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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandir ( ३५ ) मिलें' इस प्रकार की धारणा से जिनसे साक्षात् या परम्परा से दुःख मिलने की सम्भावना समझ में आती है, उन सभी वस्तुओं से द्वेष उत्पन्न होता है । इच्छा अपने लिए अथवा दूसरे के लिए किसी अप्राप्त वस्तु की 'मुझे यह मिले या उसे यह मिले' इस प्रकार की जो प्रार्थना, उसे ही 'इच्छा' कहते हैं । काम अभिला. षादि इसके अनेक अवान्तर भेद हैं । द्वेष आत्मा के जिस गुण के द्वारा जीव अपने को जलता सा अनुभव करे वही 'द्वेष' है । क्रोध द्रोहादि इसी के अवान्तर भेद हैं। प्रयत्न उत्साह को ही 'प्रयत्न' कहते हैं । यह तीन प्रकार का है (१)जीवनधारणोपयोगी (या जीवनयोनि) (२) इच्छा से उत्पन्न और ( ३ ) द्वेष से उत्पन्न । इनमें जीवनयोनि यत्न से सोते हुए जीव के प्राणादि वायुओं की क्रियायें उत्पन्न होती हैं। एवं जागते हुए पुरुष का इन्द्रियों के साथ सम्बन्ध होता है । अपने अभीष्ट वस्तु की प्राप्ति के लिए आवश्यक क्रिया का कारण ही इच्छाजनित 'प्रयत्न' है। इस इच्छाजनित प्रयत्न के कारण ही शरीर का पतन नहीं होता । एवं अहित वस्तुओं से बचने के लिए जो व्यापार होते हैं, उनका कारण भी प्रयत्न ही है, जो द्वेष से उत्पन्न होता है। बुद्धि से लेकर प्रयत्न तक कहे गये ये १७ गुण ही महर्षि कणाद के सूत्रों के द्वारा कहे गये हैं । गुरुत्व, द्रवत्व, स्नेह, संस्कार, धर्म अधर्म और शब्द इन सात वस्तुओं में गुणत्व की व्यवस्था भाष्यकार प्रशस्तपाद ने की है । और इसे कथित सत्रह गुणों के विधायक सूत्र में पटित 'च' शब्द के द्वारा सूत्रकार का अनुमत माना है । गुरुत्व पृथिवी और जल का पहिला पतन जिस गुण के कारण हो उसे 'गुरुत्व' कहते हैं। यह 'गुरुत्व' नाम का गुण केवल पृथिवी और जल में ही रहता है । गुरुत्व से पतन का सिद्धान्त पृथ्वी के मध्याकर्षणवाले आधुनिक सिद्धान्त से बिलकुल विपरीत है । स्नेह जो केवल जल का ही विशेषगुण हो उसे 'स्नेह' कहते हैं । स्नेह के हीकारण आटा प्रभृति पिसे हुए द्रव्यों की गोल आकृति बन सकती हैं । घृतादि जिन पार्थिवद्रव्यों से उक्त आकृतियाँ बनती हैं, वहाँ भी घृतादि में जल सम्बन्ध के कारण ही वैसा होता है। For Private And Personal
SR No.020573
Book TitlePrashastapad Bhashyam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreedhar Bhatt
PublisherSampurnanand Sanskrit Vishva Vidyalay
Publication Year1977
Total Pages869
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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