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न्यायकन्दलीसंवलितप्रशस्तपादभाष्यम
[गुणे विपर्यय
प्रशस्तपादभाष्यम् अनुमानविषयेऽपि बाष्पादिभिधूमाभिमतैर्वह्नयनुमानम्, गवयदर्शनाच्च गौरिति । त्रयोदर्शनविपरीतेषु शाक्यादिदर्शनेष्विदं बाष्प को धूम समझकर उसके द्वारा ( जल में ) वह्नि का अनुमान, अनुमान के विषय में विपर्ययका उदाहरण है। अथवा गवय के सींग को देखकर गो का अनुमान भी ( इसका उदाहरण है ) । ऋग्वेद, सामवेद
न्यायकन्दली ज्ञानमत्यन्ततेजोऽभावे सति सर्वत्रारोपितरूपमात्रविषयमप्रत्यक्षमपि प्रत्यक्षमिव पश्यति।
अनुमानविषयेऽपि बाष्पादिभिर्बाष्पधूलिपताकादिभिधूमाभिमतेधूम इति ज्ञातैरनग्निके देशेऽग्न्यनुमानम् । तथा गवयविषाणदर्शनाद् गौरिति ज्ञानमनुमानविपर्ययः । __ अत्यन्तदुर्दर्शनाभ्यासाच्च विपर्ययो भवतीत्याह-त्रयीदर्शनविपरीतेष्विति। त्रयाणां वेदानामृग्यजुःसाम्नां समाहारः त्रयी, अथर्ववेदस्तु त्रय्येकदेश एव। दृश्यते स्वर्गापवर्गसाधनभूतोऽर्थोऽनयेति दर्शनम्, त्रय्येव दर्शनं त्रयीदर्शनम, तद्विपरीतेषु शाक्यादिदर्शनेषु शाक्यभित्रकनिर्ग्रन्थकसंसारमोचकादिशास्त्रेष्विदं श्रेय इति यदुपदिशन्ति तत् प्रमाणमिति ज्ञानं मिथ्याप्रत्ययः, तेषु कश्चिदेवोपगृहीतेषु सर्वेषां वर्णाश्रमिणां विगानात् प्रमाणविरोधाच्च । तथा शरीरेन्द्रियमनःस्वात्माभिमानो विपर्ययस्तेभ्यो व्यतिरिक्तस्य ज्ञातुः प्रतिपादनात् । का अन्धकार ही 'शार्वर्य' शब्द का अर्थ है । 'रात में उत्पन्न यह अन्धकार अञ्जन समूह की तरह श्याम है' यह ज्ञान यद्यपि तेज का अत्यन्त अभाव होने पर सभी स्थानों में आरोपित रूपविषयक होने पर भी अप्रत्यक्ष विषयक ही है फिर भी प्रत्यक्ष की तरह दीखता है।
अनुमान रूप विपर्यय वह है जहाँ 'बाष्पादि से' अर्थात् धूम समझे जानेवाले वाष्प धूल और पताकादि से अग्नि रहित देशों में जो वह्नि का ज्ञान होता है ( वही अनुमानरूप विपर्यय हैं)। इसी तरह गवय के सींग को देखने से जो गो का ज्ञान होता है, वह भी विपर्यगरूप अनुमान ही है। 'त्रयीदर्शनविपरीतेषु' इत्यादि से यह दिखलाया गया है कि कुत्सित दर्शनों के अभ्यास से भी विपर्ययरूप अविद्या की उत्पत्ति होती है । 'त्रयाणां समाहारः त्रयी' इस व्युत्पत्ति के अनुसार ऋग्वेद, यजुर्वेद और सामवेद इन तीनों के समुदाय का नाम ही 'त्रयी' है। अथर्ववेद त्रयो का ही एकदेश है। 'दृश्यते स्वर्गापवर्गसाधनभूतोऽर्थोऽनया इति दर्शनम्' इस व्युत्पत्ति के अनुसार जिस दृष्टि से स्वर्ग और मोक्ष इन दोनों के कारणीभूत वस्तु देखो जाय वही दृष्टि प्रकृत 'दर्शन' शब्द का अर्थ है । 'त्रय्येव दर्शनम् त्रयोदर्शनम्'
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