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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandir ( १७ ) निर्माण हुआ था, द्वयणुक पर्यन्त के वे सभी अवयवी अग्नि के संयोग से बिनष्ट हो जाते हैं। नित्य होने के कारण परमाणु विनष्ट नहीं होते। इस प्रकार उक्त श्याम घट के आरम्भक सभी परमाणुओं के अलग हो जाने पर उनमें से प्रत्येक परमाणु में पाक से श्याम रूप का नाश हो जाता है। और पाक से ही उनमें रक्त रूप की उत्पत्ति होती है। इसी प्रकार पहिले के रस गन्ध और स्पर्श भी नष्ट हो जाते हैं और उनमें दूसरे रसादि की उत्पत्ति होती है। इन दूसरे रूप रस गन्ध और स्पर्श से युक्त परमाणुओं के द्वारा पुनः द्वयणुकादि के क्रम से दूसरे पक्व घट की उत्पत्ति होती है । उसमें कथित कारणगुण क्रम से ही रक्तरूपादि की उत्पत्ति होती है। इस पके हुए घट में 'यही वही ट है जिसे पकने के लिए दिया गया था' इस प्रकार की जो प्रत्यभिज्ञा होती है, उसका कारण पके हुए और बिना पके हुए दोनों घटों का ऐक्य नहीं है। ऐक्य न रहने पर भी सादृश्य के कारण प्रत्यभिज्ञा होती है। जैसे कि 'सेयं दीपज्वाला' इत्यादि स्थलों में होती है। वैशेषिकों का यह सिद्धान्त 'पिलुपाकवाद के नाम से प्रख्यात है । 'पिलु' परमाणुओं का ही दूसरा नाम है । किन्तु नैयायिक लोग इस बात को नहीं मानते। उन लोगों का कहना है कि पका हुआ घट और बिना पका हुआ घट-दोनों एक ही हैं। इस ऐक्य से ही 'सोऽयं घटः' इत्यादि प्रत्यभिज्ञायें होती हैं । सम्भव होने पर किसी प्रतोति का गौणार्थक मानना उचित नहीं है। अतः उक्त प्रत्यभिज्ञा वस्तुतः ऐक्यमूलक ही है, सादृश्य-मूलक नहीं। तदनुसार सम्पूर्ण घट रूप अवयवी में ही पाक होता है भट्ठी में डाले गये घट का छिद्र से देखने पर प्रत्यक्ष भी होता है। अतः उक्त स्थल में घट का विनाश मानना प्रत्यक्षविरुद्ध भी है। उक्त प्रत्यभिज्ञा स विरुद्ध होने के कारण 'कारणगुणाः कार्यगुणानारभन्ते' इस नियम को पाक ज रूपादि से अतिरिक्त विषय के लिए सङ्कुचित करना पड़ेगा। प्रत्येक अवयवी अनन्तछिद्रों से युक्त है, अतः उन छिद्रों के द्वारा अति तीक्ष्ण तेज भीतर प्रविष्ट होकर अवयवी को बाहर और भीतर पका देता है। अतः अनुभव से विरुद्ध कच्चे घट का विनाश और पके घट की उत्पत्ति मानने की कोई आवश्यकता नहीं है। संख्या ___यह एक है, ये दो हैं, ये तीन हैं' इत्यादि व्यवहार जिस गुण से उत्पन्न हों, वहीं 'संख्या' है। यह एकत्व और द्वित्वादि से लेकर परार्द्ध पर्यन्त अनन्त प्रकार की है । इनमें एकत्व संख्या की नित्यता और अनित्यता उसके आश्रय की नित्यता और अनित्यता के अनुसार होती है घट अनित्य है अतः उसमें रहनेवाली एकत्व संख्या भी अनित्य है, आकाश नित्य है, अतः उसमें रहनेवाली एकत्व संख्या भी नित्य है, किन्तु द्वित्वादि सभी संख्या अनित्य ही हैं, चाहे उनके आश्रय नित्य हों या अनित्य । क्योंकि इन संख्याओं के व्यवहार करनेवाले पुरुषों की बुद्धि से इसकी उत्पत्ति होती. है। जिस घट में पट को साथ लेकर कोई पुरुष द्वित्व का व्यवहार करता है, उसी घट में पट और दण्ड को For Private And Personal
SR No.020573
Book TitlePrashastapad Bhashyam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreedhar Bhatt
PublisherSampurnanand Sanskrit Vishva Vidyalay
Publication Year1977
Total Pages869
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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