SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 474
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandir ३६६ प्रकरणम् ] भाषानुवादसहितम प्रशस्तपादभाष्यम् विनाशस्त्वपेक्षाबुद्धिसंयोगद्रव्यविनाशात् । अपेक्षाबुद्धिविनाशात् तावदुत्पन्ने परत्वे यस्मिन् काले सामान्यबुद्धिरुत्पन्ना भवति, ततोऽपेक्षाबुद्धेविनश्यत्ता, सामान्यज्ञानतत्सम्बन्धेभ्यः (परत्व और अपरत्व इन दोनों का ) विनाश ( इन सात ) रीतियों में से किसी रीति से होता है-(१) अपेक्षाबुद्धि के विनाश से, (२) संयोग के विनाश से, ( ३ ) द्रव्य के विनाश से, (४) द्रव्य और अपेक्षाबुद्धि इन दोनों के विनाश से, (५) द्रव्य और संयोग इन दोनों के विनाश से (६ ) संयोग और अपेक्षा बुद्धि इन दोनों के विनाश से, (७ ) एवं अपेक्षाबुद्धि द्रव्य एवं संयोग इन तीनों के विनाश से। (१) अपेक्षाबुद्धि के विनाश से परत्व और अपरत्व का विनाश इस प्रकार होता है कि परत्व (या अपरत्व ) की उत्पत्ति के बाद जिस समय (परत्व या अपरत्व में रहनेवाले ) सामान्य ( परत्वत्वादि जातियों ) की न्यायकन्दली श्मश्रुकार्कश्याद्यभावानुमितमल्पोत्पत्तिकालमवधि कृत्वा रूढश्मश्रुबलिपलितादिमति स्थविरे विप्रकृष्टा बुद्धिरुत्पद्यते, तां बुद्धिमपेक्ष्य परेणादित्यपरिवर्तनभूयस्त्ववता कालप्रदेशेन संयोगादसमवायिकारणात् तस्मिन्नेव स्थविरे परत्वस्योत्पत्तिः, स्थविरं चावधि कृत्वा यूनि सन्निकृष्टा बुद्धिरुत्पद्यते, तां बुद्धिमपेक्ष्यापरेणाल्पादित्यपरिवर्तनोपलक्षितेन कालप्रदेशेन संयोगादपरत्वस्योत्पत्तिः। युवस्थविरशरीरयोः कालसंयोगाल्पीयस्त्वभूयस्त्वे शरीरसन्तानापेक्षया, न तु व्यक्तिविषयत्वेन, तयोः प्रतिक्षणं विनाशात् । होती है, जिसमें वह पुरुष समवायिकारण है, एवं सूर्य को अधिक क्रियावाले काल प्रदेश के साथ उस पुरुष का संयोग असवायिकारण है, एवं उक्त विप्रकृष्ट बुद्धि निमित्तकारण है। ( इसी प्रकार ) वृद्ध पुरुष को अवधि मानकर युवा पुरुष में अल्पकाल सम्बन्ध रूप संनिकृष्ट बुद्धि की उत्पत्ति होती है। इसी बुद्धिरूप निमित्त कारण से युवा पुरुषरूप समवायिका रण में कालिक अपरत्व ( कनिष्ठत्व ) की उत्पत्ति होती है, जिसका असमवायिकारण आदित्य की अल्पगति से परिमित काल प्रदेश और उस युवा पुरुष का संयोग है । यद्यपि युवा शरीर और वृद्ध शरीर दोनों ही क्षणिक है, (अतः दोनों ही के एक एक शरीर में समान ही काल का सम्बन्ध है), अतः दोनों में अधिककाल सम्बन्ध और अल्पकाल सम्बन्ध वर्तमान काल के दोनों शरीर के समुदायों को दृष्टि में रखकर कहा गया है । For Private And Personal
SR No.020573
Book TitlePrashastapad Bhashyam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreedhar Bhatt
PublisherSampurnanand Sanskrit Vishva Vidyalay
Publication Year1977
Total Pages869
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy