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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandir ३५५ प्रकरणम् ] भाषानुवादसहितम् प्रशस्तपादभाष्यम् यदा पार्थिवाप्ययोरण्वोः संयोगे सत्यन्येन पार्थिवेन पार्थिवस्य, अन्येन चाप्येन चाप्यस्य युगपत्संयोगौ भवतस्तदा ताभ्यां संयोगाभ्यां पार्थिवाप्ये द्वथणुके युगपदारभ्यते । ततो यस्मिन् काले द्वयणुकयोः कारणगुणपूर्वक्रमेण रूपाद्युत्पत्तिस्तस्मिन्नेव काले इतरेतरकारणासे दोनों संयोगों की उत्पत्ति कैसे होती है ? ( उ० ) जब पृथिवी का एक परमाणु जल के एक परमाणु के साथ संयुक्त होता है, फिर वही पार्थिव परमाणु दूसरे पार्थिव परमाणु के साथ. एवं वही जलीय परमाणु दूसरे जलीय परमाणु के साथ एक ही समय संयुक्त होता है, ( इसके बाद दोनों पार्थिव परमाणुओं के एवं दोनों जलीय परमाणुओं के ) दोनों संयोगों से एक ही समय पार्थिव द्वयणुक और जलीय द्वयणुक दोनों की उत्पत्ति होती है। इसके बाद जिस समय कारणगुणक्रम से दोनों द्वयणुकों में न्यायकन्दली एकस्माच्च संयोगाद द्वयोरुत्पत्तिः कथमित्यज्ञेन पृष्टः सन्नाह—यदेति । पार्थिवाप्ययोः परमाण्वोः संयोगे सत्यन्येन पाथिवेन परमाणुना पार्थिवस्य परमाणोरन्येनाप्येन चाप्यस्य परमाणोर्युगपत्संयोगौ भवतस्तदा ताभ्यां संयोगाभ्यां पार्थिवाप्ये द्वयणुके युगपदारभ्येते । समानजातीयसंयोगस्य द्रव्यान्तरोत्पत्तिहेतुत्वात् । ततो यस्मिन्नेव काले पार्थिवाप्यद्वयणकयोः कारणगुणपूर्वक्रमेण रूपाद्युत्पत्तिः, तस्मिन्नेव काले इतरेतरकारणाकारणगतात् संयोगा ___ किसी अज्ञपुरुष के द्वारा ‘एक ही संयोग से दो संयोगों की उत्पत्ति कैसे होती है ?' यह पूछे जाने पर 'यदा' इत्यादि से इसका उत्तर कहते है। (जहाँ) एक पार्थिव परमाणु और एक जलीय परमाणु दोनों परस्पर संयुक्त रहते हैं (वहाँ) उक्त पार्थिव परमाणु का दूसरे पार्थिव परमाणु के साथ, एवं उक्त जलीय परमाणु का दूसरे जलीय परमाणु के साथ, एक ही समय दो संयोगों की उत्पत्ति होती है । वहाँ इन दोनों संयोगों में से दोनों पार्थिव परमाणुओं के संयोग से पार्थिव द्वयणुक की, एवं दोनों जलीय परमाणुओं के संयोग से जलीय द्वयणुक की उत्पत्ति अवश्य ही होगी, क्योंकि एक जाति के दो द्रव्यों का संयोग (उसी जाति के) दूसरे द्रव्य की उत्पत्ति का कारण है। इसके बाद जिस समय कथित पार्थिव और जलीय दोनों द्वयणुकों में 'कारणगुणपूर्वक्रम' से रूपादि (गुणों) की उत्पत्ति होती है, उसी समय दोनों द्वयणुर्को के समवायिकारण पार्थिव और जलीय परमाणु और (पार्थिव द्वयणुक के) अकारण जलीय परमाणु और (जलीय द्वयणुक के अकारण) पार्थिव परमाणु इन दोनों (कारणाकारण) के एक ही संयोग For Private And Personal
SR No.020573
Book TitlePrashastapad Bhashyam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreedhar Bhatt
PublisherSampurnanand Sanskrit Vishva Vidyalay
Publication Year1977
Total Pages869
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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