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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandir प्रकरणम् ] भाषानुवादसहितम् न्यायकन्दली न च ताभ्यामस्य स्वरूपभेदः, तथैकस्यैव भावस्य सहकारिभावात्कारकत्वमकारकत्वञ्च तदभावात्, कथमन्यस्य सन्निधावन्यस्य कारकत्वं कारकत्वेऽपि कथं कस्यचिदेव न सर्वस्येति चेत् ? अत्र वस्तुस्वभावाः पर्यनुयोक्तव्याः। वयन्तु यत्र येषामन्वयव्यतिरेकाभ्यां सामर्थ्यमवगच्छामः, तत्र तेषामेव सामग्रीभावमभ्युपगच्छन्तो नोपालम्भमर्हामः । त्वत्पक्षेऽपि क्षित्युदकबीजानामेवाकुरोत्पत्तौ सहकारिता नापरेषाम्, (अत्र) तवापि वस्तुस्वभावादपरः को हेतुः ? प्रत्येकमेव बीजादयः समर्था न परस्परसहकारिण इति चेत् ? किमर्थं तहि कृषीबल: परिकर्षितायां भूमौ बीजमावपति उदकञ्चासिञ्चति ? परस्पराधिपत्येन तेभ्य: प्रत्येकमकुरजननयोग्यक्षणजननायेति चेत् ? यद्यकुरजननयोग्यक्षणोपजननाय बीजं स्वहेतुभ्यः समर्थमुपजातं किमवनिसलिलाभ्याम् ? अथासमर्थम् ? तथापि तयोरकिञ्चित्करः सन्निधिः स्वभावस्यापरित्यागात् । क्षित्युदकाभ्यां बीजस्य स्वसन्तानवत्तिन्यसमर्थक्षणान्तरारम्भणशक्तिनिरुद्धचते भी है। इस कारकत्व या अकारकत्व से वह्नि में कोई अन्तर नहीं आता है। इसी प्रकार एक भाव ( बीजादि ) में सहकारियों के सहयोग से कारकत्व और असहयोग से अकारकत्व दोनों ही रह सकते हैं ( इसके लिए उन के स्वरूप में कोई अन्तर मानने की आवश्यकता नहीं है ) (प्र०) अन्य वस्तुओं के सानिध्य से अन्य वस्तु में कारकत्व ही क्यों आता है ? और कुछ विशेष वस्तुओं में ही वह क्यों सीमित रहता है ? सभी वस्तुओं में नहीं। (उ० ) यह अभियोग तो वस्तुओं के स्वरूप के ऊपर लाना उचित है, हम लोगों के ऊपर नहीं । पृथिवी, जल और बीज ये तीन ही अङकुर के उत्पादन में परस्पर सहकारी हैं' इस अपने पक्ष में आप ही स्वभाव को छोड़ कर और क्या उत्तर देंगे। (प्र०) बीजादि प्रत्येक ही स्वतन्त्र रूप से) अङ्कुर के उत्पादन में समर्थ है, वे तो परस्पर सहकारी नहीं हैं । ( उ. ) तो फिर जोते हुए खेत में बीजों को बो कर उसे पानी से सींचते क्यों हैं ? (प्र०) उन सभी कारणों से परस्पर के आधिपत्य के द्वारा अङ्कुरोत्पत्ति की योग्यता रखने वाले क्षण की उत्पत्ति के योग्य क्षण की उत्पत्ति के लिए ही जल सिञ्चनादि की आवश्यकता होती है। (उ०) यदि बीज में अपने कारणों से ही अङकुर के उत्पादन योग्य क्षण को उत्पन्न का सामर्थ्य उत्पन्न होता है तो फिर खेत और जल वहाँ क्या करते हैं ? अगर बीज उस में असमर्थ है तो असामर्थ्य रूप अपने स्वभाव को छोड़ नहीं सकता है । (प्र०) प्रत्येक क्षण में रहनेवाले बीज अनेक हैं, सुत राम् क्षण भी अनेक हैं, उन क्षणों के समूह में से जो क्षण अङ्कुर के उत्पादन में असमर्थ है उन में अङ्कुर की उत्पादिका शक्ति को जल और पृथिवी रोकते हैं । ( उ० ) मान लिया कि पृथिवी और जल से असमर्थ क्षण की For Private And Personal
SR No.020573
Book TitlePrashastapad Bhashyam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreedhar Bhatt
PublisherSampurnanand Sanskrit Vishva Vidyalay
Publication Year1977
Total Pages869
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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