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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandir मुद्गरादि के प्रहार से घटादि के नाश को ही प्रध्वंस या ध्वंश कहते हैं। इस की उत्पत्ति तो होती है, किन्तु विनाश होता । ध्वंस का विनाश मानने पर फूटे हुए घड़े की पुनः उत्पत्ति माननी पड़ेगी, क्योंकि घटादि के ध्वंस का ध्वंस घटादि के उत्पत्ति स्वरूप हो हो सकता है । अतः ध्वंस सादि होने पर भी अनन्त है । संसर्गभावों में जो अभाव नित्य हो उसे ही 'अत्यन्ताभाव' कहते हैं। अत्यन्ताभाव की न उत्पत्ति होती है, न उसका विनाश ही होता है जैसे कि वायु में रूपादि का अभाव अन्तन्ताभाव है, भूतल में घटाभाव भी अत्यन्तामाव ही है। इस प्रसङ्ग में यह प्रश्न उठता है कि अत्यन्ताभाव यदि नित्य है तो वह अपने आश्रयों में बराबर रहेगा। अतः भूतल में घट की सत्त्वदशा में भी घटाभाव की प्रमा प्रतीति होनी चाहिए । किन्तु भूतल में घट की स्थिति-दशा में घटाभाव की प्रतीति को प्रमा नहीं स्वीकार किया जा सकता । __ इसको दो उत्तर दिये जाते हैं । (१) कुछ लोगों का कहना है, अत्यन्ताभाव नित्य और अनित्यभेद से दोनों प्रकार का है। वायु में रहनेवाला रूप का अत्यन्ताभाव नित्य है । एवं भूतलादि में रहनेवाला घटाभाव अनित्य है, क्योंकि भूतल में घट के न रहने पर वह उत्तन्न होता है, पुनः घट के आ जाने पर वह घटाभाव नष्ट हो जाता है। अतः उस समय भूतल में घटाभाव नहीं है । (२) कुछ लोगों का कहना है कि सभी अत्यन्ताभाव नित्य हैं । अगर ऐसी बात न हो, भूतल में घट के आ जाने पर घटात्यन्ताभाव का नाश मान लिया जाय तो उस समय अन्यत्र भी घटात्यन्ताभाव की सत्ता न रह पायेगी। जिससे भूतल की तरह और सभी आश्रयों में भी जहाँ कि उस समय घट की सत्ता नहीं है-घटाभाव की प्रतीति प्रमा न हो सकेगी। अतः सभी अत्यन्ताभाव नित्य ही है। भूतल में घट की स्थिति दशा में जो घटाभाव की प्रतीति प्रमा नहीं होती है, उसका कारण है उस समय भूतल में घटाभाव के सम्बन्ध का न रहना। सम्बन्ध के रहने से ही सम्बद्ध वस्तुओं की सत्ता होती है । भूतल में घट का संयोग है, अतः संयोग सम्बन्ध से भूतल में घट है। तन्तुओं में पट का समवाय सम्बन्ध है, अतः समवाय सम्बन्ध से तन्तुओं में पट की सत्ता है। भूतल में घटाभाव की सत्ता का प्रयोजक स्वरूप सम्बन्ध केवल साधारण भूतल स्वरूप नहीं है। किन्तु घट का असमानकालिक जो भूतल, तत्स्वरूप है। जिस समय भूतल में घट की सत्ता रहती है, उस समय का भूतल घट का समानकालिक है, असमानकालिक नहीं। अतः उस समय भूतल में घटाभाव की सत्ता का उपयुक्त स्वरूपसम्बन्ध नहीं है। सुतराम् उस समय अन्यत्र घटाभाव की सत्ता रहते हुए भी भूतल में घटाभाव की सत्ता नहीं है। अतः उस समय भूतल में होनेवाली घटाभाव की प्रतीति प्रमा नहीं होती है । सुतराम् किसी भी अत्यन्ताभाव को अनित्य मानने की आवश्यकता नहीं है। सभी अत्यन्ताभाव उत्पत्ति और विनाश से रहित है, अतः पूर्णरूप से नित्य है । . ___ अभाव के प्रसङ्ग में नव्य नैयायिकों ने इतना अधिक विचार किया है कि उसके कुछ अशों को भी जाने बिना अभाव का ज्ञान अधूरा ही रहेगा। अतः तदनुसार मैं For Private And Personal
SR No.020573
Book TitlePrashastapad Bhashyam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreedhar Bhatt
PublisherSampurnanand Sanskrit Vishva Vidyalay
Publication Year1977
Total Pages869
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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