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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandir १८४ न्यायकन्दलीसंवलितप्रशस्तपादभाष्यम् [द्रव्ये आत्म न्यायकन्दली परिनिष्ठयोश्च क्षणिकत्वसत्त्वसामान्ययोः प्रतीयमानयोर्नीलादिगतं क्षणिकत्वं प्रतीतमिति सूक्तं सत्त्ववैयर्थ्यमिति। बाधकक्षणिकत्वव्यावृत्त्यत्वव्यावृत्त्योाप्तिग्रहणम्, सत्त्वात्तु वस्त्वात्मकक्षणिकत्वप्रतीतिरिति चेन्न, व्यावर्त्यभेदेन कल्पितभेदयोावृत्त्योस्तादात्म्यभावात् । तादात्म्यञ्चानुमानाङ्गमुक्तम्, वस्त्वात्मनोः क्षणिकत्वसत्वयोस्तादात्म्यभावात् । तदात्मकत्वेनाध्यवसितयोरपि व्यावृत्त्योस्तादात्म्यमिति चेत् ? न, वस्तुनोस्तादात्म्यस्यान्यतोऽप्रसिद्धः, प्रसिद्धौ वा बाधकस्यापि वैयर्थ्यम् । न च व्यावृत्त्योः प्रतिबन्धनिश्चये वस्तुसिद्धिरस्ति वस्त्ववस्तुनोर्भेदादसम्बन्धाच्च । यदप्युक्तम्--धर्मोत्तरेण घटे बाधकेन व्याप्ति प्रसाध्य शब्दे सत्त्वात् क्षणिकत्वप्रसाधनमित्युभयोरपि सार्थकत्धं विषयभेदादिति । तत्रापीदमुत्तरम् । यह कहना भी ठीक नहीं है, क्योंकि विशेषों को छोड़कर सामान्य की प्रतीति नहीं होती है। एवं जब कि विशेष व्यक्तियों में क्षणिकत्व सामान्य और सत्त्व सामान्य की सिद्धि उस सामान्य व्याप्ति से हो ही गयी तो फिर नीलादि वर तुओं में भी क्षणिकत्व ज्ञात हो ही गया। उस के लिए सत्त्व हेतु की फिर से आवश्यकता नहीं है अतः हम ने ठीक ही कहा है कि सत्त्व हेतु की कोई सार्थकता नहीं है। (प्र. ) कार्यकारणभाव की अनुपपत्ति रूप बाधक से ही अक्षणिकत्वव्यावृत्ति (अक्षणिकत्वाभाव ) एवं 'असत्त्वव्यावृत्ति' ( अर्थात् असत्त्वाभाव ) इन दोनों की व्याप्ति का ज्ञान होता है और सत्त्व से भावस्वरूप क्षणिकत्व की प्रतीति होती है । ( उ० ) व्यावयं ( व्यावृत्ति के अभाव के प्रतीति का प्रयोजक ) के भेद से (असत्त्वव्यावृत्ति एवं अक्षणिकत्व व्यावृत्ति इन ) दोनों व्यावृत्तियों में भी भेः की कल्पना करनी पड़ेगी। किन्तु साध्य और हेतु के ताद!त्म्य को आप (बौद्ध ) अनुमान का अङ्ग मानते हैं। (प्र० ) भावस्वरूप क्षणिकत्व और सत्त्व इन दोनो में तो तादात्म्य है ही, इस तादात्म्य से ही, 'सत्त्व और क्षणिकत्व' इन दोनों के अभिन्न रूप से कल्पित अक्षणिकत्वव्यावृत्ति और असत्त्वव्यावृत्ति इन दोनों में भी तादात्म्य होगा। (उ०) वस्तुओं का तादात्म्य किन्हीं और चीजों से साधन करने योग्य वस्तु नहीं है। अगर वह तादात्म्य अन्य वस्त से ही सिद्ध हो तो फिर उक्त कार्यकारणभाव की अनुपत्ति का प्रदर्शन ही व्यर्थ है। ( अभाव रूप) दोनों व्यावृत्तियों में व्याप्ति निश्चय होने पर भी क्षणिकत्व रूप भाव पदार्थ की सिद्धि नहीं हो सकती है, क्योंकि भाव और अभाव दोनों भिन्न वस्तुएँ हैं। एवं इन दो विरुद्ध वस्तुओं में सम्बन्ध भी असम्भव है। धर्मोत्तर ने यह कहा है कि (प्र०) उक्त बाधक के बल से घटादि में व्याप्ति की सिद्धि के बाद शब्दादि में सत्त्व हेतु से क्षणिकत्व की सिद्धि करेंगे। इस For Private And Personal
SR No.020573
Book TitlePrashastapad Bhashyam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreedhar Bhatt
PublisherSampurnanand Sanskrit Vishva Vidyalay
Publication Year1977
Total Pages869
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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