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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra प्रकरणम् ] www.kobatirth.org भाषानुवादसहितम् न्यायकन्दली Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandir १६७ चेत् ? काशकुशावलम्बनमिदम्, स्वात्मानमेव न गृह्णाति विज्ञानम्, कुतः स्वसमानकालतामर्थस्य गृह्णाति ? गृह्णातु वा, तथापि पूर्वमयं नासीत् पश्चाच्च न भविष्यतीत्यत्र प्रत्यक्षमजागरूकं पूर्वापरकालताग्रहणात् । वर्तमानकालपरिच्छेदे चातत्कालव्यवच्छेदो युक्तो भावाभावयोविरोधान्न तु कालान्तरसम्बन्धव्यवच्छेदो मणिसूत्रव देकस्यानेक सम्बन्धत्वादिरोधात् । प्रपञ्चितश्चायमर्थोऽस्माभिस्तत्त्वप्रबोधे तत्त्वसंवादिन्याञ्चेति नात्र प्रतन्यते । चेत् ? किश्व सर्वभावक्षणिकत्वाभ्युपगमे कस्य संसार: ? ज्ञानसन्तानस्येति न सन्तानिव्यतिरिक्तस्य सन्तानस्याभावात् । अथ मतम् - नैकस्यानेकशरीरादियोगः संसारः, किं तर्हि ? ज्ञानसन्तानाविच्छेदः, स च क्षणिकत्वेऽपि नानुपपन्नः । तदप्यसारम्, गर्भादिज्ञानस्य प्राग्भवीयज्ञानकृतत्वे प्रमाणाभावात्, नहि समानजातीयादेवार्थस्योत्पत्तिः, विजातीयादप्यग्नेर्धूमस्योत्पत्तिसम्भवात् । अथ क्षणावस्थायित्व रूप क्षणिकत्व को भी ग्रहण करता है । ( उ० ) यह कहना भी युक्ति से दुर्बल है | क्योंकि जो विज्ञान अपने स्वरूप को भी ग्रहण नहीं कर सकता वह अपने विषय रूप अर्थ की समानकालीनता ( क्षणिकत्व) को कैसे ग्रहण करेगा ? अगर यह मान भी लें कि उक्त प्रत्यक्ष से क्षणिकत्व की प्रतीति होती है तो भी 'यह वस्तु पूर्वक्षण में नहीं थी, और आगे के क्षणों में भी नहीं रहेगी' यह समझाने में उक्त प्रत्यक्ष कैसे समर्थ होगा १ क्योंकि पूर्वकाल ? (भूत) और पश्चात् काल (भविष्यत्) इन दोनों को समझाने में प्रत्यक्ष असमर्थ है । यह ठीक है कि किसी वस्तु में वर्त्तमान काल के सम्बन्ध का ज्ञान होने पर उस ज्ञान से भविष्यत् काल और भूतकाल दोनों हट जाते हैं, किन्तु ज्ञान के विषय उन नीलादि वस्तुओं से अनेक कालों का सम्बन्ध क्यों हटेगा ? एक ही सूत्र के साथ अनेक मणियों का सम्बन्ध तो होता है, क्योंकि उसमें कोई विरोध नहीं है । अपने 'तत्त्वप्रबोध' और 'तत्त्वसंवादिनी' नाम के ग्रन्थों में इन्हीं विषयों की आलोचना की है, अतः इस विषय के विस्तार से यहाँ विरत होते हैं । For Private And Personal अब बात है कि अगर सभी वस्तुएँ ( प्र० ) ज्ञान समूह को ? ( उ० ) नहीं, नियों ( अर्थात् सन्तान घटक प्रत्येक व्यक्ति ) से भिन्न नहीं है । ( प्र० ) एक ही वस्तु क्षणिक हों तो संसार किसको होगा ? क्योंकि सन्तान ( समूह ) अपने सन्ता किन्तु ज्ञान की निरवच्छिन्न ( आत्मा ) का अनेक शरीरादि के सम्बन्ध ही संसार नहीं है ( अविरल ) धारा रूप सन्तान हो संसार है । यह संसार तो वस्तुओं को क्षणिक मान लेने पर भी उत्पन्न हो सकता है । ( उ० ) यह कहना भी ठीक नहीं है क्योंकि 'गर्भादि विषयक ज्ञान पहिले के ही ज्ञान से उत्पन्न होते हैं' इसमें कोई प्रमाण नहीं है । इसका भी कुछ ठीक नहीं है कि वस्तुओं से ही समानजातीय वस्तुओं की उत्पत्ति होती हो,
SR No.020573
Book TitlePrashastapad Bhashyam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreedhar Bhatt
PublisherSampurnanand Sanskrit Vishva Vidyalay
Publication Year1977
Total Pages869
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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