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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandir ४६३ মঙ্ক ] भाषानुवादसहितत् प्रशस्तपादभाष्यम् द्रवत्ववेगकर्मणां प्रत्यक्षद्रव्यसमवायाच्चक्षुःस्पर्शनाभ्यां ग्रहणम् । बुद्धिसुखदुःखेच्छाद्वेषप्रयत्नानां द्वयोरात्ममनसोः संयोगादुपलब्धिः । द्रवत्व, वेग और क्रिया इन ग्यारह वस्तुओं का चक्षु और त्वचा इन दोनों इन्द्रियों से ग्रहण हो सकता है, ( किन्तु इनके उक्त प्रत्यक्ष के लिए ) प्रत्यक्ष हो सकनेधाले द्रव्यों में इनके समवाय का रहना भी आवश्यक है ( अर्थात् प्रत्यक्ष होनेवाले द्रव्य में रहनेवाले संख्यादि गुणों के ही प्रत्यक्ष हो सकते हैं, प्रत्यक्ष न होनेवाले द्रव्यों के संख्यादि के नहीं)। बुद्धि, सुख, दुःख, इच्छा, द्वेष और प्रयत्न इन छ:गुणों का आत्मा और मन इन दोनों के ही न्यायकन्दली सत्ताद्रव्यत्वादीनां सामान्यानामाश्रयो येनेन्द्रियेण गृह्यते तेनैव तानि गृह्यन्ते । तत्र संयोगाद् द्रव्यग्रहणम्, संयुक्तसमवायाद् गुणादिप्रतीतिः, संयुक्तसमवेतसमवा. याद् गुणत्वादिज्ञानम्, समवायाच्छन्दग्रहणम्, समवेतसमवायाच्छब्दत्वग्रहणम, सम्बद्धविशेषणतया चाभावग्रहणमिति षोढा सनिकर्षः । यत् संयुक्तसमवेतविशेषगत्वेन रूपे रसायभावग्रहणम्, या च संयुक्तसमवेतविशेषणविशेषणत्वेन रूपत्वे रसत्वाद्यभावप्रतीतिः, यश्च समवेतविशेषणतया ककारे खकाराद्यभावावगमः, यच्च समवेतसमवेतविशेषणतया गत्वे खत्वाद्य भादसंवेदनम्, तत् सर्वं सम्बद्ध. विशेषणभावेन संगृहीतम् । यह अभिप्राय है कि सत्ता द्रव्यत्व प्रभृति सामान्यों का प्रत्यक्ष उसी इन्द्रिय से होता है जिससे उनके आश्रयों का प्रत्यक्ष होता है। (इन्द्रियों के निम्नलिखित छः संनिकर्ष प्रत्यक्ष के सम्पादक हैं) जिनमें (१) संयोग के द्वारा द्रव्य का प्रत्यक्ष होता है । (२) संयुक्त समवाय सम्बन्ध से गुणादि का ( अर्थात् द्रव्यसमवेत वस्तुओं का) प्रत्यक्ष होता है। (३) गुणत्वादि का प्रत्यक्ष संयुक्तसमवेत-समवाय सम्बन्ध से होता है। केवल (४) समवाय सम्बन्ध से शब्द का प्रत्यक्ष होता है। (५) शब्दत्व का प्रत्यक्ष समवेतसमवाय सम्बन्ध से निष्पन्न होता है और (६) सम्बद्ध विशेषणता सम्बन्ध से अभाव का प्रत्यक्ष होता है। रूप में रसाभाव का प्रत्यक्ष संयुक्तसमवेतविशेषणता' सम्बन्ध से, रूपत्व में रसस्वाभाव का प्रत्यक्ष 'संयुक्तसमवेत विशेषण (समवेत) विशेषणता सम्बन्ध से, 'क' वर्ण में 'ख' वर्ण के अभाव का प्रत्यक्ष 'समवेतविशेषणता' से, एवं गत्व में खत्वाभाव का प्रत्यक्ष 'समवेतसमवेतविशेषणता' सम्बन्ध से होता है, ये सभी विशेषणतायें कथित 'सम्बद्धविशेषणता' शब्द के द्वारा संगृहीत होती हैं । For Private And Personal
SR No.020573
Book TitlePrashastapad Bhashyam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreedhar Bhatt
PublisherSampurnanand Sanskrit Vishva Vidyalay
Publication Year1977
Total Pages869
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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