SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 531
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandir न्यायकन्दलीसंवलितप्रशस्तपादभाष्यम ४५६ [गुणे प्रत्यक्षन्यायकन्दली तस्यां यद्रूपमाभाति बाह्यमेकमिवान्यतः । व्यावृत्तमिव निस्तत्त्वं परीक्षानङ्गभावतः ॥ इति । अत्रोच्यते-यदि सामान्यस्य वस्तुभूतस्याभावात् तद्विशिष्टग्राहिता कल्पनात्वम्, तटसदर्थतैव कल्पनात्वं न शब्दसंसृष्टार्थग्राहिता । तत्र यदि शक्ष्यामः प्रमाणेन सामान्यमुपपादयितुं तदा सत्यपि शब्दसंसृष्टग्राहकत्वे तद्विषयं विकल्पज्ञानमिन्द्रियार्थजत्वात् प्रत्यक्षमेव स्यात् । यदपरोक्षावभासि तत् प्रत्यक्षं यथा निर्विकल्पकम्, अपरोक्षावभासि च विकल्पज्ञानम् । इह ज्ञानानां परोक्षत्वमनिन्द्रियार्थजत्वेन व्याप्तं यथानुमाने, अनिन्द्रियार्थजत्वविरुद्धं चेन्द्रिसे भिन्न ठहरता है, अतः ( कल्पना ज्ञान में विषमीभूत वह विशेष प्रकार का ) अर्थ निस्तत्त्व है (असत्) है। (उ०) (सविकल्पक ज्ञान कल्पना रूप होने के कारण प्रमाण नहीं है ) इस प्रसङ्ग में सिद्धान्तियों का कहना है कि सामान्य (जाति) नाम का कोई भाव पदार्थ बौद्धों के मत में नहीं है और सामान्य से युक्त अर्थ का ग्राहक होने के कारण ही सविकल्पक ज्ञान कल्पना (भ्रम) है तो फिर यही कहिये कि असत् अर्थ को ग्रहण करने के कारण ही सविकल्पक ज्ञान कल्पना ( भ्रम ) है । यह क्यों कहते हैं कि शब्द से सम्बद्ध अर्थ का ग्राहक होने के कारण सविकल्पक ज्ञान भ्रम है । इस प्रकार यह निश्चित होता है कि सविकल्पक ज्ञान चूंकि असत् अर्थ का प्रकाशक है इसीलिए वह कल्पना' है । इसलिए वह 'कल्पना' नहीं है कि शब्द से सम्बद्ध अर्थ का प्रकाशक है । (ऐगी स्थिति में ) यदि प्रमाण के द्वारा सामान्य नाम के भाव पदार्थ की सत्ता का हम लोग प्रमाण के द्वारा प्रतिपादन कर सके, एवं सविकल्पक ज्ञान यदि शब्द से सम्बद्ध अर्थ का प्रकाशक भी हो किन्तु इन्द्रिय और अर्थ ( के संनिकर्ष ) से उसकी उत्पत्ति हो, तो फिर इस इन्द्रियार्थजत्व रूप हेतु से उसमें प्रत्यक्षत्व की सिद्धि की जा सकती है। ( इस प्रसङ्ग के दृष्टान्त में साध्य का साधक यह अनुमान है) कि निर्विकल्पक ज्ञान की तरह जितने भी अपरोक्ष की तरह विषयों के भासक ज्ञान हैं, वे सभी प्रत्यक्ष होते हैं, अतः सविकल्पक ज्ञान भी अपरोक्षावभासि होने के कारण प्रत्यक्ष है । ( इस अनुमान में ) यह 'व्यापकविरुद्धोपलब्धि' अर्थात् व्यतिरेकव्याप्ति भी हेतु है कि अनुमान की तरह जितने भी ज्ञान बिना इन्द्रिय के उत्पन्न होते हैं वे सभी परोक्ष ही होते हैं। इन्द्रिय और अर्थ से उत्पन्न होना (इन्द्रियार्थजत्व) एवं इन्द्रिय से भिन्न करणों से उत्पन्न होना ( अनिन्द्रियार्थजन्यत्व ) ये दोनों परस्पर विरोधी हैं । अनिन्द्रियार्थजत्व का विरोधी यह इन्द्रियार्थजत्व निर्विकल्पक ज्ञान में है (जो कि दोनों के मत से प्रत्यक्ष है, अतः इन्द्रिय और अर्थ से उत्पन्न सविकल्पक ज्ञान भी प्रत्यक्ष प्रमाण है)। (प्र. ) ( उक्त अनुमान के ) विपक्ष में यह विरोधी अनुमान भी प्रस्तुत किया जा सकता है कि जिस प्रकार अनुमान रूप ज्ञान की उत्पत्ति में स्मृति की अपेक्षा For Private And Personal
SR No.020573
Book TitlePrashastapad Bhashyam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreedhar Bhatt
PublisherSampurnanand Sanskrit Vishva Vidyalay
Publication Year1977
Total Pages869
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy