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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandir २६० न्यायकन्दलीसंवलितप्रशस्तपादभाष्यम् [गुणे रूपादीनां पाकजोत्पत्ति प्रशस्तपादभाष्यम तदनन्तरं भोगिनाम दृशापेक्षादात्माणुसंयोगादुत्पन्नपाकजेष्वणुषु कर्मोत्पत्तौ तेषां परस्पर संयोगाद् द्वयणुकादिक्रमेण कार्यद्रव्यमृत्पद्यते । तत्र च कारणगुणप्रक्रमेण रूपाद्युत्पत्तिः । ___इसके बाद भोग करनेवाले आत्मा के अदष्ट, एवं आत्मा और परमाणुओं के संयोग इन दोनों से पाकजनित विलक्षण रूपादि से युक्त परमाणुओं में परस्पर संयोग उत्पन्न होते हैं। इन संयोगों से द्वयणुकादि की उत्पत्ति के क्रम से ( घटादि ) स्थूल द्रव्य की उत्पत्ति होती है। फिर इस ( नये ) कार्य-द्रव्य में स्वाभाविक कारणगुण के क्रम से रूपादि गुणों की उत्पत्ति होती है। न्यायकन्दलो वसीयते । परमाणुरूपादिविनाशोत्पादावेककारणको न भवतः, रूपादिविनाशोत्पादत्वात् तन्तुरूपादिविनाशोत्पादवत् । तदनन्तरमित्यादि। उत्पन्नेषु घटादिषु येषां तत्साध्ययोः सुखदुःखयोरनभवो भोगो भविष्यति ते भोगिनः, तेषामदृष्टं धर्माधर्मलक्षणम्, तमपेक्षमाणादात्मपरमाणुसंयोगादुत्पन्नपाकजरूपरसगन्धस्पर्शेषु परमाणुषु कर्माण्युत्पद्यन्ते । तेभ्यस्तेषां परमाणूनां परस्परसंयोगास्ततश्च द्वाभ्यां द्वयणुकं त्रिभिद्वर्यणुकैस्त्र्यणुकमित्यनेन क्रमेण कार्यद्रव्यं घटादिकमुत्पद्यत इति । तत्र च कारणगुणप्रक्रमेण रूपाद्युत्पतिः। परमाणुद्वयरूपाभ्यां द्वयणुके रूपं द्वयणुकरूपेभ्यश्च त्र्यणुकरूपमित्यनेन क्रमेण घटादौ रूपरसगन्धस्पर्शोत्पत्तिः ! वे भी उत्पत्ति और विनाश हैं, उसी प्रकार उसी हेतु से यह भी निष्पन्न होता है कि परमाणुओं के रूपादि की उत्पत्ति और विनाश दोनों ही एक सामग्नी से उत्पन्न नहीं होते । 'तदनन्तरम्' अर्थात् घटादि द्रव्यों के उत्पन्न हो जाने के बाद उन घटादि द्रव्यों से जिन जीवों को सुख या दुःख का अनुभव रूप 'भोग' होगा, वे ही जोव ( भोगिनाम्' इस पद के ) 'भोगि' शब्द से अभिप्रेत हैं। उन्हीं के अदृष्ट अर्थात् धम और अधर्म एवं आत्मा और परमाणुओं के संयोग इन सबों से पाकज रूपादि से युक्त परमाणुओं में क्रियायें उत्पन्न होती हैं। इन क्रियाओं से उन परमाणुओं में परस्पर संयोग उत्पन्न होते हैं। उक्त संयोग एवं दो परमाणुओं से द्वयणुक, एवं तीन द्वयणुकों से 'त्र्यणुक' इसी क्रम से ( अभिनव ) घटादि द्रव्यों की उत्पत्ति होती है । 'उसमें' अर्थात् द्वथणुक में 'कारणगुणक्रम' से अर्थात् परमाणुओं के (पाकज ) रूपों से (द्वयणुकों में ) रूपों की उत्पत्ति होती है। अर्थात् दोनों परमाणुओं के दोनों रूपों से द्वयणुक में एक रूप की उत्पत्ति होती है। एवं तीन द्वयणुकों के तीनों रूपों से व्यणुक में एक For Private And Personal
SR No.020573
Book TitlePrashastapad Bhashyam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreedhar Bhatt
PublisherSampurnanand Sanskrit Vishva Vidyalay
Publication Year1977
Total Pages869
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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