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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandir २५६ प्रकरणम् ] भाषानुवादसहितम् न्यायकन्दली गतोष्ण्यापेक्षाच्छ्यामादीनां पूर्वरूपरसगन्धस्पर्शानां विनाशः । पुनरन्यस्मादग्निसंयोगात् पाकजा जायन्ते । स्वतन्त्रेषु परमाणुषु पाकजोत्पत्तौ कार्यानवरुद्ध एव द्रव्ये सर्वत्र रूपाद्युत्पत्तिदर्शनं प्रमाणम् । परमाणुरूपादयः कार्यानवरुद्धष्वेव द्रव्येषु भवन्ति, आरभ्यमाणरूपादित्वात्, तन्त्वादिरूपवत् । पूर्वरूपादिविनाशेऽपि रूपान्तरोत्पत्तिः प्रमाणम् । रूपादिमति रूपाद्यन्तरारम्भासम्भवाद् रक्तादिरूपादयो रूपादिमत्सु नारभ्यन्ते रूपादित्वात्, तन्त्वादिरूपादिवत् । एवं परमाणुषु पूर्वरूपादिविनाशे सिद्धे वह्निसंयोग एव विनाशहेतुरवतिष्ठते, तद्भावित्वादन्यस्यासम्भवात् । न च यदेव रूपादीनां विनाशकारणं तदेव तेषामुत्पत्तिकारणमित्यवगन्तव्यम्, तन्तुरूपादीनामन्यत उत्पत्तेरन्यतश्च विनाशदर्शनात् । तेन परमाणुषु रूपादीनामन्यस्मादग्निसंयोगादुत्पत्तिरन्यस्मादग्निसंयोगाद्विनाश इत्यसंयोगादौष्ण्यापेक्षाच्छयामादीनां विनाशः, पुनरन्यस्मादग्निसंयोगादौपण्यापेक्षापाकजा जायन्ते' 'स्वतन्त्र' अर्थात् परस्पर असम्बद्ध परमाणुओं में पाक से विलक्षण रूपादि की उत्पत्ति होती है। जिस समय द्रव्य दूसरे द्रव्य के उत्पादनकायं से विरत रहता है, उसी समय उसमें गुण की उत्पत्ति होती है। पटरूप कार्य के उत्पादन में लगने से पहिले ही तन्तुओं में रूपादि की उत्पत्ति होती है, अतः यही प्रामाणिक है कि द्वयणुक रूप कार्य में व्याप्त होने से पहिले पार्थिव परमाणुओं में भी रूपादि की उत्पत्ति होती है, क्योंकि ये भी उत्पत्तिशील रूपादि ही हैं। एवं यह भी प्रमाण से सिद्ध है कि एक आश्रय में दूसरे रूपादि की उत्पत्ति तब तक नहीं हो सकती, जब तक उसके पहिले के रूपादि का नाश न हो जाय । अत: यह अनुमान ठीक है कि पाक से रक्त रूपादि की उत्पत्ति रूप से युक्त किसी द्रव्य में नहीं होती है, जैसे कि तन्तु प्रभृति के रूपादि किसी रूपयुक्त द्रव्य में नहीं उत्पन्न होते हैं। इससे यह सिद्ध होता है कि परमाणुओं क पहिले रूपादि का नाश हो जाने पर पाक से उनमें दूसरे रूपादि की उत्पत्ति होती है । एवं रूप का उक्त नाश भी अग्निसंयोग के रहते ही होता है. एवं नहीं रहने से नहीं होता है, अतः (पाकज रूपादि की उत्पत्ति की तरह उस आश्रय में रहनेवाले अपाकज ) रूपादि के नाश का भी अग्निसंयोग ही कारण है। किन्तु रूप का नाश एवं रूप की उत्पत्ति दोनों एक कारण से सम्भव नहीं हैं, क्योंकि तन्तु प्रभृति के रूपों का नाश एवं उत्पत्ति विभिन्न कारणों से देखे जाते हैं। इससे यह फलितार्थ निकलता है कि अग्नि के एक संयोग से पहिले के रूपादि का नाश होता है, एवं अग्नि के ही दूसरे संयोग से दूसरे रूपादि की उत्पत्ति होती है। इससे यह अनुमान निष्पन्न होता है कि जिस प्रकार तन्तु प्रभृति के रूपादि की उत्पत्ति और विनाश दोनों एक सामग्री से इसलिए नहीं होते कि For Private And Personal
SR No.020573
Book TitlePrashastapad Bhashyam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreedhar Bhatt
PublisherSampurnanand Sanskrit Vishva Vidyalay
Publication Year1977
Total Pages869
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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