसका करण क्यों नहीं है ? अभिप्राय यह है कि कोई ज्ञान निर्विकल्पक ज्ञानरूप प्रमा का उत्पादक करण (प्रमाण) नहीं है, क्योंकि निर्विकल्पक ज्ञान 'अफल रूप हैं' अर्थात् किसी ज्ञान का फल नहीं है। विशिष्ट ज्ञान (विशेष्य ज्ञान) तो विशेषण ज्ञान (निर्विकल्पकज्ञान) का फल है, किन्तु निर्विकल्पक ज्ञान (विशेषण ज्ञान) किसी ज्ञानरूप करण का फल नहीं हो सकता, क्योंकि ऐसा मानने पर अनवस्था हो जाएगी। यही कारण है निर्विकल्पक (विशेषण ) प्रमा का, इन्द्रिय और अर्थ का संनिकर्ष ही केवल करण है। फलितार्थ यह है कि जिस समय निर्विकल्पकरूप सामान्य और विशेष का ज्ञान फल है, उस समय इन्द्रिय और अर्थ का संनिकर्ष ही केवल प्रमाण है. एवं जिस समय विशेष्य For Private And Personal
SR No.020573
Book TitlePrashastapad Bhashyam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreedhar Bhatt
PublisherSampurnanand Sanskrit Vishva Vidyalay
Publication Year1977
Total Pages869
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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