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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandir प्रकरणम् ] भाषानुवादसहितम् ३५७ प्रशस्तपादभाष्यम् किं कारणम् १ कारणसंयोगिना ह्यकारणेन कार्यमवश्यं संयुज्यत इति न्यायः । अतः पार्थिवं द्वयणकं कारणसंयोगिनाप्येनाणुना सम्बद्धयते । आप्यमपि द्वयणुकं कारणसंयोगिना पार्थिवेनेति । अथ द्वयणुकयोरितरेतरकारणाकारणसम्बद्धयोः कथं परस्परतः की एक ही समय उत्पत्ति होती है) (प्र०) (एक कारण से दो कार्यों की उत्पत्ति) क्यों होती है ? ( उ० ) चूंकि यह नियम है कि समवायिकारण के संयोग से युक्त अकारण ( द्रव्य ) के साथ ( उस समवायिकारण का) कार्य भी अवश्य ही संयुक्त होता है, अतः पार्थिव द्वयणुक उस जलीय परमाणु के साथ भी संयुक्त होता है, जिसका संयोग उक्त पार्थिव परमाणु के साथ है। (प्र०) एक दूसरे के कारण और अकारण के साथ सम्बद्ध इन दोनों द्वयणुकों में परस्पर संयोग न्यायकन्दली किं कारणम् ? पाथिवाप्ययोद्वर्यणुकयोविजातीयपरमाणसंयोगे किं प्रमाणम् ? इति पृष्टः सन् प्रमाणमाह-कारणसंयोगिनेति । पार्थिवपरमाणुराप्यद्वयणुकेन सह सम्बद्धयते, तत्कारणसंयोगित्वात पटसंयुक्ततुरीवत् । एवमाप्यं परमाणुमपि पक्षीकृत्य वक्तव्यम् । यतः कारणसंयोगिना कार्य संयुज्यते, अतः पार्थिवं द्वयणुकं कारणसंयोगिनाप्येन परमाणुना सम्बध्यते, आप्यं च द्वयणुकं तस्य कारणसंयोगिना पार्थिवपरमाणुनेत्युपसंहारः । अथ पार्थिवाप्यद्वयणुकयोरितरेतरकारणाकारणसम्बद्धयोः कथं सम्बन्धः ? पार्थिवद्वयणुकस्य स्वकीयाकारणेनाप्यद्वयणुककारणेनाप्यपरमाणुना 'किं कारणम् ?' इत्यादि से प्रश्न करते हैं कि क्या कारण है ? अर्थात् पार्थिव द्वथणुक और जलीय द्वथणुक इन दोनों का अपने से भिन्न जाति के परमाणुओं के (पार्थिवद्वथणुक का जलीय परमाणु के साथ एवं जलीय द्वयणुक का पार्थिव परमाणु के साथ) जो संयोग की उत्पत्ति होती है, इसमें क्या कारण है ? इसी प्रश्न का उत्तर 'कारणसंयोगिना' इत्यादि सन्दर्भ से देते हैं । अर्थात् जिस प्रकार तन्तु में संयुक्त तुरी के साथ पट भी संयुक्त होता है, उसी प्रकार पार्थिव परमाणु भी जलीय द्वयणुक के साथ संयुक्त होता है, क्योंकि जलीय द्वयणुक के कारणीभूत जलीय परमाणु के साथ वह (पार्थिव परमाणु) संयुक्त है । इसी प्रकार जलीयपरमाणु को भी पक्ष बनाकर अनुमान करना चाहिए। (अर्थात् जिस प्रकार कपाल में संयुक्त दण्ड के साथ घट भी संयुक्त होता है, उसी प्रकार जलीय परमाणु भी पार्थिव द्वयणक के साथ संयुक्त होता है, क्योंकि पार्थिव द्वयणक के कारणीभूत पार्थिव परमाणु के साथ उसका संयोग है)। इस प्रसङ्ग का सारमर्म यह है कि जिस द्रव्य के साथ कारण का संयोग रहता है, उस द्रव्य के साथ कार्य भी अवश्य ही संयुक्त होता है। अतः प्रकृत में पार्थिव द्वयणुक जलीय परमाणु के साथ For Private And Personal
SR No.020573
Book TitlePrashastapad Bhashyam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreedhar Bhatt
PublisherSampurnanand Sanskrit Vishva Vidyalay
Publication Year1977
Total Pages869
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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