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रणगुणपूर्वकाः ।
न्यायकन्दलीसंवलितप्रशस्तपादभाष्यम्
प्रशस्तपादभाष्यम्
बुद्धि सुखदुःखेच्छाद्वेषप्रयत्नधर्माधर्मभावनाशब्दा
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[ गुणसाधर्म्यवैधर्म्य -
बुद्धिसुखदुःखेच्छाद्वेषप्रयत्नधर्माधर्मभावनाशब्दतूलपरिमाणोत्तरसं योगनैमित्तिकद्रवत्वपरत्वापरत्वपाकजाः संयोगजाः ।
बुद्धि, सुख, दुःख, इच्छा, द्वेष, प्रयत्न, धर्म, अधर्म, भावना और शब्द ये नौ गुण 'अकारणगुणपूर्वक' हैं ( अर्थात् ये अपने आश्रयों के अवयवों में रहनेवाले अपने समानजातीय गुण से नहीं उत्पन्न होते ) ।
अका
बुद्धि, सुख, दुःख, इच्छा, द्वेष, प्रयत्न, धर्म, अधर्म, भावना, शब्द, रुई प्रभृति के परिमाण, उत्तरदेश के साथ संयोग, नैमित्तिक द्रवत्व ये तेरह गुण संयोग से उत्पन्न होते हैं ।
न्यायकन्दली
रूपादीनां चोत्पत्तिरेव नास्तीति न व्यभिचारः । एषां कारणगुणपूर्वकत्वाभिधानं स्वरूपकथनं न त्ववधारणार्थम् नैमित्तिकद्रवत्ववेगयोरकारणगुण
पूर्वकत्वस्यापि सम्भवात् ।
कारणगुणपूर्वकत्वमनयोर्वेगवदारब्धजलावयविसम
वेतयोर्द्रष्टव्यम् ।
बुद्धयादयः शब्दान्ता अकारणगुणपूर्वकाः स्वाश्रयस्य यत्समवायिकारणं तद्गुणपूर्वका न भवन्ति, नित्यगुणत्वात् ।
दुःख, इच्छा, द्वेष, प्रयत्न, धर्म, अधर्म और भावना, ये नौ संयोग से उत्पन्न होते हैं । शब्द की उत्पत्ति भेरी ( नगाड़ा) होती है । 'प्रचय' नाम के संयोग से रूई के परिमाण की
बुद्धयादयः संयोगजाः । बुद्धिसुखदुःखेच्छाद्वेषप्रयत्नधर्माधर्मभावना आत्ममनःसंयोगजाः । शब्दो भेर्याकाशसंयोगजः । तूलपरिमाणं प्रचयाख्यसंयोगजम् । इस नियम का यह अभिप्राय नहीं है कि ये सभी गुण कारणगुणपूर्वक ही होते हैं', क्योंकि नैमित्तिकद्रवत्व और वेग अकारणगुणपूर्वक भी होते हैं । वेग एवं द्रवत्व से युक्त अययवों के द्वारा उत्पन्न जल रूप अवयवी के वेग और द्रवत्व में कथित कारणगुणपूर्वकत्व समझना चाहिए ।
बुद्धि से लेकर शब्द पर्यन्त कथित ये नौ गुण 'अकारणगुणपूर्वक' हैं, अर्थात् अपने आश्रयरूप द्रव्य के समवायिकारण में रहनेवाले गुण से नहीं उत्पन्न होते, क्योंकि इनके आश्रय नित्य हैं । इन गुणों के समवायिकारणों का कोई कारण ही नहीं है ।
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'बुद्धि प्रभूति कथित गुण संयोग से उत्पन्न होते हैं' इनमें बुद्धि, सुख, गुण आत्मा और मन के और आकाश के संयोग से उत्पत्ति होती है । संयोगज