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न्यायकन्दलीसंवलितप्रशस्तपादभाष्यम्
[गुणे पृथक्त्व
प्रशस्तपादभाष्यम् पृथक्त्वमपोद्धारव्यवहारकारणम् । तत्पुनरेकद्रव्यमनेकद्रव्यं च । तस्य तु नित्यत्वानित्यत्वनिष्पत्तयः संख्यया व्याख्याताः।
'अपोद्धार' अर्थात् 'इससे यह पृथक है' इस व्यवहार (ज्ञान और शब्दप्रयोग) का कारण ही 'पृथक्त्व' है। यह भी (१) एकद्रव्य और (२) अनेकद्रव्य भेद से दो प्रकार का है। इसके नित्यत्व और अनित्यत्व की सिद्धि भी संख्या की भाँति ही समझनी चाहिए । (किन्तु संख्या से पृथक्त्व में इतना ही अन्तर है कि) जिस प्रकार एकत्वादि संख्याओं में
न्यायकन्दली प्रत्येकमाश्रयग्रहणे गृहीतयोरेव परिमाणयोः प्रकर्षभावाभावप्रतीत्यर्था, ययोरधिगमादिदमस्माद्दीर्घमिदं ह्रस्वमिति व्यवहारः स्यात् ।।
__पृथक्त्वमपोद्धारव्यवहारकारणम् । अपोद्धारव्यवहार इदमस्मात् पृथगिति ज्ञानं व्यपदेशश्च, तस्य कारणं पृथक्त्वमिति । व्याख्यानं पूर्ववत् । इतरेतराभावनिमित्तोऽयं व्यवहार इति चेन्न, प्रतिषेधस्य विधिप्रत्ययविषयत्वायोगात्। तत्पुनरेकद्रव्यमनेकद्रव्यं च । एक द्रव्यमाश्रयो यस्य तदेकद्रव्यम्, अनेक द्रव्यमाश्रयो यस्य तदनेकद्रव्यम्, पुनःशब्द एकद्रव्यवृत्तेः परिमाणात पृथक्त्वस्यैकानेकद्रव्यवृत्तित्वविशेषावद्योतनार्थः । परिमाणमेकद्रव्यम्, एकपृथक्त्वं पुनरेकद्रव्यमनेकद्रव्यं चेति विशेषः ।
होती है, जिन दोनों को प्रतीति से 'इससे यह ह्रस्व है' या 'इससे यह दीर्घ है' इत्यादि व्यवहार होते हैं ।।
___ 'पृथक्त्वमपोद्धारव्यवहारकारणम्' कथित व्याख्या की तरह यह इससे पृथक् है' इस आकार का ज्ञान एवं इस आनुपूर्वी के शब्द का प्रयोग ये दोनों ही 'अपोद्धारव्यवहार' शब्द के अर्थ हैं। (प्र.) उक्त व्यवहार तो ( अवधि और आश्रय ) इन दोनों में रहनेवाले भेद से ही होता है । ( उ०) ( भेद से पृथक्त्व की प्रतीति ) नहीं होती है, क्योंकि प्रतिषेध ( अभाव ) विधि प्रत्यय (विना नपद के वाक्य ) का विषय नहीं हो सकता । 'तत्पुनरेकद्रव्य मनेकद्रव्यञ्च' इस वाक्य के 'एकद्रव्य' शब्द की व्युत्पत्ति 'एक द्रव्यम् आश्रयो यस्य' इस प्रकार की है। उक्त वाक्य के 'पुनः' शब्द से पृथक्त्व में परिमाण से इस अन्तर की सूचना दी गयी है कि परिमाण एक ही आश्रय (द्रव्य ) में रह सकता है, किन्तु पृथक्त्व दोनों प्रकार का है। कोई पृथक्त्व एक ही द्रव्य में रहता है । जैसे कि एकपृथक्त्व ) और कोई पृथक्त्व अनेक द्रव्यों में ही रहता है, ( जैसे कि द्विपृथक्त्वत्वादि )।
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