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भेद से यह चार प्रकार का है। शीतस्पर्श जल में, उष्णस्पश तेज में, अनुष्णाशीत स्पर्श पृथिवी और वायु में रहता है। अनुष्णाशीत स्पर्श भी पाकज और अपाकज भेद से दो प्रकार का है। इनमें पाकज अनुष्णाशीत स्पर्श पृथिवी में (पाक से पृथिवी का अनुष्णाशीतस्पर्श परिवर्तित हो सकता है ) और अपाकज अनुष्णाशीत स्पर्श वायु में रहता है।
इनमें से जल के परमाणुओं में रहनेवाले रूप रस और स्पर्श एवं तेज के परमाणुओं में रहनेवाले रूप और स्पर्श और वायु के परमाणुओं में रहनेवाले स्पर्श नित्य हैं। एवं कार्य रूप जलादि में रहनेवाले रूपादि अनित्य हैं। किन्तु पृथिवी के परमाणुओं में रहनेवाले रूा रस गन्ध और स्पर्श भी अनित्य ही हैं। कार्य रूप पृथिवी में रहनेवाले रूपादि तो अनित्य हैं ही।
इसका यह हेतु है कि पाक के द्वारा पृथिवी में रहनेवाले रूप रस गन्ध और स्पर्श का परिवर्तित होना प्रत्यक्ष से सिद्ध है। अवयवियों के रूपादि का यह परिवर्तन परमावयव परमाणुओं में रूपादि परिवर्तन के बिना संभव नहीं है। अतः पार्थिव परमाणुओं के रूपादि को अनित्य मानना पड़ता है। यह वैशेषिक दर्शन का खास विषय है, अतः इस विषय का विवरण कुछ विस्तृत रूप से देता हूँ।
पाकजरूपादि समवायिकारणों में रहनेवाले गुण ही जन्यद्र व्यों में रहनेवाले गुणों का असमवायिकारण है । शतशः देखी हुई यह व्याप्ति ही 'काणगुणाः कार्यगुणानारभन्ते' इस न्याय में पर्यवसित हुई है। जब तक सूत लाल न हों तब तक कपड़े लाल नहीं होते । श्याम कपालों से श्याम घट ही उत्पन्न होते हैं। किन्तु श्यामकपाल से उत्पन्न श्यामघट ही आग में पकने पर लाल हो जाता है। अतः प्रत्यक्ष दृष्ट रक्तघट की उत्पत्ति उक्त न्याय से रक्त कपालों से ही माननी पड़ेगी। फलतः कपालों का रक्त रूप ही घट में दीखनेवाले रक्त रूप का असमवायिकारण है। रक्त रूप की उत्पत्ति की यह प्रणाली घट क उत्पादक त्र्यस रेणु तक अबाधित गति से चलेगी। उक्त रीति के अनुसार घट के उत्पादक द्वयणुक में रहनेवाले रक्त रूप की उत्पत्ति द्वथणुक के उत्पादक दोनों परमाणुओं में रहनेवाले रक्त रूप से होगी। किन्तु प्रश्न यह है कि उन परमाणुओं में रक्त रूप आया कहाँ से? क्योंकि श्यामघट के उत्पादक परमाणु ही इस रक्त घट के भी उत्पादक हैं। उन परमाणुओं में श्याम रूप का अनुमान घट की श्यामता से निरबाध है। अतः यही एक कल्पना अवशिष्ट रह जाती है कि अग्नि के विशेष प्रकार के संयोग ( पाक ) से उन परमाणुओं की श्यामता नष्ट हो जाती है, और उनमें रक्त रूप की उत्पत्ति होती है । किन्तु घट के बन जाने पर घट के उत्पादक परमाणुओं की स्वतन्त्र सत्ता है कहाँ ? वे तो अपने कार्य द्वयणुकों को अपने में समेट कर अपनी स्वतन्त्रता खो चुके हैं। अ: द्वयणुकों में समवेतत्व सम्बन्ध से विद्यमान परमाणुओं में रहनेवाले श्याम रूप का नाश पाक से नहीं हो सकता। अतः उन परमाणुओं में रक्त रूप की उत्पत्ति की सम्भावना ही नहीं है। अतः यह कल्पना करनी पड़ती है कि जिन अवयवियों की परम्परा से श्याम घट का
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