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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra २३८ www.kobatirth.org रणगुणपूर्वकाः । न्यायकन्दलीसंवलितप्रशस्तपादभाष्यम् प्रशस्तपादभाष्यम् बुद्धि सुखदुःखेच्छाद्वेषप्रयत्नधर्माधर्मभावनाशब्दा Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandir [ गुणसाधर्म्यवैधर्म्य - बुद्धिसुखदुःखेच्छाद्वेषप्रयत्नधर्माधर्मभावनाशब्दतूलपरिमाणोत्तरसं योगनैमित्तिकद्रवत्वपरत्वापरत्वपाकजाः संयोगजाः । बुद्धि, सुख, दुःख, इच्छा, द्वेष, प्रयत्न, धर्म, अधर्म, भावना और शब्द ये नौ गुण 'अकारणगुणपूर्वक' हैं ( अर्थात् ये अपने आश्रयों के अवयवों में रहनेवाले अपने समानजातीय गुण से नहीं उत्पन्न होते ) । अका बुद्धि, सुख, दुःख, इच्छा, द्वेष, प्रयत्न, धर्म, अधर्म, भावना, शब्द, रुई प्रभृति के परिमाण, उत्तरदेश के साथ संयोग, नैमित्तिक द्रवत्व ये तेरह गुण संयोग से उत्पन्न होते हैं । न्यायकन्दली रूपादीनां चोत्पत्तिरेव नास्तीति न व्यभिचारः । एषां कारणगुणपूर्वकत्वाभिधानं स्वरूपकथनं न त्ववधारणार्थम् नैमित्तिकद्रवत्ववेगयोरकारणगुण पूर्वकत्वस्यापि सम्भवात् । कारणगुणपूर्वकत्वमनयोर्वेगवदारब्धजलावयविसम वेतयोर्द्रष्टव्यम् । बुद्धयादयः शब्दान्ता अकारणगुणपूर्वकाः स्वाश्रयस्य यत्समवायिकारणं तद्गुणपूर्वका न भवन्ति, नित्यगुणत्वात् । दुःख, इच्छा, द्वेष, प्रयत्न, धर्म, अधर्म और भावना, ये नौ संयोग से उत्पन्न होते हैं । शब्द की उत्पत्ति भेरी ( नगाड़ा) होती है । 'प्रचय' नाम के संयोग से रूई के परिमाण की बुद्धयादयः संयोगजाः । बुद्धिसुखदुःखेच्छाद्वेषप्रयत्नधर्माधर्मभावना आत्ममनःसंयोगजाः । शब्दो भेर्याकाशसंयोगजः । तूलपरिमाणं प्रचयाख्यसंयोगजम् । इस नियम का यह अभिप्राय नहीं है कि ये सभी गुण कारणगुणपूर्वक ही होते हैं', क्योंकि नैमित्तिकद्रवत्व और वेग अकारणगुणपूर्वक भी होते हैं । वेग एवं द्रवत्व से युक्त अययवों के द्वारा उत्पन्न जल रूप अवयवी के वेग और द्रवत्व में कथित कारणगुणपूर्वकत्व समझना चाहिए । बुद्धि से लेकर शब्द पर्यन्त कथित ये नौ गुण 'अकारणगुणपूर्वक' हैं, अर्थात् अपने आश्रयरूप द्रव्य के समवायिकारण में रहनेवाले गुण से नहीं उत्पन्न होते, क्योंकि इनके आश्रय नित्य हैं । इन गुणों के समवायिकारणों का कोई कारण ही नहीं है । For Private And Personal 'बुद्धि प्रभूति कथित गुण संयोग से उत्पन्न होते हैं' इनमें बुद्धि, सुख, गुण आत्मा और मन के और आकाश के संयोग से उत्पत्ति होती है । संयोगज
SR No.020573
Book TitlePrashastapad Bhashyam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreedhar Bhatt
PublisherSampurnanand Sanskrit Vishva Vidyalay
Publication Year1977
Total Pages869
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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